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कन्नड़ के जन साहित्यकार
0 श्री राजमल जैन, जनकपुरी, दिल्ली
भारत का राजनैतिक और दार्शनिक साहित्य विशेष- के आविर्भाव से यह साहित्य अत्यन्त पुष्ट हुमा। इसी कर जैन साहित्य एवं दर्शन. इस बात का साक्षी है कि काल मे रन्न, पोन्न, नागचन्द्र इत्यादि श्रेष्ठ कवि उत्पन्न जैन तीर्थंकरों, एवं आचायो ने स्थानीय लोकभाषा को हुए। इस काल का साहित्य अनेक दृष्टियो से बहुत ही अपने उपदेशों एवं सिद्धान्त ग्रन्थो के लिए मुक्त भाव से महत्वपूर्ण है । इस काल को स्वर्ण युग कहना सर्वथा उपप्रयुक्त किया। यही कारण है कि प्राकृत जैन का समा- युक्त प्रतीत होता है। अन्य विद्वानों ने भी इसको स्वर्णनार्थी-सी बन गई है।
युग नाम से अभिहित किया है।" कुछ लेखक इस युग को दक्षिण भारत में भी विशेषकर कर्नाटक में महावीर आरम्भ काल और पप (जन कवि) युग में विभाजित कर स्वामी के समय में भी जैनधर्म का प्रचार था। सम्राट् देते हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य के कर्नाटक मे जैन मुनि के रूप में श्रवण जैन युग के बाद कन्नड़ साहित्य मे वीर शैव युग या बेलगोल में तपस्या करने और स्वर्ग गमन के कारण भी बसव युग का प्रारम्भ हुआ ऐसा माना जाता है जो कि वहाँ जैनधर्म का खुब प्रचार हुआ होगा। उस उरदेश के ११६० ई० से १५०० ई० या १६०० ई. तक माना जैन लेखकों, कवियो ने उसी देश की भाषा कन्नड़ मे अपूर्व जाता है। (बसव वीरशैवमत या लिंगायत मत के प्रवर्तक महत्व की रचनाएँ की और प्राकृत भाषा एवं संस्कृत में थे)। भी ग्रथो की रचना की।
___ उपर्युक्त काल के बाद १५वी सदी से १६वी सदी जैन यग या स्वर्णकाल (आरंभ से ११६०ई० तक) तक की कालावधि वैष्णव युग का ब्राह्मण युग या कुमार
कन्नड़ भाषा के साहित्य के इतिहास का प्रारम्भ व्यास युग कहलाती है। इसके भी बाद का वर्तमान काल जैन कवियो या लेखकों से होता है। प्रसिद्ध पुरातत्वविद आधुनिक युग निर्दिष्ट किया जाता है। ई० पी० राइस ने अपने कन्नड़ साहित्य के इतिहास मे ऊपर जो जनेतर या आधुनिक युग आदि दिए गए आरम्भ से लेकर ११६० ई० तक के युग को 'जन युग' हैं, उनमे जैनो की लेखनी रुकी नही। वे भी अपनी लेखनी नाम दिग है। इसी कोटि के विद्वान् आर. नरसिंहाचार्य से कन्नड साहित्य को समृद्ध करते रह । ने अपनी रचना 'कविचरिते' (कवियो का इतिहास) मे भाषा की प्राचीनता की दृष्टि से जैन युग प्राची। ईसा की पांचवी शतान्द्री से लेकर बारहवीं शताब्दी के कन्नड़ (हल गन्नड़) काल है। उसमे नोवी शताब्दी से कानड साहित्य के इस युग को जैन युग कहा है। 'कट पहले प्रथ-रचना उपलब्ध नहीं होती। अशोक के प्राकृत और उसका साहित्य' के लेखक श्री एन. एस. दक्षिणामूर्ति शिलालेखों के बाद प्राचीन कन्नड़ में शिलालेख पाए जाते ने भी लिखा है--"१. आरम्भकाल अथवा स्वर्ण युग है। सबसे प्राचीन शिलालेख हल्मिडि शिलालेख (पांचवी (५वी शताब्दी से १२वी शताब्दी तक)-अन्यत्र यह सदी) कहलाता है। उसके बाद छठी सातवी सदी के दिखाया गया है कि कन्नड साहित्य वा आरम्भ स्थल रूप भवणवेलगोल के शिलालेख आते हैं। इनके विषय मे श्री से ५वी शादी माना जा सकता है। ५वी से हवी शताब्दी २० श्री मुगलि ने लिखा है-"श्रवणवेलगोला से प्राप्त तक का साहित्य किस रूप में था, यह निश्चित रूप से अनेक प्राचीन शिलालेखों में साहित्य-सस्कार स्पष्ट है। नही कहा जा सकता। हवी शताब्दी में पंप जैसे महाकवि उनमे जैसे वीररस जगमगा रहा है। वैसे ही शांतरस की