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त्रिशठि शलाका पुरुष-राम, लक्ष्मण, रावण
कु. विमा जैन (द्वारा डॉ० कस्तूरचन्द जैन)
भगवान महावीर के समय से लेकर बीसवी शताब्दी प्रतिवासुदेव ये किसी राजा की विभिन्न रानियों के पूत्र के अन्त तक २४०० वर्षों के दीर्घकाल में जैन मनीषियों ने होते हैं। इनकी जीवनियाँ जैन धर्म में रामायण, महाभारत
न-साहित्य में विपूल वाङ्मय का निर्माण किया है। तथा पुराणों का स्थान लेती है। इस अवपिणी अवधि में उत्पन्न हुए तिरसठ श्लाका- रामचन्द्रजी का जीवन आलौकिक घटनाओं से भरा पुरुषों में तीर्थंकरों के समान ही राम का नाम अति
हुआ है । वे एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजे जाते हैं। विख्यात है। बल्कि यह कहने में भी अत्युक्ति न होगी कि
पिता-राजा दशरथ के वे परम आज्ञाकारी थे। माता भारतवर्ष में उत्पन्न हुए महापुरुषों में राम का नाम ही
कैकयी के कहने से कि भरत को राज्य और राम को सबसे अधिक लोगों के द्वारा आहुत होता है। प्राचीन
वनवास की आज्ञा मिली। वे सहर्ष वन को जाने के लिए समय से लेकर अब तक राम का नाम इतना अधिक
तत्पर हो जाते हैं। उन्हें पता था कि मेरे रहते हुए भरत प्रसिद्ध क्यों हुआ? लोग बात-बात में राम की दुहाई क्यों
का राज्य कभी भी वृद्धिगत नही हो सकेगा इसलिए देते हैं, और अत्यन्त श्रद्धा एवं भक्ति के साथ राम-राज्य
उन्होने बनवास करना ही श्रेयस्कर समझा था। वनवासके का स्मरण क्यों किया जाता है ? इन प्रश्नों के उत्तर पर
समय उन्होंने कितने ही संकटग्रस्त राजाओं का संरक्षण जब हम गहराई के साथ विचार करते हैं तो ज्ञात होता है
किया। कि राम के जीवन में ऐसी अनेक घटनाएं घटी हैं जिससे
लंकाधिपति रावण ने दण्डकवन से सीता का अपहरण उनका नाम प्रत्येक भारतीय की रग-रग में समा गया है,
किया था उसे वापस करने के लिए रामचन्द्रजी ने रावण और यही कारण है कि वे इतने अधिक लोकप्रिय महा
से धर्मयुद्ध किया था। इस धर्मयुद्ध में रावण के अनुज पुरुष सिड हुए हैं।
विभीषण, वानरवंश के प्रमुख सुग्रीव तथा हनुमान और राम का महत्व प्रथमतः हमें वाल्मीकि रामायण में विराधित आदि विद्याधरों ने पूर्ण सहयोग किया था। मिलता है जिसमें राम को अवतारी पुरुष माना गया है। भूमिगोचरी राम-लक्ष्मण द्वारा गगनगामी विद्याधरों के महाभारत में उनका अवतारी स्वरूप है। राम आदि से साथ युद्ध पर विजय प्राप्त करना, यह उनके अलौकिक अन्त तक मनुष्य ही हैं । बौद्ध महात्मा बुद्ध राम का पुनर- आत्मबल का परिचायक है। रावण मरण होने पर रामअवतार मानते हैं। इसी प्रकार जैनियों में राम कथा के चन्द्र जी उसके परिवार से आत्मीयपन व्यवहार करते हैं। पात्रों को अपने धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। उन्होंने उद्घोष किया था कि मुझे अन्याय का प्रतिकार राम (परम), सक्ष्मण और रावण न केवल जैन धर्माव- करने के लिए ही रावण से युद्ध करना पड़ा। लम्बी माने जाते हैं, लेकिन तीनों ही जैनियों के शिशिष्ट
लोकापवाद के कारण सीता का परित्याग करने से वे पनाकापुरुषों में माने गये हैं।
अधिक चर्चा में आये । आज हजारों वर्षों के बाद भी लोग इन विशिष्ट महापुरुषों का वर्णन इस प्रकार है:- राम राज्य की याद करते हैं। जब लोकापवाद की चर्चा
२४ तीर्थकर (जैन धर्मोपदेशक) १२ चक्रवर्ती (भरत राम के सामने आयी तो वे विचार करते हैं कि-एक के छ खण्डों के सम्राट) तमा बलदेव वासुदेव और भोर लोकापवाद सामने खड़ा है, एक ओर निर्दोष प्राण