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________________ २२, पाकि०२ भनेकान्त अपितु घोर परिश्रम के बाद उसकी कुछ ताडपत्रीय हस्त- जटासिंहनन्दि ने अपने व० च० में स्वविषयक किसी भी प्रतियों को उपलब्ध कर अन्तर्बाह्य साक्ष्यो के आधार पर प्रकार की सूचना नही दी है, अतः उसके काल को निर्णय यह सिद्ध किया कि वच० का कर्ता जटा अथवा जडिय, करने मे अन्तक्ष्यिो के अभाव मे अनेक कठिनाइया है। जडिल या जटिल अथवा जटासिंहनन्दि था। अतः इस स्थिति मे बाह्य साक्ष्यो का अवलम्बन लेकर ही प्रद्यावधि प्राप्त साक्ष्यों में व. च० ग्रन्थ एवं इसके कुछ विचार किया जा सकता है। इसके लिए निम्न साधन ग्रन्थकार का सर्वप्रथम एक साथ उल्लेख उद्योतन सूरि सामग्री का अध्ययन आवश्यक है :(वि० सं०८३५) रचित-"कुवलयमालाकहा" मे उप- (१) परवर्ती कवियो द्वारा जटिल अथवा जटासिंहलब्ध होता है, जिसमें व० च० के कर्ता जडिय का वर्णन नन्दि का स्मरण । है । अपभ्रश कवियों मे धवल (११वी सदी) एवं धनपाल (२) दक्षिण भारत स्थित कोप्पल-ग्राम में प्राप्त (वि० सं० १४४४) ने व.च. को जडिय कृत न मानकर शिलालेख एवं जडिलमुनि कृत कहा है। कन्नड़ कवि चामुण्डराय (वि० (३) व. च० में वणित सैद्धान्तिक तथा दार्शनिक सं० १०३१-१०४१). नयसेन (वि० स० ११६६), जन्म सामग्री एव अन्य वर्णनों का पूर्ववर्ती आचार्यों एवं महा(वि० सं० १२६२) एवं महावल (वि० स० १३११) ने कवियो द्वारा वणित सामग्री के साथ तुलनात्मक अध्ययन । व० च० के कर्ता को जटासिंहनन्दि मुनि के नाम से स्मरण उत्तरावधि:किया है। इतना ही नही आचार्य जिनसेन द्वितीय (लगभग वि० सं० ८६५), कन्नड़ कवि पम्प (वि० सं० ६२०) एव (क) व० च० एव उसके कर्ता जटिल अथवा जटापावपंडित (वि० सं० १२६२) ने वराङ्गचरित के कर्मा सिंहनन्दि का उल्लेख करने वाले कवियों मे उद्योतनसरि को आचार्य जटाचार्य के नाम से स्मरण किया है। का नाम सर्बप्रयम है। उन्होंने अपनी कुवलयमालाकहा मे इन सभी साक्ष्यो से स्पष्ट है कि एक ही कवि को पूर्व पूर्ववर्ती व वियों के स्मरण प्रसंग मे पप्रचरित के कर्ता विविध नामो से स्मरण करने की परम्परा कोई नवीन रविषेण के पूर्व जडिय अथवा जटिल का नामोल्लेख किया नहीं है। इसका अभ्यास प्राचीन काल से ही रहा है। है।' इस आधार पर प्रतीत होता है कि जडिय मथवा कभी-कभी तो ग्रन्थ अथवा ग्रन्थकारो के अपर नामो में जटामिहनान्द रावषण के पूर्ववता कवि है। रविषेण का शब्द अथवा वर्ण्यसाम्य भी दृष्टिगत नही होगा। इसका समय वि० स० ८३४ निश्चितप्राय ही है। कारण यह है कि कवि अथवा काव्य का जो विशिष्ट गुण (ख) उद्योतन सूरि के उक्त उल्लेख के अतिरिक्त भी लोक को सर्वाधिक प्रभावित एव चमत्कृत कर देता है, नवी सदी से तेरहवी सदी तक के पूर्वोक्त संस्कृत-प्राकृत, उसी के आधार पर लोक मे उसका नाम प्रचलित हो अपभ्रंश एवं कन्नड कवियों ने भी व० च० एवं उसके जाता है। उदाहरणार्थ महाकवि कालिदाम का अपरनाम कर्ता का उल्लेख जितने आदर एव श्रद्धा के साथ किया 'दीपशिखा', रावणवध का अपरनाम 'भट्टिकाव्य', भारवि है उमसे यह स्पष्ट है कि जटिल अथवा जटासिंहनन्दि का अपरनाम 'आतपत्र' आदि प्रसिद्ध हैं। इस आलोक मे अपनी काव्य कला से दक्षिण भारत के साथ-साथ उत्तर यदि व. च० के कर्ता के नाम का अध्ययन किया जाय भारत को प्रभावित कर पर्याप्त ख्याति अजित कर चुके तो जटासिंहनन्दि का मूल नाम सिंहनन्दि रहा होगा, थे और मम्भवतः उसी से प्रभावित होकर उद्योतनसरि ने किन्तु जटिल जटाजूटधारी होने से ही उन्हे आचार्य जटा, उनका उल्लेख किया होगा। कवि-काल मे यातायात के जडिय, जटिल जैसे नामों से भी अभिहित कर दिया गया साधनों एवं सुदूरवर्ती स्थानो तक बिस्तृत कवि-कीर्ति को होगा। ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है काल निर्णय : कि जटासिंहनन्दि एवं उद्योतनसरि के मध्य पर्याप्त समय जैसा कि पूर्व में लिखा जा चुका है कि जटिल अथवा का अन्तर होना चाहिए।
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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