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प्रद्युम्नचरित में उपलब्ध राजनैतिक-सन्दर्भ
डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन
पज्जुण्ण चरित (प्रद्युम्नचरित) तेरहवी सदी के १. शासक-भेद अन्तिम चरण का एक पौराणिक महाकाव्य है, जो अद्या- राजा-प्रभुसत्ता में हीनाधिकता के कारण राजाओं की वधि अप्रकाशित है। उसमें महाभारत के एक यशस्वी, परिभाषा में आचार्यों ने अनेक भेद-प्रभेद किए हैं। इस
दृष्टि से द्युम्न चरित मे शासकों के लिए विभिन्न प्रसंगो हुआ है । उसके मूल लेखक महाकवि सिद्ध है। कुछ दैबिक मे चक्रवर्ती', अर्द्धचक्रवर्ती, माण्डलिक,' नराधिप,' विपदाओं के कारण इस रचना के कुछ अश नष्ट-भ्रष्ट हो नरनाय, नरपति,' एवं नरेन्द्र' जैसे विशेषणो के प्रयोग जाने के कारण सिद्ध कवि के सम्भवतः सतीर्थ्य-महाकवि किए गए है । सिंह ने अपने गुरु के आदेश से उसका पुनरुद्धार, पुनर्लेखन
आदिपुराण के अनुसार चक्रवर्ती उस शासक को एवं संशोधन-कार्य किया था। इस कारण वह ग्रन्थ पर- कहते है, जो पृथिवी के छह खण्डो का अधिपति होता था वर्तीकालों में महाकवि सिंह द्वारा विरचित मान लिया गया। और जिसके अधीनस्थ बतीस हजार राजा होते थे। कवि प्रस्तुत ग्रन्थ अपभ्रश-भाषा अथवा पुरातन-हिन्दी की सिद्ध ने भा चक्रवत
सिद्ध ने भी चक्रवर्ती की यही परिभाषा दी है तथा एक अनूठी कृति है । उसे अपभ्रश पुरातन हिन्दी की महा
पोदनपुर नरेश को चक्रवर्ती एव महाराज श्रीकृष्ण को काव्य शैली में लिखित सर्वप्रथम स्वतन्त्र र चना मानी जा अद्धचक्रवता
अर्द्धचक्रवर्ती के नाम से अभिहित किया है। अर्द्धचक्रवर्ती सकती है। भाषा, शैली एवं परवर्ती-साहित्य की अनेक
को उन्होंने तीन-खण्डो का अधिपति बतलाया है।" कवि प्रवृत्तियों के मूल-स्रोत तो प्रस्तुत ग्रन्थ में उपलब्ध है ही. द्वारा प्रयुक्त नराधिप, नरपति, नरनाथ, नरेन्द्र एव राजा १३वीं सदी को विभिन्न राजनैतिक, भौगोलिक, सामा. शब्द पर्यायवाची प्रतीत होते हैं । कवि द्वारा वणित शासको जिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक परिस्थितियो की दष्टि से के निम्नकार्यों पर प्रकाश पडता हैभी यह ग्रन्थ अपना विशेष महत्त्व रखता है। इसमे कुल
१. शत्रु-राजाओं को पराजित करके भी वे उन्हें क्षमा १५ सन्धियाँ एवं ३०६ कडवक है। यहाँ उक्त ग्रन्थ के सभी प्रदान कर देते थे।" पक्षों पर स्थानाभाव के कारण प्रकाश डालना तो सम्भव
२. विशेष परिस्थितियो में वे परनारियों का अपहरण नही, किन्तु जो प्रासगिक राजनैतिक सन्दर्भ उसमे उप- भी कर लेते थे।" लब्ध हैं, उन पर सक्षेप मे विचार किया जा रहा है।
३. विजेता राजा अपने अधीनस्थ राजायो को विजजैसा कि महाभारत के कथानक से भी स्पष्ट है कि योत्सव के ममय पर आदेश भेजकर बुलाता था।" युग पुरुष प्रद्युम्न, जो कि "प्रद्युम्नचरित" का भी प्रधान ४. प्रजा-कल्याण एवं राज्य की समृद्धि तथा यश के नायक है, दुर्भाग्य से अपने जन्म काल से ही अपहत होकर लिए उपयोगी कार्य करते थे। युवा-जीवन के दीर्घकाल तक संघर्षों से जूझता हुआ इधर. २. माण्डालक : उधर भटकता रहा। कवि सिद्धसिंह ने इसका बहुत ही महाकवि जिनसेन ने उस शासक को माण्डलिक मार्मिक वर्णन प्रस्तुत किया है। इस कारण प्रस्तुत ग्रन्थ कहा है, जिसके अधीन ४०० राजा रहते थे। किन्तु आगे में प्रद्युम्न के संघर्षों एव युद्धों की विस्तृत चर्चा हुई है। चलकर सम्भवतः यह परम्परा बदल गई और माण्डलिक प्रसंग-प्राप्त-प्रवसरों पर जिन राजनैतिक तथ्यों के उल्लेख उस शासक को कहा जाने लगा, जो किसी सम्राट या प्राप्त होते हैं। वे निम्न प्रकार हैं
अधिपति के अधीन रहकर किसी मण्डल-विशेष अथवा १. शासक-भेद,
एक छोटे प्रान्त के शासक के रूप में काम करता था। २. राज्य के प्रमुख अंग, एवं, ३. युद्ध ।
कवि सिद्ध ने माण्डलिक को भूत्य कहा है ।" इसका