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________________ ३२, वर्ष ४३, कि० ४ अनेकान्त के तौर पर यह सुझाव उनका है अथवा डा० बनर्जी ने यह रकम सुझाने के लिए उन्हें अधिकृत किया है ? डा. बनर्जी ने तो स्वय २४.८-७८ के पत्र में लिखा है कि बिब्लियोग्राफी के इन्डक्स बनाने तथा आरम्भिक परिचय लिखने के लिए जो धन ६०० रु. की राशि नन्दलाल जी से ली है वह कार्ड और लिपिक का खर्च है । कुल खर्च २००० रु० का अनुमान है । उन्होने आगे इसी पत्र में यह भी लिखा है कि मैंने अपनी कोई फीस (उजरत) नहीं ली है और ना ही कभी लंगा, क्योंकि यह कार्य श्री छोटेलाल जी के प्रति प्यार का श्रम है। इस प्रकार डा० बनी तथा उनके वकील के रूप में परवी कर रहे श्री ललवानी जी के वक्तव्यों में विरोधाभास परिलक्षित होता है। डा बनर्जी ने अपने लंदन प्रवास से २४.७-७७ के पत्र में स्पष्ट लिखा है, "मैंने अब ग्रन्थ के इन्डक्स और दो शब्द लिखने का उत्तरदायित्व ले लिया है।" डा. बनर्जी ने अपने पत्र २०.११-७८ में वीर सेवा मन्दिर द्वारा भेजे गये १००० रु. के चक की पावती देते हुए लिखा था--"मैं इंडैक्स का कार्य इस वर्ष के अन्त तक पूरा करने का पूर्ण रूप से प्रयल कर रहा हूं।" वह किसी न किसी बहाने से समय बढाते गये। संस्था द्वारा बहुत आग्रह करने पर डा. बनर्जी ने अपने २५-३-७६ के पत्र में सुझाव दिया-आप बिना इन्डैक्स के ग्रन्य प्रकाशित कर दे, साथ ही घोषणा कर है कि इन्डेक्स शीघ्र ही प्रकाशित होगा। "इसके बाद डा. बनर्जी ने सूचना दी कि इन्डक्स के सभी कार्ड तैयार हो गये हैं, थोड़ा पुननिरीक्षण का कार्य शेष है। आप कार्ड दिल्ली मंगाकर इन्डेक्स प्रकाशित कर दे। कार्ड सस्था में लाये गये, किन्तु कार्य अपूर्ण होने के कारण पुनः डा. बनर्जी को कार्य पूरा करने हेतु भेज दिये गये। इसके बाद डा. बनर्जी ने संस्था के सभी तार, टेलेक्स व पत्रों का हवाला देकर अपने पत्र ३.४.८१ में वर्ष के अन्त तक कार्य पूरा करने का आश्वासन दिया तथा काम शीघ्र हो सके, इसके लिए एक सहायक की मांग की। संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष साह अशोककुमार जैन से हुई वार्ता के अनुसार सहायक के खर्च हेतु सस्था से २७०० रुपया बैक ड्राफ्ट से भेजा गया, किन्तु इंक्स पूरा करके उन्होंने नहीं लौटाया जबकि इसके पूर्व भी जो खर्चा उन्होने मागा, उन्हें दिया जाता रहा है। डा. बनर्जी यह अच्छी तरह जानते थे, जैसाकि ललवानी जी ने भी "तीर्थकर" के अगस्त अक मे लिखा है, "दो हजार पृष्ठो के इस विशाल ग्रन्थ से बिना इन्डक्स के कुछ निकाल पाना असम्भव सा है, अत: विरजन इससे लाभान्वित नही हो पा रहे हैं।" यद्यपि ललवानी जी के इस कथन का आशय वीर सेवा मन्दिर का अपयश करना है, किन्त सच तो यह है कि आठ वर्ष बीत जाने पर भी इन्डक्स के प्रकाशित न होने की हानि वीर सेवा मन्दिर ही भोग रहा है. डा० बनी नही । इस ग्रन्थ के प्रकाशन मे सस्था की एक विशाल धनराशि व्यय हो चुकी है । ग्रंथ के समुचित उपयोग न होने से संस्था द्वारा व्यय की गयी पूर्ण राशि का उत्तरदायित्व डा० बनर्जी का है। इन्डक्स को परान करना डा. बनर्जी का यह व्यवहार श्रद्धेय छोटेलाल जी के प्रति अन्याय है, अर्थात इसे अमर्यादित व्यवहार को संज्ञा दी जायेगी। हमें आशा है कि ललवानी जी धोखाधडी का खेल छोड़कर डा० बनर्जी से उन का दायित्व पूरा करायेगे । इससे डा० बनर्जी के सम्मान की रक्षा तो होगी ही, अपितु संस्था का आर्थिक हानि तथा अकारण बदनामी से बचाया जा सकेगा और विद्वत्जन श्रद्धेय छोटेलाल जी के श्रम का लाभ उठा सकेंगे। यह सचना देना भी मेरा कर्तव्य है कि सम्बन्धित विषय पर कार्यकारिणी में गहन विचार-विमर्श हआ हैकि डा. बनर्जी इन्डैक्स का कार्य पूरा कर दे तो इन्डैक्स खण्ड मे सम्पादक के रूप में उन्हीं का नाम जायेगा और जो उचित उजरत वह चाहेंगे, कमेटी उस पर विचार करेगी और वह उजरत उचित सम्मान के साथ उन्हें दी जायेगी। -सुभाष जैन महासचिव : वीर सेवा मन्दिर २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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