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________________ २० वर्ष, ४३, कि०२ कोई प्रक्रिया अपनाते हो उन्हे भी आगम के वाक्यों पर वर्ष के चतुर्मास में चतुर्दशी पंचमी और अष्टमी को ध्यान देना चाहिए उन्ही दिनों में जानना चाहिए जिनमें सूर्योदय हो, अन्य 'चा उम्मास अवरिसे, पक्खि अ पचमीठमीसु नागवा।। प्रकार नहीं। पूजा प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण और नियम ताजो तिहीओ जासि, उदेइ सूरो न अण्णाउ ॥१ निर्धारण उसी तिथि मे करना चाहिए जिसमें सर्योदय पूआ पच्चक्खाणं पडिकमण तइय निअन गहण च । हो। जीए उदेइ सूरी तोइ तिहीए उ कायव ॥२॥' -धर्मस० पृ० २३६ 00 १. मुनियो का वर्षावास चतुर्मास लगने से लेकर ५० दिन बीतने तक कभी भी प्रारम्भ हो सकता है अर्थात् अषाढ़ शुक्ला १४ से लेकर भाद्रपद शुक्ला ५ तक किसी भी विन शुरू हो सकता है। -जैन-आचार (मेहता) पृ० १८७ (पृ० १६ का शेषांश) संदर्भ-सूची: १. जैन दर्शन मनन और मीमांसा: मुनि नथमल चरू। ११. वही। १९७७ पृ० १३४ १२. तिलोय पण्णत्ती : यतिवृषम, सोलापुर ४/१५८६२. तत्त्वार्थसूत्र : उमास्वामी, वाराणसी ६/२ १५६३ । ३. वही ६/६ १३. संस्कृत हिन्दी कोष : आप्टे, दिल्ली १९७७, पृ० ५६५ ४. वही ३/२७ १४. मरुधर केसरी अभिनन्दन ग्रथ : व्यावर, १६६८ पृ. ५. त्रिलोकसार : नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, श्री महा वीर जी वी०नि० स० २५०१, गाथा ८५-८६। १५. भगवती आराधना : शिवकोटि, कलकत्ता १६७६, ६. वही गाथा ८६३ गाथा ४२१। ७. वही गाथा ८६४-६६७ १६. सम्मतिवाणी : प० कैलाश चन्द जी का लेख। ८. वही गाथा ८६८ १७. मरुधर केसरी अभिनन्दन ग्रंथ : पृ. २६१ । ६. 'उदकक्षीरधृतमृतारसान् सप्त सप्ताह वर्षन्ति...' १८. वही पृ० २६१। वही गाथा ८६८ की व्याख्या। १६. "आषाढ मुणिमाए ठियाण जाति......... १०. सन्मतिवाणी: इन्दौर मे पं० जी का लेख, अपव्वे णवट्टति' 'पर्युषण : श्रमणकल्प, 'श्रावक सकल्प' । कल्पसूत्रचूगि : सम्पा० मुनि पुण्यविजयजी पृ० ।।
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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