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समीक्षा।
'निष्काम साधक' (श्री यशपाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ)
0 समीक्षक-डॉ. महेन्द्र सागर प्रचडिया प्रकाशक : श्री यशपाल जैन अभिनन्दन समारोह उनकी क्या और कैसी धारणा रही है, उसका आस्वादन समिति द्वारा सस्ता साहित्य मण्डल,९१७७, कनाट सरकस, उन्ही की शब्दावली मे द्रष्टव्य है, यथा : नई दिल्ली।
"इस ग्रंथ मे बहुत-कुछ ऐसा है, जो पाठकों को प्रेरणा पृष्ठ-संख्या : बड़े आकार के आठ सौ अट्ठाईस । १०० दे सकता है। यशपालजी के जीवन में बड़े उतार-चढ़ाव से अधिक चित्र आर्ट पेपर पर, नयनाभिराम प्रकाशन । बाए हैं, उन्होने अच्छे-बुरे दोनों तरह के दिन देखे है। किंतु मूल्यमान् : रु. २५१-०० मात्र ।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्हं ने नीति के गुणों के समूह को द्रव्य कहते है । जीव-अजीव, धर्म- मार्ग को कभी नहीं छोड़ा। इतना ही नही, जिसे उन्होंने अधर्म, आकाश और काल नामक षद्रव्यो के समूह को ठीक माना, उस पर दृढतापूर्वक चलते भी रहे हैं।" कहते है संसार । ससार में कोई वदनोय है तो वह है गुण। "हम निस्सकोच कह सकते है कि यशपालजी में कुछ गुण सदा शाश्वत रहते हैं। जीव अथवा प्राण एक अवि- ऐसी विशेषतायें है जो सामान्यत: दूसरों में नही मिलती। नाशी द्रव्य है, गुण है। प्राण जब पर्याय धारण करता है वह परिश्रमशील है, मुक्त भाव से लिखते हैं और मुक्त तब कहलाता है प्राणी । पर्याय बदलती रहती है। भाव से अपनी बात भी कहते है। अपनी लेखनी और
अभिनन्दन ग्रंथ शाब्दिक वंदना का समवाय है । इसमें अपनी वाणी पर उन्होने कभी कोई अकूश स्वीकार नहीं जिस व्यक्ति पर आधारित अभिनन्दन ग्रंथ रचा जाता है, किया। उसके गुणों का वर्णन किया जाता है। विवेच्य अभिनंदन वर्तमान युग मे जबकि मूल्यो का संकट उपस्थित हो ग्रंथ साहित्य-वारिधि, पद्मश्री, श्री यशपाल जी जैन के गया है, यह काम आसान नहीं कि व्यक्ति जो चाहे, वह गुणों की मंजूषा है। इसका विशालकाय होना इस बात कहे और जो चाहे, वह लिखे; पर यशपाल जी ने वह रास्ता का प्रमाण है कि उनमें 'गुणो' का परिमाण कितना विराट आरम्भ से ही चुना है और अब भी उसी रास्ते पर और बजनीक है। अभिनन्दन-परम्परा में नागरिक-प्रमुख निर्भीकतापूर्वक चले जा रहे हैं। इसमें जो खतरे है, उनकी भारतरत्न श्रीमती इन्दिरा अभिनन्दन ग्रन्थ विशालतम उन्होंने कभी परवाह नही की।। प्रकट हुआ है और संतजगत में अभिनन्दन ग्रन्थ पहल "इस ग्रथ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमे करता परमवद्य आचार्य देशभूषणजी महाराज पर आधा- एक प.म आस्थावान आशावादी, मूक और मुक्त व्यक्ति रित अभिनन्दन ग्रन्थ । साहित्यिकों-सामाजिकों में जितने की कहानी है। इस ग्रय को जो भी पढ़ेगा, उसे कुछ न अभिनन्दन-ग्रंथ प्रकट हुए है, उनमे 'निष्काम साधक' कुछ अवश्य मिलेगा।" सम्पाद: की शब्दावली में 'निष्काम निस्सदेह निराला है। निरुपमेय है।
साधक' की राम-कहानी साफ और सुथरी शैली मे कही हिन्दी मे सम्पादन की परम्परा आधुनिक हिन्दी गई है।" साहित्य के पुरोधा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी द्वारा प्रवर्तित ग्रंथ का प्रारम्भ सन्देश और शुभ कामनाओं से होता है। अभिनन्दन-ग्रन्थों के सम्पादन मे सींक, बडी करने है, जिसमे अनेक महापुरुषों के उद्बोधक विचार और वालों मे अगुआ रहे है राजसम्मानित सांसद प. बनारसी वरिष्ठ जनों के मंगल-वचन तथा देश-विदेश से प्राप्त शुभ दास चतुर्वेदी । 'निष्काम साधक' के प्रधान सम्पादक है- कामनाएं संग्रहीत हैं। सन् १९७२ में षष्ठि-पूर्ति के अवपं०बनारसीदास चतुर्वेदी । 'निष्काम साधक' के विषय में सर पर श्री यशपालजी को एक विशाल हस्त-लिखित प्रथ