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रजनीश) सुखी इसी जीवन में (स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती), भारतीय दर्शन ( युवाचार्य महाप्रज्ञ), अहिंसा सार्वभौम (जैनेन्द्र कुमार ), श्री अरविन्द और माताजी के जीवन-दर्शन का प्रधान प्रभाव (डा० इन्द्रसेन ) भारतीय संस्कृति-स्वरूप चिन्तन (डा० बल्देव उपाध्याय), भारतीय संस्कृति के अवदान (डा० प्रभाकर माचवे), भारतीय ललित कलाओं का आकलन (प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी), भारतीय संस्कृति और श्रमण परम्परा (डा० हरीन्द्रभूषण जैन), लोककल्याण के लिए विनोबा के सिद्धान्तो की सार्थ कता (सुशील अग्रवाल), भारत का एक विश्वासी खेल छक्का चपेटा (कृष्णानन्द गुप्त ) सात निषेधात्मक सूत्र ( चन्द्रगुप्त वार्ष्णेय ), तथा भारतीय जीवन में लोक-शक्ति का अधिष्ठान (सिद्धराज ढड्ढा) जैसे सुधी लेखकों की अमृतवाणी को दायित किया गया है। इन सभी सिद्धान्तो ने श्री यशपालजी के जीवन को प्रभावित किया है। कहा जा सकता है कि जैन सिद्धान्तों से अनुप्राणित गांधी दर्शन को छाप उनके जीवन पर सर्वाधिक पड़ी है।
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इसी प्रकार 'निष्काम साधक' मे अगला अध्याय है। 'हिन्दी का वैभव' श्री वाली का सम्पूर्ण जीवन साहित्य की सेवा में ही व्यतीत हुआ है। उन्होने ज शताब्दी की सुदीर्घ अवधि मे कहानिया, कविताएँ, निबंध, यात्रा विवरण आदि अनेक विधाओं मे हिन्दी साहित्य की धाराओं को परिपुष्ट किया है। इस अध्याय में हिन्दी के
आधुनिक साहित्य का मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है।
ग्रंथराज का अन्तिम अध्याय है 'परिशिष्ट' रूप का । जिसमें विवेच्य श्री जैन की जीवन-यात्रा की तालिका प्रस्तुत की गई है. जो इतिहास के क्रमिक विकास पर अच्छा प्रकाश डालती है । परिशिष्ट दूसरे मे आपकी रच नाओं की तालिका दी गई है।
इतने विशाल महाग्रंथ के प्रकाशन से जहाँ एक ओर श्री यशपालजी की आदर्श जीवन यात्रा का क्रमबद्ध विकासआभास मिलता है, वहां दूसरी ओर भारतीय संस्कृति साहित्य, इतिहास, कला, दर्शन और धर्म का विरल भंडार एक स्थान पर उपलब्ध हो जाता है । अन्वेषण-क्षेत्र के अध्येताओं के लिए प्रस्तुत महाग्रंथ एक सन्दर्भ-प्रथ की नाई अपनी उपयोगिता रखता है। प्रथ की साज-सभार इतनी आकर्षक और मूल्यवान है कि दर्शक और पाठक का मन पन्ने पलटते अघाता नही । हर पन्ने में मानवीय मूल्यो का प्रकाश विकीर्ण होता दीख पडता है।
इतने विशाल किन्तु विचारवंत सामग्री का सवाहक 'निष्काम साधक' महाग्रथ का सम्पादन और प्रकाशन निश्चित ही हिन्दी ससार के गौरव को बर्द्धमान करता है और मानवीय मूल्यों का महत्व-वर्द्धन।
इत्यलम् ।
आजीवन सदस्यता शुल्क : १०१.०० ६०
वार्षिक मूल्य : ६) ३०, इस अंक का मूल्य । १ रुपया ५० पैसे
मंगल कलश ३६४, सर्वोदय नगर, आगरा रोड, अलीगढ़-१
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कागज प्राप्ति :- श्रीमती अंगूरी देवी जैन (धर्मपत्नी श्री शान्तिलाल जैन कागजी ) नई दिल्ली-२ के सौजन्य से
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