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कम्न के बैन साहित्यकार
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रन्न की दो प्रमुख रचनाएं हैं-१. अजितपुराण अमर जिनभस चामुण्डराय ने जहाँ श्रवणबेलगोल में ५८ और २. गदायुद्ध या साहस भीम विजय । अजितपुराण फीट ८ इंच ऊंची गोमटेश्वर महामूर्ति की स्थापना कर में दूसरे तीर्थकर अजितनाथ का जीवन रसपूर्ण काव्यशैली ससार को एक माश्चर्य-वस्तु प्रदान की वहीं शस्त्र के साथ में वर्णित है। कवि ने सगर चक्रवर्ती और उनके पुत्रो की शास्त्र के भी ज्ञाताके रूप मे 'त्रिशष्टि लक्षण महापुराण' कपा मोहक एवं विलक्षण प्रतिभापूर्वक गुंफित की है। दूसरा नाम 'चाउण्डगयपुराण' (हिन्दी मे प्रचलित इस पुराण की रचना रन्न ने ६६३ ई. के लगभग की चामुण्डराय नाम) की कन्नड़ में गद्य-ग्रन्थ के रूप में होगी ऐसा विद्वानों का अनुमान है। इसकी एक विशेषता रचना कर कन्नड़ भाषा के इतिहास में अमरता एवं कोति यह है कि कवि ने तीर्थकर के अनेक भवों का वर्णन न प्राप्त की है। इसमें उन्होंने चौबीस तीथंकरों सहित जैन कर केवल एक ही भव का वर्णन किया है। राजा विमल- मान्यता के श्रेष्ठ (लाका रुषों का जीवन. वाहन का वैराग्य प्रकरण और तीर्थंकर के पांचों कल्या
चरित्र लिखा है जिसका आधार स्पष्टतः जिनसेनाचार्य णकों के रसमधुर निरूपण में कवि ने अपनी प्रतिभा का
का आदिपुराण और गुणभद्राचार्य का उत्तरपुराण प्रतीत परिचय दिया है। इसी प्रकार चक्रवर्ती सगर और उनके
होता है । शस्त्रशूर चामुण्ड राय ने प्रत्येक चरित्र का मंगलसाठ हजार पुत्रों के प्रसंग एवं इस कथानक द्वारा मृत्यु
स्मरण आरम्भ मे एक पद्य देकर किया है और शेष चरित्र की अनिवार्यता सम्बन्धी चित्रण भी सबल बन पड़ा है।
कन्नड़ मे लिखा है। इसका रचनाकाल ६७८ ई० माना कवितिलक रन्न ने बड़े प्रात्मविश्वास के साथ अपने
जाता है। चामुण्ड राय ने 'चरित्रसार' नामक संस्कृत प्रथ पुराण को "पुराणतिलक" कहा है।
भी लिखा है जिसमे उन्होंने ध्यान, परीषह, अणुव्रत आदि लोकिक काव्य के रूप मे रन्न ने 'गदायुद्ध' की सृष्टि
जैन सिद्धांतों का विवेचन किया है। इनकी लेखन-शैली पंप के भारत से प्रेरणा लेकर की होगी। महाभारत की
सरल और रोचक है । उनमें अद्भुत सक्षेपण शक्ति है। इस कथा को माध्यम बनाकर कवि ने यह जताया है कि
चामुण्डराय द्वारा लिखित पुराण की प्रसिद्धि गद्य के उसके आश्रयदाता नरेश सत्याश्रय भी उसी प्रकार परा
कारण है । वड्डाराधने की खोज से पहले यह पुराण प्राचीन क्रमी है और शत्रुओं का नाश करने में उसी प्रकार सक्षम
गद्य का सबसे पुराना ग्रंथ माना जाता था। फिर भी, है जिस प्रकार कि भोम ने अपनी गदा से दुर्योधन का अन्त किया था। कवि ने अपनी इस रचना को 'कृतिरत्न'
प्राचीन कन्नड़ के बोलचाल के स्वरूप को जानने के लिए कहा है। इस काव्य की यह विशेषता है कि इसे नाटक
यह आज भी एक महत्वपूर्ण कन्नड़-ग्रन्थ है। श्री मुगलि
के शब्दों मे-पांच-छ शताब्दियों से कन्नड़ में विकसित के रूप में मचित किया जा सकता है।
होते हुए कथागद्य और शास्त्रगद्य के सम्मिश्रण में 'चामुंडअजित पुराण में कवि ने कहा है-"कवियों में रत्नत्रय-पंप, पोन्न और रत्न (रन्न) ये तीनों प्रसिद्ध है। राय पुराण' विशिष्ट है।" ये तीनों 'जिनसमयदीपक' (जैन सिद्धांत के प्रकाशक) हैं। कन्नड़ साहित्य मे नागवर्म नाम के अनेक कवि या इनकी बराबरी कौन कर सकता है ?" कन्नड़ साहित्य के लेखक हुए है। इनमें नागवम (प्रथम) अपनी लौकिक इतिहास लेखकों ने भी इस मूल्यांकन को मान लिया है। कृतियों के लिए सुविख्यात हैं। इनके पिता ब्राह्मण थे किंतु रन्न ने यह भी दावा किया है कि 'वाग्देवी' (सरस्वती) ये जैनधर्म का पालन करने लगे थे। इन्होंने अपने गुरू के भण्डार की मुहर उन्होने तोड़ी और जिस प्रकार मणि- का नाम अजितसेनाचार्य बताया है। गोमटेश्वर महामति धारी सर्प के फण पर स्थित मणि की परीक्षा करने का के प्रतिष्ठापक चामुंडराय का भी इन्हें संरक्षण प्राप्त था। सामय किसी में नहीं होता उसी प्रकार उनकी रचनाओं इनके दो प्रथ हैं-१. छंदोम्बुधि जिसमें कन्नड़ भाषा के का मूल्यांकन कौन कर सकता है।
छंदों की श्रृंगार से ओतप्रोत विवेचना है तथा २. कर्नाटक चामण्डराय-समरधुरंधर, मंत्री, सेनापति और कादम्बरी। इसकी रचना बाणभट्ट की कादम्बरी को समक्ष