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v, वर्ष ४३, कि० १
अनेकान्त
क्योंकि
विशेषार्थ में जो कहा है कि-परन्तु धवलाकार ने १३ अंगुल से अधिक के स्थान में १३३ अंगुल से कुछ कम ग्रहण किया है। यह बात उचित नहीं बैठती है, क्योंकि एक तो यहां (मूल में) परिधि निकाली भी नहीं गई है और साधिक १३३ अंगुल परिधि मे ही पाते हैं न कि क्षेत्रफल में। पर यहां तो ७६०५६६४१५० प्रवर योजनो मे १३३ अंगुलों को मिलाने के लिए कहा है। मिलाने में यानी योग करने में समान इकाई वाली चीज ही सदा मिलाई जाती है। ऐसा नहीं कि वर्गगज में गज भी मिला दिये जायें। उसी तरह ये देशोन १३३ अंगुल थी प्रतरांगुल (वांगुल) स्वरूप ही होने चाहिए, क्योंकि इनका क्षेत्रफल में प्रक्षेप (मिलाना या जोड़ना) करने के लिए कहा गया है। ३३ अंगुल' इस संख्या की समानता देखकर इन्हें परिधि विषयक कैसे समान लिया जाय? यह तो अनुचित बात है, अतः विशेषार्थ में से-"परन्तु धवलाकार ने ................"ऊपर से" इतना प्रकरण अपनेतब्य है। फिर भी पृष्ठ २५६ में १३, अंगलों के मिलाने की प्रक्रिया तथा उसमे भी देशोनत्व की गणित किन नियमों से हुई, यह विचारणीय अवश्य है। जम्बूदीप की परिधि ३१६२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष और साधिक १३३ अंगल होती है। यथा-जम्बूद्वीप का विष्कम्भ १००००० योजन; १०००००x१०=३१६२२७ यो., ३ कोश, १२८ धनुष, १३३ अंगुल साधिक-परिधि।
परिधि-साधिक ३१६२२७३ योजन 1. क्षेत्रफल = परिधि व्यास/४ व्यास%D१०.००० योजन
' ३१६२२७३-100000 -साधिक ७६०५६६४१५० वर्गयोजन (प्रतरयोजन) जम्बूढीप का क्षेत्रफल
[जंबूदीवपण्णत्ति पृ० ३] अथवा :"जम्बूद्वीप का सूक्ष्म क्षेत्रफल=सूक्ष्मपरिधि x व्यास का चौथाई
३१६२२७ यो० ३ को. १२८ धनुष १३१ अगुल साधिक X २५००० यो. =७९०५६६४१५० वर्गयोजन १ वर्गकोश, १५१५ वर्ग धनुष, २ वर्ग हाथ, १२ वर्ग अंगुल [त्रिलोकसार गा. ३११ पृ. २६० सं० रतनचन्द्र मुख्तार] यानी ७६०५६६४१५० प्रतरयोजन व साधिक १ वर्गकोश
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बाबूलाल जैन
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