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महान सम्राट अशोक का संवत्सर ?
श्री अभय प्रकाश जैन
सम्राट अशोक अपने काल का सबसे शक्तिशाली राजा (ख) वहसपति मित्रस [वहस्पति मित्रस्य] था। सभी प्रमुख राजाओ ने अपने अपने संवत् चलाये (ग) क तुलेन गोपानिया [मातुलेन गोपालिका] लेकिन अशोक संवत् मैंने कही नही पढ़ा था। मेरे मन में (घ) वैहिदरी-पुत्रेन [वैहिंदरी पुत्रेण] उत्सुकता थी कि अशोक ने अपना संवत् अवश्य चलाया (ङ) आगाढ़ सेने न लेनं [आसाढ़ सेने न लपनं] होगा, लेकिन पुष्टि हेतु प्रमाण नही मिल पा रहे थे। (च) कारित [ ] दस [कारितं उदाकस्य दश ] अशोक से सम्बन्धित साहित्य मे काल गणना के कुछ (छ) मे सबछरेवपिक [?] अरहं [मे सवत्सरे प्रमाण मिले फिर सूत्र पकड़ते-पकडते "गुप्त सवत्सर" भी
कश्शपीपान अह] "हिमवन्त थेरावली" मे मिल ही गया। उसमे लिखा है
(ज) [तानं [• ताना] "निर्वाण से २३६ वर्ष बीतने पर' मगधाधिपति अशोक ने कलिंग पर चढ़ाई की वहां के राजा क्षेमराज को अपनी
(द्वियीय) आज्ञा मनवा कर वहाँ पर अपना गुप्त सवत्सर चलाया।' (') अहिच्छत्राया राज्ञो शोनकापन पुत्रस्य बंगपालस्य ___ इस सन्दर्भ से कम से कम यह तो पता चला कि अहिच्छवाया राज्ञः शोनकापन पुत्रस्य बगपालस्य अशोक ने अपना कोई सवत्स र स्थापित किया था। इस (२) पुत्रस्य राज्ञो तेवणी पूत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण पुत्रस्य संवत्सर के विषय मे "अस्ति नास्ति' के दो पक्ष विचा
राज्ञः वर्णी पुत्रस्य भागतस्य पुत्रेण रार्थ सामने आते है पहला पक्ष-अशोक ने २६० ई.पू० (पुराण मतानुसार) कलिंग पर क्रूर आक्रमण किया था। (३) वहिदरी पुत्रेण आसाढ़ सेनेन कारितं [1] उसी वर्ष अशोक की कनिष्ठा महिषी तिष्य रक्षिता ने वैहिदरी पुढेष आसाढ़ सेनेन कारिते [लपनम् ॥ कुमार "तिष्य गुप्त" को जन्म दिया प्रतीत होता है।
समूचे अभिलेख पाठ से ज्ञात होता है कि [क] वहइसी अवसर पर "गुप्त सवत्सर" की सम्भावना मन को
स्पति मित्र के मामा [ख] आसाढ सेन ने [ग' दसवें सव
शनिवार ह लेती है। दसरा पक्ष - अद्यावधि कोई ऐसा सवत् त्सर में 'लपन' गफा का निर्माण कराया अब प्रश्न उठता शृंखला नही मिली, जिसे “गुप्त संवत्", "कुणाल संवत्" है वृहस्पति मित्र कौन है। प्रायः शोध विद्वानों का अनुया "अशोक संवत" नाम दिया जा सके। अतः प्रस्तुत मान है कि हाथी गम्फा अभिलेख मे चचित वहस्पति मित्र विचारसारिणी को छोड़कर आगे बढ़ते है।
यहां वांछनीय है। परन्तु वह वृहस्पति मित्र भी तो अद्यानिरन्तर अध्ययन मनन के पश्चात् भी मुझे यह वधि परिचय निरपेक्ष ही रह गया है। इतिहास मनीषी विश्वास नहीं होता था कि अशोक ने कोई संवत्सर नही डॉ. कागीप्रसाद जायसवाल ने पुष्प नक्षत्र के अधिपति चलाया होगा अथवा उसके अनुयायी उसके नाम से 'काल वृहस्पति को सूत्र मानकर वृहस्पति मित्र को शुंगवंशी गणना' स्थापित नहीं कर पाये। इस बीच मेरी दृष्टि
पुष्पमित्र से अभिन्न ठहराया है। इधर डॉ० म० म० 'पपोसा गुहा' अभिलेख पर पड़ी।
मीराशी ने शुंगवंशी पुष्पमित्र के प्रपौत्र ओद्राक के सामन्त उसका पाठ है--
वहस्पति मित्र को खोज निकाला है और उसे "मित्र(क) राशो गोपाली पुत्रस [राज्ञः गोपाली पुत्रस्य] कुलोत्पन्न' ठहराते हुए मित्रान्त नामा कुछ एक व्यक्तियों