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________________ ४, वर्ष ४३; कि० १ अनेकान्त कवि सिद्ध ने इनमें से शासनहर नामक दूत का उल्लेख भवन सम्बन्धी सामग्री के साथ-साथ विविध प्रकार के किया है। इस कोटि के दूत आवश्यकता पड़ने पर शत्रुदेश हथियारों की भी उपलब्धि हुई है, इससे हथियारों की के प्रमुख राजपुरुषों से येनकेन-प्रकारेण सम्बन्ध जोड़कर प्राचीनता पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। उनको अन्तरंग बातों की जानकारी प्राप्त करने के प्रयत्न वैदिक-काल में धनुर्विद्या को अत्यधिक महत्व दिया किया करते थे, साथ ही, वे राजा के गुप्त-संदेशों को भी गया है, इसलिए उसे धनुर्वेद की संज्ञा प्रदान की गई। यत्र-तत्र प्रेषित किया करते थे। उसी समय से लोहे के प्रयोग के उदाहरण भी मिलते हैं । प्रद्युम्नचरित मे उल्लिखित दूत राजा मधु का सदेश वहां धनुष को कोदण्ड सारंग, इषु एवं कार्मुक जैसे नामों लेकर उसके शत्रु शाकम्भरी नरेश-राजा भीम के पास इस से सम्बोधित किया गया है। इतना ही नहीं, उसके 'इषउद्देश्य से पहुंचता है कि रिपराध सैनिको की हत्या के कृत' एवं 'इषुकार' जैसे शब्द-प्रयोगों से भी पता चलता है पूर्व ही यदि दोनों पक्षों में शान्ति-समझोता हो सके, तो कि उस समय धनुष-वारणों के निर्माण करने सम्बन्धी उत्तम है कवि ने उसका वर्णन निम्नप्रकार किया है :- उद्योग-धन्धे भी पर्याप्त-मात्रा में प्रचलित हो गए थे। ___ "वह दूत राजा भीम के पास इस प्रकार पहुंचा-मानों यूनान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार "हेरोडोटस" ने लिखा रौद्रसमुद्र मे से मकर ही उछल पड़ा हो।" है कि ई० पू० ५वीं सदी मे फारस की सेना में भारतीयों विवाह का निमन्त्रश भी दूत के द्वारा ही भेजा जाता का भी एक दल सम्मिलित था, जो धनुषवाण चलाने मे था। उसे कवि ने "कक्कारा"(-वर्तमान हल्कारा) कहा अत्यन्त कुशल माना जाता था। कौटिल्य ने वाणो के है।" इसी प्रकार दुर्योधन ने भी कृष्ण के पास जिस साथ अन्य अनेक हथियारों के भी उल्लेख किए है। महाव्यक्ति के द्वारा अपना लेख-पत्र भेजा, उसे कवि ने लेख" भारत, जो कि युद्ध-विद्या का एक महान ऐतिहासिक धारी के नाम से अभिहित किया है। विशेषण कुछ भी हो, ग्रन्थ-रत्न है, उसमें भिन्दिपाल, शक्ति, तोमर, नालिका वस्तुत: वे सभी "शासनहर दूत" की कोटि के ही दूत हैं। लोगो भा "शासनहर दूत' का काट कहा पूत हा जैसे अनेक हथियारों के उल्लेख मिलते हैं। शस्त्रास्त्रो की ३. कविका सैन्य-प्रचार एवं यद्ध-विद्या सम्बन्धी यह परम्परा परवर्तीकालों में उत्तरोत्तर विकसित होती र ज्ञान: कवि सिद्ध ने प्रद्युम्नचरित में युद्ध वर्णन के प्रसंगो में कवि सिद्ध ने सम्भवतः पूर्व-साहित्यावलोकन तो किया विविध प्रकार की शब्दावलियों के प्रयोग किए हैं, जिनसे ही, साथ ही उसे समकालीन प्रचलित युद्ध-सामग्री की भी प्रतीत होता है कि वह युद्ध-विद्या का अच्छा ज्ञाता था। उसकी शब्दावलियों में से अच्छोह," कटक," सण्णाह, जानकारी थी, क्योकि प्रद्युम्नचरित मे कवि ने प्राच्यकपिण्य," सडंग", रन्धावार," चतुरगिणी सेना," एवं कालीन युद्ध-सामग्री के साथ-साथ समकालीन अनेक शस्त्रास्त्रों के उल्लेख लिए हैं। विविध बाणों, सिद्धियों चमु" के प्रयोग प्रा है। कृष्ण एवं शिशुपाल"-युद्ध, एवं विद्याओं के प्रकार भी उसमें उल्लिखित हैं। इनकी राजामधु एवं भीम-युद्ध, प्रद्युम्न एवं कालसबर-युद्ध," तथा प्रद्युम्न एवं कृष्ण के युद्ध ५ वर्णनों से भी हमारे वीकृत सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। उपर्युक्त अनुमान का समर्थन होता है। चुमनेवाले हथियार-खुरूप", कुन्त", बल्लभ", शस्त्रास्त्र-अनादिकाल से मानब अपने अस्तित्व की भाला। सुरक्षा के लिए विविध प्रकार के संघर्षो को करता आया काटने वाले हथियार-खड्ग", रांगचक्र", है सम्भवतः इसलिए नृतत्वशास्त्र की एक परिभाषा के अनुसार हथियारों के विधिवत् प्रयोग करने वाले को चूर-चूरकर डालने वाले हपियार--शैल", सब्बल", "मानव" कहा गया है। सिन्धुवाटी में जब खुदाई की गई शल", मुदगर", धन"। तो उसमें विविध प्रकार के आभूषण आलेख, मुहरें एवं दूर से फेंके जाने वाले प्रस्त्र-मोहनास्त्र"दिव्यास्त्र
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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