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महाराष्ट्र में जैन धर्म
थे। बूचिराज ने बेलगांव में रट्ट जिनालय भी बनवाया पास तेरदल में प्राप्त शिलालेख से पता चलता है कि और मल्लिकार्जन के पुत्र केशीराज ने सौंदंती में मल्लिका- निम्बदेव ने रूपनारायण मन्दिर के लिए बड़ी मारी र्जुन जिनालय बनवाया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सम्पत्ति दान दी थो। (Ind. Ant. Vol XIV P. 193 मुनि चन्द्रदेव इस राजा के धर्मगुरू और उसके युवराज के Ep Ind. Vol. 3 pp. 207). शिक्षक थे। उन्होंने संघकाल में प्रधानमंत्री का पदभार चालुक्य सामंत शिलाहार वंश के राजा गण्डरादित्य संभाला और शस्त्र भी उठाये शदमन के लिए। बाद में द्वारा कोल्हापुर अभिलेव के अनुसार उसके सामंत नोलंब उन्होंने कोलिंग में मन्दिर बनवाये और फिर जिन दीक्षा को सन् १११५ में दो ग्राम दिये गये थे। इसमें नोलम्ब धारण की। (An. Ref. Inde-Ep. 53-54p. 31). को सम्यक्त्व रत्नाकर तथा पद्मावती देवी लन्धवरप्रसाद
कोंकण के शिलाहारों का बेलगांव और कोल्हापुर में जैसे विशेषणों से सम्मानित किया गया है। (Ep. Ind. शासन था। उनमें से प्रसिस जैन राजा गण्डरादित्य Vol. 19 Page 30) इससे नोलम्ब का जैन होना १००७-६ AD.) ने इरुकुडी में एक जिनालय बनवाया। असंदिग्ध है। कोल्हापुर के ही सन् ११३५ के एक अन्य उसका निम्बदेव देवरल नामक सेनापति आजुरिका (वर्त- लेख मे राजा गण्डरादित्य के सामत निम्बदेव द्वारा ही मान आजरे) में पपावती का भक्त था और माणिक्यनन्दि एक जैन मन्दिर के निर्माण का तथा वीरवलज लोगो के का शिष्य था। उसने अनेक ग्राम दाम दिये । उसके सना- संघ द्वारा आचार्य श्रुतकीति को दान दिये जाने का वर्णन पति बोप्पण कालन व लक्ष्मीधर भी परम जैन भक्त थे है। कोल्हापुर के महालक्ष्मी मन्दिर मे प्राप्त एक लेख में जिन्होने अनेक जैन मन्दिर बनवाये । भोज द्वितीय भी सामत निम्बदेव के जिन मन्दिर निर्माण का उल्लेख (१९६५-१२०५ A.D.) भी जैन था। विशालकीति पंडित मिलता है जिसे माघनंदि ने बनवाया था (Ep. Ind. देव उसके गुरू थे। इसी के शासनकाल में सोमदेव ने Vol. 27 Page 176) यहां यह उल्लेखनीय है कि यह १२०५ A.D. मे शब्दार्णव चंद्रिका नामक टीका गण्डरा. मन्दिर आज वैष्णवों के अधिकार में है। दित्य द्वारा निर्मित आजुरिका ग्राम के त्रिभुवन तिलक शुक्रवार गेट के पास ही एक दूसरा अभिलेख ११४३ नेमि जिनालय में पूरी की थी
AD. का मिला है जिसमें हाविशहेरिडिगे (आधुनिक "श्री कोल्हापुर देशान्तर भवार्जुरिका महास्थान
हेरले) मे निर्मापित जैन मन्दिर के लिए बासुदेव द्वारा युधिष्ठिरावतार महामण्डलेश्वर श्री गण्डरादित्यदेवनिर्मा. प्रदत्त दान का उल्लेख है । यह वासुदेव महानन्दि विजयापित त्रिभूवनतिलक जिनालये ....। (शब्दार्णव चंद्रिका) दित्य का शिष्य और गण्डरादित्य का पुत्र था । माघनन्दि
इसी राजा ने राजधानी क्षुल्लकपुर (कोल्हापुर) मे सैद्धांतिक अगाध पांडित्य के धनी थे (तेरडाल शिलालेख अनेक जिनालय बनवाये ((J.B.B.R.A.S.Vol. VIII Ep. Karnatica vol. 14; page 23)। श्रमण बेलगोल Old series pp. 10) सेनापति बोप्पण के सदर्भ मे शिलालेख में भी उनका उल्लेख मिलता है (Ep. Karकिदारपुर शिलालेख एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। रूप- natka vol. II, p. 17) श्रुतकीति, विद्य, गण्डविमुक्त नारायण जिन मन्दिर कुंदकुंद आम्नायी सरस्वती गच्छी देव, माणिक्यनंटि पंडित, आनन्दी सिद्धान्तदेव, निम्बदेव, निम्बदेव ने ही बनवाया था और उसी के ११३५ AD. कामदेव, केदारनाकरस आदि जैसे विद्वान मुनि और में कबडेगोल्ला मे पार्श्वनाथ मन्दिर का भो निर्माण श्रावक उनके शिष्य थे। (Ep. Ind. vol. III, pp. कराया था। गणरादित्य का ही दूसरा नाम रूपनारायण 207-11)। उन्होंने कोल्हापुर में खीर्थ की स्थापना की पा। इसी मन्दिर में उत्कीर्ण शिलालेख में एक चैत्यागगर थी। मठ भी बनवाया था। रूपनारानथ मन्दिर की देखका उल्लेख है। अय्याबोडे (बीजापुर का अइहोल) के भाल के लिए उन्होने श्रुतकीति विद्य को नियुक्त किया व्यापारी वीर वणणजस ने उस मन्दिर के लिए काफी था। कवडेगोल मन्दिर भी इन्हीं के संरक्षकत्व मे व्यवदान दिया (Ep, Ind. Vol. xix pp. 30) सांगली के स्थित थे। माणिक्यनंदि भी मापनन्दि के शिष्य थे।