SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रोम् प्रहम् JALIA THIR परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वर्ष ४३ किरण २ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण संवत् २५१६, वि० सं० २०४७ अप्रैल-जन १९९० - - अनेकान्त-महिमा अनंत धर्मणस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः । अनेकान्तमयीमतिनित्यमेव प्रकाशताम् ॥ जेण विणा लोगस्स वियवहारो सव्वहा ण णिध्वडइ। तस्स भवनक्कगरुणो णमो अणेगंतवायस्स ॥' परमागमस्य बीजं निषिद्ध जात्यन्ध-सिन्धुरभिधानम्। सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥' भइंमिच्छादसण समूह महियस्स अमयसारस्स । जिणवयणस्स भगवओ संविग्गमहाहिगमस्स ।' अनन्त-धर्मा-तत्त्वों अथवा चैतन्य-परम-आत्मा को पृथक-भिन्न-रूप दर्शाने वाली, अनेकान्तमयी मूर्ति-जिनवाणी, नित्य-त्रिकाल ही प्रकाश करती रहे-हमारी अन्तर्योति को जागृत करती रहे। जिसके बिना लोक का व्यवहार सर्वथा ही नहीं बन सकता, उस भुवन के गुरु-असाधारणगुरु, अनेकान्तवाद को नमस्कार हो । जन्मान्ध पुरुषों के हस्तिविधान रूप एकांत को दूर करने वाले, समस्त नयों से प्रकाशित, वस्तु-स्वभावों के विरोधों का मन्थन करने वाले उत्कृष्ट जैन सिद्धान्त के जीवनभूत, एक पक्ष रहित अनेकान्त-स्याद्वाद को नमस्कार करता हूँ।। मिथ्यादर्शन समूह का विनाश करने वाले, अमृतसार रूप; सुखपूर्वक समझ में आने वाले; भगवान जिन के (अनेकान्त गर्भित) बचन के भद्र (कल्याण) हों।
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy