SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशष्टि इलाकापुरुष-राम, लक्ष्मण, रावण प्रिया का दुसह वियोग? कितनी विकट स्थिति है ? राम कषायों को जैन धर्म ही नहीं सभी धर्मानुयायी मानते हैं। अत्यन्त असमंजस्य में पड़ जाते हैं, कुछ समय के लिए इसमें लक्ष्मण को राम के प्रति अगाध स्नेह, क्रोध एवं किंकर्तव्यविमूह हो जाते हैं और कहते हैं कि यदि में सीता अहंकार तीनों गुण विद्यमान हैं। इन गुणों के कारण ही का परित्याग नहीं करता हूं तो इस मही पर मेरे समान लक्ष्मण नरक गामी कहे जा सकते हैं। इस बात को और कोई कृपण न होगा। गोस्वामी तुलसीदास ने अपने "राम चरित मानस" में "अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम्"-तत्वार्थ० अ०७ पुष्ट किया हैसूत्र ३८ अर्थात् जो पर अनुग्रह के लिए अपनी वस्तु का "काम, क्रोध, लोभ पर विजय प्राप्त करने के लिए त्याग किया जाता है उसे दान कहते हैं। लोगों में फैले अर्थात् अपनी नैतिकता बनाये रखने के लिए संयम की हुए अपवाद को दूर करने के लिए अपनी प्राणों से भी नितान्त आवश्यकता है।" प्रिय वस्तु सीता का यदि मैं परित्याग नहीं कर सकता तो भगवतगीता के अनुसार काम, क्रोध, लोभ नरक के मुझसे बड़ा और कौन कृपण होगा। द्वार हैं__इस स्थिति में सीता का परित्याग राम के लिए सच- "त्रिविधि नरकस्य द्वारं नाशनमात्मनः । मुच महान त्याग का आदर्श उपस्थित करता है। यह एक कामः क्रोधस्तथा लोभस्तास्मादेतत् त्रयं त्यजेत।" ऐसी घटना है जिससे राम सच्चे राम बने और कल्पान्त में स्थायी उनका यश आज भी दिग्दिगन्त व्यापी है। यदि तुलसी गीता की यह शिक्षा दुहराते नहीं थकतेउनके जीवन में यह घटना न घटती तो लोग राम राज्य काम, क्रोध, मद, मोह सब, नाथ नरक के पन्य । को इस प्रकार याद न करते ।। सब परिहरि रघुबीरहि, भजह भजहि जेहि सन्त ॥ लक्ष्मण की महत्ता का कारण राम का साहचर्य है।ॉ० बुल्के कहते हैं कि लक्ष्मण नरक में इस कारण वे उनके प्रेम के पीछे अपना समस्त सुख न्योछावर करते गये कि उन्होंने हिंसा की । हिंसा और अहिंसा के सम्बन्ध हए पाते हैं। राम को वनवास के लिए उद्यत देख लक्ष्मण प्रश्न उठता है कि क्या राम ने हिंसा नहीं की, राम ने भी उनके पीछे हो लेते है। यद्यपि पहले पिता के प्रति उन्हें हिंसा की जब म्लेच्छों से युद्ध किया तथा रावण के साथ कुछ रोष उत्पन्न होता है, पर बाद मे यह सोचकर सन्तोष युद्ध में भी हिंसा हुई, यह बात स्पष्ट नहीं होती कि लक्ष्मण कर लेते हैं कि न्याय-अन्याय बड़े भाई समझते है। मेरा हिंसा के कारण नरक गये। वह तो क्रोध, मान, मोह के कर्तव्य तो इनके साथ जाना है। वनवास में लक्ष्मण, राम कारण गये हैं। तथा सीता को सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखते हैं । राम यदि उपन्यास के विरुद्ध क्षण मात्र हिंसा होने से सभी के अनन्य आज्ञाकारी है। लंका मे युद्ध के समय जब इन्हें का कल्याण हो सकता है तो वह हिसा नहीं कहलायेगी। शक्ति लगती है तब राम बड़े दुःखी हो जाते है, करुण- रामचन्द्रजी ने क्षण मात्र में शक्ति का प्रयोग कर अन्याय विलाप करते हैं, पर विशल्या के स्पर्श से उनको व्यथा का उन्मूलन किया तथा सत्य, नीति, न्याय की विजय दूर हो जाती है। दिलाती। जैन राम कथाओं के अन्तर्गत लक्ष्मण के विषय में राम भक्ति में पल्लवित होने के पश्चात् रावण के एक बडी ही विसंगति है। ग्रन्थकार कहते हैं कि लक्ष्मण चरित्र, चित्रण में अन्तर पा गया है और यह कहा गया है नरक में गए परन्तु इस धारणा को कहीं भी पुष्ट नहीं किया कि रावण ने मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से सीता का हरण गया कि वे क्यों नरक में गये ? हमारे विचार में यह तर्क किया था। जैन रामकथाकारों ने रावण का चरित्र पर निकलता है कि जिसमें क्रोष, मान, माया, मोह, लोभ ये उठाने का प्रयास किया है। रावण में केवल एक दुर्वलता पाँच अवगुण होते हैं वह नरक का गामी है। इन पांच (शेष पृ० १४ पर)
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy