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________________ प्रोम् प्रहम् TIPUR 1/I DITAR परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण सवत् २५१७, वि० सं० २०४७ वर्ष ४३ किरण ३ जुलाई-सितम्बर १९६० सीख मानत क्यों नहिं रे, हे नर सीख सयानो । भयो अचेत मोह-मद पीके, अपनी सुध विसरानी ॥टेक॥ दुखी अनादि कुबोध अवृत तें, फिर तिन सौं रति ठानी। ज्ञान सुधा निज भाव न चाख्यो, पर-परनति मति सानो ॥२॥ भव असारता लख्यो न क्यों जह, नप ह कृमि विट थानी। सधन निधन नृप दास स्वजन रिपु, दुखिया हरि से प्रानी ॥३॥ देह येह गद-गेह नेह इस, हैं बहु विपति निसानी। जड़ मलीन छिनछीन करमकृत, बंधन शिव सुख हानी ॥४॥ चाह ज्वलन इंधन-विधि-वन-घन, आकुलता कुल खानी। ज्ञान-सुधासर-सोखन रवि ये, विषय अमितु मृतु दानी ॥५॥ यों लखि भव तन भोग विरचिकरि, निज हित सुन जिन वानी। तज सब राग 'दौल' अब अवसर, यह जिनचन्द्र बखानी ॥६॥
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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