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________________ ४,४३,०३ मनेकान्त कन्नड़ भाषा में उन्होंने चंपू शैली का अर्थात् गद्य और पद्य मिश्रित रचना का प्रारम्भ किया। उनकी इस चंपू शैली का परिवर्ती कवियों ने भी अनुकरण किया बर इन सबका का काल पंचयुग' कहलाया। वैसे भी आदि पुराण की गणना कन्नड़ के उत्तम ग्रन्थो में आज भी की जाती है । पंप केवल धार्मिक कवि ही नहीं थे। उन्होंने अप दाता राष्ट्रकूटों के सामंत चालुक्य नरेश की वीरता एवं गुणों का कथन करने के लिए एक लौकिक काव्य 'विक्रमा विजय' अथवा 'पप भारत' की रचना की। इसमें उन्होंने यह दर्शाया है कि अरिकेसरी अर्जुन के समान ही बीर हैं। उन्होंने अपनी सामग्री महाभारत से ली है किंतु उसकी पृष्ठभूमि लेकर 'समस्त भारत' कहने की घोषणा करके भी संक्षेप में महाभारत कहते हुए अरिकेसरी को अर्जुन से अभिन्न बताया है। कथा में परिवर्तन भी उन्होंने किया है जैसे- द्रौपदी को केवल अर्जुन की ही पत्नी बताना आदि। श्री मुगलि ने उनकी रचना का मूल्यांकन करते हुए लिखा है कि- "यास का भारत पम्प की प्रतिभारूपी पारस पत्थर के स्पर्श से सोना हो गया है, एक सरस चित्र बन गया है।" उपर्युक्त दोनों रचनाएँ पम्प ने एक ही वर्ष में सृजित की थी जो कि उन्हे अमरता प्रदान कर गईं । पंप केवल शब्द वीर ही नहीं थे, वे शस्त्रवीर थे। उन्होंने अपने 'पप भारत मे लिखा है-पंप सारी पृथ्वी को कपित कर देने चतुरंग बल के लिए भयंकर थे, वे युद्ध में कभी भयभीत नहीं होने वाले थे। ललित अलंकरण से युक्त रहते थे, मन्मथ के समान रूप वाले तथा अपगत पाप (पापरहित थे।" उन्हें कन्नड़ का कालिदास और ) 'सत्कवि पंप', 'साहित्य सम्राट' कहा जाता है। पंप को अपनी भूमि से भी अपूर्व प्रेम था । कर्नाटक के बनवासी प्रदेश में भ्रमर या कोकिल के रूप में जन्म को भी वे देह धारण की सफलता मानते थे । कन्नड़ मे पपयुग के तीन रत्नों में से दूसरे रत्न हैं पोन्न। ये भी देंगी के ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे और जैनधर्म अंगीकार करने के बाद कर्नाटक आ गए थे । राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय (अकालवर्ष ) ( ९२९-१६०ई०) I के ये राजकवि थे । इन्होंने तीन ग्रंथों की रचना की है१. शांतिपुराण ( सोलहवें तीर्थंकर) का जीवन-चरित्र, २. जिनाक्षरमाला । (जिनेन्द्रदेव की स्तुति) और ३. भुवनैकरामाभ्युदय ( राम कथा ) एक और संस्कृत रचना । । । 'गतप्रत्यागत' भी इन्ही की रचना बताई जाती है। अंतिम दो ग्रंथ इस समय उपलब्ध नहीं है । पोन की उपलब्ध कन्नड़ ना 'शांतिपुराण' है जो कि चंपू शैली में लिखित है कवि के मूल स्थान पुंगनूर ब्राह्मण थे। उनके दो पुत्र । मे नागमण्य नामक एक जैन मस्लप और पुण्यमय थे जो कि बाद में तैलप नामक नरेश के सेनापति बन गए थे। उन्होंने अपने गुरू जिनचन्द्रदेव के निर्वाण के उपलक्ष्य में पोल से शांतिपुराण लिखवाया था। मल्लपय की सुपुत्री 'दानचितामणि' प्रत्तिमब्बे ने शांतिपुराण की ताडपत्रों पर एक हजार प्रतियाँ लिखवाकर सोने एवं रत्नों की जिन प्रतिमाओं सहित कर्नाटक के मन्दिरों को भेंट की थी। इस महिला ने सक्कुंडि में अनेक जिनालय भी बनवाए थे। पोस्न ने जैन धर्मशास्त्र और काव्यशास्त्र का प्रोड़ समन्वय अपने शातिपुराण को 'पुराणचूड़ामणि' कहा है। पोन्न कन्नड़ और सस्कृत दोनों मे रचना करते थे । अकालवर्ष ने उन्हें इसी कारण 'उभयकवि चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित किया था जो भी हो, वे प्राचीन कन्नड़ साहित्य के तीन रत्नों में गिने जाते हैं। रन्न - कन्नड़ के पपयुगीन तीसरे कवि-रश्न हैं । वास्तव में इनका नाम रन्न हो 'रत्न' का बिगड़ा रूप (अपक्ष) जान पड़ता है। ये आधुनिक उत्तरी कर्नाटक के बीजापुर जिले के मुधोल (प्राचीन नाम मृदुवाललु ) नामक स्थान पर मनिहार कुल में हुआ था किन्तु इनकी शिक्षा सुदूर दक्षिण कर्नाटक मे श्रवणबेलगोल में हुई थी और बंकापुर में निवास करने वाले आचार्य अजितसेन इनके गुरु थे। गोमटेश्वर महामूर्ति (श्रवणबेलगोल) की प्रतिष्ठापना करने वाले वीर सेनानी एवं जिनभक्त चामुंड राय ने इन्हें आश्रय दिया था चालुक्य नरेस प्रत्याय (अपर नाम इरियड) के भी ये आबित थे और कवि । रत्न, कवि चक्रवर्ती, कवि तिलक आदि उपाधियों से विभूपित किया था। ।
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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