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२२, बर्ष ४२, कि०४
भनेकान्त
'समन्वयी साध साहित्यकारमेंट किया गया था। उसके सम्पादित सामग्री की सबसे बड़ी उपलब्धि है पाठकों को लिए मंगल कामनाएँ भेजने वाले महानुभावों में से जो सद्-असद् प्रवृत्तियों का अवबोध और उसके द्वारा हमारे बीच नहीं रहे, उनके उद्गार-'अशेष आशोष' जीवन को उन्मार्ग से हटाकर सन्मार्ग की ओर उन्मुख उपखंड में वे दिए गए हैं। शेष तथा अन्य 'जीवेम शरदः करना । इसी अध्याय में 'चित्रावली भी दी गई है, जिनमें शतम्' उपखंर में सम्मिलित किए गए हैं। इन भावोद्गारों बड़े और विरल महापुरुषों के साथ यशपालजी दर्शाये को पढ़कर पता चलता है कि यशपालजी के प्रति देश गए हैं। विदेश में कितनी अधिक प्रात्मीयता है।
'निष्काम साधक' का अगला अध्याय है-'रचना 'व्यक्तित्व और कृतित्व' अध्याय में भारत तथा अन्य संसार ।' श्री यशपालजी ने समाज तथा देश की जो सेवा देशों के उन व्यक्तियों के संस्मरण दिए गए हैं, जिन्हें को है, उसका माध्यम रहा है उनकी लेखनी। उन्होंने यशपालजी के समाकं में आने का अवसर मिला था। इन विविध विधाओं में साहित्य रचा है। कहानियों, कविताओं, सभी संस्मरणों को तीन उपखंडों में विभाजित किया गया संस्मरणों, बोध-कथानों, निबंधों तथा यात्रा-वृत्तान्तों आदि. है। 'पुण्य पुरुषों की कलम से' की सामग्री 'समन्वयी साधु आदि के द्वारा उन्होने हिन्दी साहित्य के भंडार को समुद्र साहित्यकार' हस्तलिखित ग्रंथ के उन हितैषियों को है, किया है। सकड़ों कृतियों में से कतिपय रचनाएँ बानगी के जिनका निधन हो गया है। अन्य संस्मरणों को 'समका- रूप मे इस अध्याय में दी गई है। इससे यशपालजी का लोनों की दष्टि में दिया गया है। पारिवारिक उपखंड मे साहित्यिक व्यक्तित्व ही उजागर नहीं हमा है, अपितु उनकी परिवार के सदस्यों की भावनाएँ संकलित हैं। कहने की अभिव्यक्ति क्षमता और भाषा-विषयक विलक्षणता का भी आवश्यकता नहीं कि सारे सस्मरण यशपालजी की मान- आभास हो जाता है। बीय गुणवत्ता तथा उनके द्वारा की गई मानवीय मूल्यों की 'जननी जन्म भूमिश्च' नामक अध्याय मे श्री यशपाल उपासना पर प्रकाश डालते हैं।
जी को जन्म भूमि ब्रज भूमि के विषय मे उन मूर्धन्य __'निष्काम साधक' का अगला अध्याय है 'प्रवासी विद्वानो की रचनाओं का संकलन किया गया है, जिनसे भारतीयों के बीच' यशपालजी को संसार के लगभग ४२ वहां की संस्कृति, साहित्य और धर्म का महत्त्व मुखर हो देशों में जाने का सुयोग मिला है। विभिन्न देशो मे उनके उठा है। ब्रज की विभूतियों का भी सहज में अवबोध हो योगदान के सम्बन्ध में जो लेख प्राप्त हुए है, उन्हें इस जाता है। खंड में दिया गया है। उस सबसे स्पष्ट हो जाता है कि 'जैन संस्कृति' अगला अध्याय है। यशपालजी का यशपालजी जहां कहीं गए हैं, भारतीय संस्कृति, भारतीय जन्म जैन परिवार में हुआ, उनमें जिनधर्म के प्रति गहरी दर्शन और हिन्दी साहित्य का सन्देश लेकर गए हैं। इस आस्था है। इस अध्याय में जिनधर्म, दर्शन और संस्कृति सम्देश-थाती का विभिन्न देशों के निवासियों विशेषकर को उजागर करने वाली रचनाओं को संकलित किया गया प्रवासी भारतीयों पर कितना गहरा प्रभाव पड़ा है, उसका है। लेखक रहे हैं जैन जगत के जाने-माने मनीषी। अनुमान इस खंड में प्रकाशित सामग्री को वांचकर लगाया 'भारतीय संस्कृति' ग्रंथ का अगला अध्याय है। इसमे जा सकता है।
उन विरल विद्वानों के अमूल्य निबंधों का संकलन है, ___ 'जीवन के विविध सोपान' नामक अगले अध्याय में जिनका महत्त्व आज भी ज्यों-का-त्यों सुरक्षित है । सर्वोदय भी यशपालजी स्वयं अपने जीवन-विकास की कहानी (मो० क. गांधी), प्राचीन भारतीय परम्परा में त्रेत लिखते हैं। ग्रामीण परिवेश तथा परिवार से उन्हें जो परात्पर-तत्त्व (श्री अरविन्द), भारतीय संस्कृति में अद्वैत संस्कार बचपन में प्राप्त हुए हैं, उन्हें किस प्रकार पचाया का अधिष्ठान (साने गुरुजी) मन की महिमा (स्वामी
और परिपुष्ट किया है, उस सबका विस्तारपूर्वक उल्लेख मुक्तानन्द परमहंस), अणुव्रत की क्रान्तिकारी पृष्ठभूमि इस अध्याय की सामग्री में किया गया है । इस अध्याय में (आचार्य तुलमी), दृश्य से द्वष्टा की ओर यात्रा (प्राचार्य