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________________ वर्ष ४३ किरण १ } प्रोम् मन परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर - निर्वाण संवत् २५१६, वि० सं० २०४७ मुनिवर स्तुति निन्दक बंदक मन-वच-तन कर तरुतल कबध मिले मोहिं श्रीगुरु मुनिवर, करिहैं भव-दधि पारा हो । मोग उदास जोग जिम लीनो, छांड़ि परिग्रह भारा हो ॥ इन्द्रिय-दमन नमन मद कोनो विषय कषाय निवारा हो । कंचन-कांच बराबर जिनके, सारा हो । दुर्धर तप तप सम्यक् निज घर, धारा हो । ग्रीषम गिरि हिम सरिता तीरें, पावस ठारा हो । करुणा भीन, चीन बस-यावर, ईर्या मार मार, व्रतधार शील दृढ़, मोह महाबल टारा हो । मास छमास उपास, बास बन, प्रासुक करत अहारा हो ॥ आरत रौद्र लेश नहि जिनकें, धरम शुकल चित धारा हो । ध्यानारूढ़ गूढ़ निज आतम, शुध उपयोग विचारा हो ॥ आप तहिं औरन को ताहि, भवजलसिंधु अपारा हो । 'दौलत' ऐसे जैन जतिन को, नितप्रति धोक हमारा हो ॥ पंथ समारा हो । { जनवरी-मार्च १६६०
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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