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________________ प्रद्युम्नचरित में उपलब्ध रामजनतिक सन्दर्म तात्पर्य यही है, कि वह किसी बड़े शासक द्वारा नियुक्त लता, चतुराई, दूरदशिता एवं मनोवैज्ञानिकता पर निर्भर किया जाता था, जो उसके राज्य के प्रदेशविशेष का एक करती है। इस कारण राजा किसी अनुभवी एव परमशासक के रूप में यथानिर्देशानुसार कार्य किया करता तथा विश्वस्त योदा को ही सेनापति नियुक्त करता था और सुनिश्चित शों के अनुसार जिसे भुगतान मिलता था महा- सम्भवतः उसे अमात्य की श्रेणी का सम्मान दिया जाता कवि सिम न अपनी आय-प्रशस्ति मे "भुल्लण" को या। युद्ध के पूर्व राजा मन्त्रियों के साथ-साथ सेनापति से बम्हणवाडपट्टन का भृत्य कहा है, जो बल्लाल-नरेश का सलाह लेकर ही युद्ध की घोषणा करता था। कवि ने एक माण्डलिक था प्रद्युम्नचरित में वटपुर के राजा कनक- सेनापतियों के नामों के उल्लेख नहीं किये, किन्तु युद्धरथ को भी कवि ने माण्डलिक' कहा है। प्रसगों में उसने सेनापतियों को पर्याप्त महत्त्व दिया है।" ३. सामन्त ३. तलवर-राज्य मे शान्ति एवं शासन-व्यवस्था कवि ने प्रद्युम्नचरित में सामन्त" शब्द का उल्लेख बनाए रखने के लिए तलवर के पद को महत्त्वपूर्ण बतलाया किया है. जो शासकों की सम्भवतः एक बहन छोटी इकाई गया है । वह राजा वा विश्वास-पात्र होता था। प्रद्युम्नथी। कवि सिद्ध ने सामन्तो का जिस ढग से वर्णन किया चरित के उल्लेखों से ध्वनित होता है कि उसकी सलाह के है, उससे निम्न तथ्यो पर प्रकाश पड़ता है अनुसार ही राजा किसी को दण्डित करने अथवा पुरस्कृत १. सामन्तगण अपने अधिपति राजा के आज्ञापालक करने का अपना अन्तिम निर्णय करता था।" होते थे। प्रद्युम्नचरित के एक प्रसग के अनुसार परदारागमन २. वे अअने राजाओं के इतने पराधीन रहते थे कि करने वाले एक व्यक्ति को पकड़कर जब तलवर उसे राजा मांगे जाने पर अपनी रानियो को भी उन्हें समपति करने के सम्मुख प्रस्तुत करता है, तब राजा उसे उसी क्षण शुली को बाध्य हो जाते थे' तथा, पर लटका देने का सीधा आदेश दे देता है "आजकल के ३. मनोनुकूल कार्य करने पर अधिपति राजा विशेष आरक्षी महानिदेशक से उक्त तलवर की तुलना को अवसरों पर उन्हें वस्त्राभूषण प्रदान कर सम्मानित भी ' जा सकती है। करते थे।" ४. दूत--राज्य के हित मे शासक विदेशों से राज्य के अङ्ग सांस्कृतिक अथवा सौजन्यपूर्ण सम्बन्ध रखने के लिए विविध १. मन्त्री-मानसोल्लास२ मे राज्य के ७ अगों मे प्रकार के दूतो की नियुक्ति करता था। प्राचीन-साहित्य से अमात्य अथवा मंत्री को प्रमुख स्थान दिया गया है। र मे वणित दूतो में निम्नप्रकार के गुणों का होना अनिवार्य था । महाकषि विबुध श्रीधर (१२वी सदी) ने अमात्य को । १. व्यक्तिगत गुण-मनोहरता, सुन्दरता, आतिथ्यस्वगपिवर्ग के नियमों को जाननेबाला," स्पष्टवक्ता,२४ भावना, निर्भीकता, वाकपटुता, शालीनता, तीव्र-स्मरण नयनीति का ज्ञाता, वाम्मी, महामति," सद्गुणों को शक्ति एवं प्रभावशाली वक्तत्व-शक्ति । खान,“ धर्मात्मा," सभी कार्यों में दक्ष.° सक्षम" एवं वीर" कहा है। २. सन्धिवार्ता से सम्बद्धगुण-कुशल सूझ-बूझ, शान्ति, धैर्यवृत्ति एव प्रत्युत्पन्नमतित्व । कविसिद्ध ने भी अमात्य के इन्ही गुणो को प्रकाशित ३. सुविज्ञता-विविध भाषाओं का ज्ञान, परिग्राहक किया है। प्रद्युम्नचरित में उल्लिखित ऐसे अमात्यो राष्ट्र की प्रथाओ एव परम्पराओं से परिचय आदि । अथवा मन्त्रियों मे सुमति नामक एक मन्त्री का नाम ४. अपने शासक के प्रति मनोवृत्तियों यथा-निष्ठा, उल्लेखनीय है। देशभक्ति, आज्ञाकारिता प्रादि । २. सेनापति-युद्ध-प्रसंगों मे कवि सिद्ध ने सेनापति" कौटिल्य-अर्थशास्त्र मे तीन प्रकार के दूत बतलाए का विशेष रूप से उल्लेख किया है। क्योंकि युद्ध मे उसका गए है-(१) निस्टष्टार्थ (२) परमितार्थ एवं (३) शासविशेष महत्त्व होना है। जय अथवा विजय उसीकी कुश- नहर । ०
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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