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१, बर्व ४३, कि०२
अनेकान्त
शनिग्रह जन्य अरिष्ट का निवारक तथा नेमिनाथ को राहु निवारण में शेष दो दो तीर्थकर समर्थ हैं। (६४३=१८, ग्रह जन्य अरिष्ट का निवारक बतलाया गया है। मल्लि- ३४२६, १८+६=२४)। इस प्रकार नवग्रह जन्य नाथ और पार्श्वनाथ को केतु ग्रह जन्य अरिष्ट का निवा- अरिष्ट निवारण के सम्बन्ध में चौबीस तीर्थंकरों का विभारक बतलाया गया है।
जन युक्तिसंगत हो जाता। यहाँ यह विचारणीय है कि कही एक तीर्थकर एक नवग्रह पूजा की जयमाला के एक पद्य में लिखा ग्रह के अरिष्ट का निवारण करने में समर्थ है तथा कहीं है-'पंच ज्योतिषी देव सब मिल पजें प्रभु पाय।' पता दो तीर्थकर एक ग्रह का अरिष्ट निवारण करते है और नही किस शास्त्र मे ऐसा लिखा है कि पांच प्रकार के कही आठ तीर्थकर मिल कर एक ग्रह का अरिष्ट निवा- ज्योतिषी देव मिल करके प्रभु के चरणों की सेवा करते रण करते हैं। बुध ग्रह जन्य अरिष्ट का निवारण करने है। नवग्रह पूजा के बाद नवग्रह शान्ति स्तोत्र दिया गया के लिए आठ तीर्थङ्करों की आवश्यकता होती है। इसी है। उसमे लिखा हैप्रकार गुरु ग्रह जन्य अरिष्ट का निवारण करने के लिए जिनेन्द्रा: खेवरा ज्ञेया: पूजनीया विधि क्रमात् । भी आठ तीर्थङ्करों की आवश्यकता पड़ती है। केतु ग्रह पुष्पैविलेपनै—पर्ने वैद्यै स्तुस्टि हेतवे ॥ जन्य अरिष्ट का निवारण दो तीर्थङ्कर कर देते है। शेष जन्म लग्न च गशि च यदि पीडयन्ति खेचराः । छह ग्रहो के अरिष्ट का निवारण एक एक तीर्थङ्कर द्वारा तदा सम्मूजयेद् धीमान् खेचरान् सह तान् जिनान् ।। हो गया है। सम्भवत: बुध और गुरु ग्रह जन्य अरिष्ट इसका तात्पर्य यही है कि जिस प्रकार जिनेन्द्र भगबहुत भारी होता है। तभी तो आठ आठ तीर्थङ्कर मिल वान् पूजनीय हैं उसी प्रकार आकाश स्थित नवग्रह भी कर इनके अरिष्ट निवारण में समर्थ होते है।
पूजनीय है। यह कैसे जान लिया गया कि पद्मप्रभ सूर्य ग्रह जन्य
नवग्रह शान्ति स्तोत्र के बाद नव ग्रहों के जाप्य भी अरिष्ट के निवारक है। चन्द्रप्रभ चन्द्र ग्रह जन्य अरिष्ट दिये गये है। भिन्न-भिन्न ग्रहों की शान्ति के लिए जाप्यों के निवारक हैं। वासुपूज्य मंगल ग्रह जन्य अरिष्ट क की संख्या सात हजार से लेकर तेईस हजार बतलाई गई निवारक है । पुष्पदन्त शुक्र ग्रह जन्य अरिष्ट के निवारक है। सूर्य ग्रह को शान्ति सात हजार जाप्यो से हो जाती है। मुनि सुव्रतनाथ शनि ग्रह जन्य अरिष्ट के निवारक है तो शनि ग्रह को शान्ति तेईस हजार जाप्यों से होती हैं। नेमिनाथ राहु ग्रह जन्य अरिष्ट के निवारक है। है। ग्रहो के जाप्यो की संख्या में इस प्रकार का अन्तर मल्लिनाथ और पार्श्वनाथ केतु ग्रह जन्य अरिष्ट के निवा- सम्भवतः ग्रहो के बलाबल की दृष्टि से किया गया होगा। रक हैं। जबकि विमलनाथ आदि आठ तीथंङ्कर बुध ग्रह जो ग्रह अधिक बलवान् है उसको शान्ति के लिए तेईस जन्य अरिष्ट का निवारण करते है और ऋषभनाथ आदि हजार जाप्यो का विधान किया गया है और कम वलवान आठ तीर्थङ्कर गुरु ग्रह जन्य अरिष्ट का निवारण करते है। ग्रह की शान्ति के लिए सात हजार जाप्यो का विधान है।
नवग्रह पूजा के लेखक ने नवग्रह जन्य अरिष्ट के इस प्रकार नवग्रह पूजा के सम्बन्ध में विचार करने निवारण के लिए तीर्थङ्करों का जो विभाजन किया है के बाद इस लेख के उपसंहार में जैनागम के प्रकाण्ड उसका आधार क्या है। क्या किसी शास्त्र में ऐसा लिखा मनीषी आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी के कुछ अशो को यहां है अथवा लेखक की यह कोरी कल्पना है। यदि कल्पना उद्धत करना आवश्यक प्रतीत हो रहा है। उन्होंने समयके आधार से ही विभाजन करना था तो निम्न प्रकार से सार में लिखा हैविभाजन किया जा सकता था जो युक्तिसगत होता। जो भण्णदि हिंसामि य हिसिज्जामि य परेहि सत्तेहि। प्रथम छह ग्रह जन्य अरिष्ट के निवारण में क्रमशः तीन- सो मूढो अण्णाणी णाणी एतो दू विवरीदो ।। तीन तीर्थकर समर्थ है तथा शेष तीन ग्रह जन्य के अरिष्ट
(शेष पृ०७ पर)