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स्त्रियों द्वारा जिनाभिषेक होना निषिद्ध है
श्री तेजकुमार गंगवाल
कुछ समय पूर्व दिगम्बर आम्नाय मे भट्टारको का एक छत्र राज्य था। इनमे कुछ उदासीन प्रवृत्ति के धारी थे तो कुछ ऐश्वर्य के लोभी भी रहे। जो ऐश्वर्य के लोभी रहे उन्होने भगवान महावीर से चले आ रहे शुद्ध आम्नाय मे राग की मिलावट कर दी। तथा धर्म के नाम पर स्वच्छद प्रवत्तियो का प्रचार-प्रसार प्रारम्भ हो गया जैसे पचामतअभिषेक, स्त्री पूजन आदि । दक्षिण में ऐश्वर्य के लोभी भट्टारको द्वारा जो धर्म के स्वरूप को विकृत किया तो उनका अन्न भी हो गया किन्तु पचामृत अभिषेक, स्त्री प्रक्षाल, स्त्री पजन सरीखी विकृनिया आज भी चल रही है जो शुद्धा. म्नाय के विपरीत है।
जहा तक उत्तर भारत का प्रश्न है यहा पर इस प्रकार की प्रवृत्तिया नही रही हैं कि स्त्रियो से प्रक्षाल करवाई जावे वे मूतियो को स्पर्श करे तथा पंचामत अभिषेक करे आदि । किन्तु कुछ वर्षों में इस प्रथा को प्रचलित करने तथा बढावा देने में कतिपय, आचार्य तथा त्यागियो के प्रयत्न प्रधान कारण रहे है। आज भी अगर हम देखे तो जगह-जगह शुद्ध आम्नाय के ही मन्दिर अधिकतर मिलते है । बुन्देलखण्ड को तो शुद्ध आम्नाय का तीर्थ क्षेत्र कहा जा सकता है।
स्त्रियो मे एक विशेषता पाई जाती है जो भी रूढ़िया अथवा गलत मान्यताएं अधक्षद्धा से उनके हृदय मे घर कर लेती है फिर उनका भविष्य चाहे जो हो वे उससे हटती नही है परिणाम यह है कि आज हमारे घरों मे कुदेवी देवनाओ की पजन, आराधना करी व करवाई जाती है। (माता पूजना, ठटा खाना, पद्मावती, क्षेत्रपाल आदि)।
जब महिलामो में यह प्रचारित किया जाने लगा कि मूनि का अभिषेक करना धर्म है ऐसा करते रहने से स्वर्ग मोक्ष की प्राप्ति होती रहती है तो अन्य गलत परम्पराओ मे एक यह प्रथा भी जुट गई और त्यागी वर्ग व अन्यों द्वारा इमे पोत्साहन दिया जाने लगा। आज घर-घरमे मदिरजी बन गये है प्रतिमाएं विराजित हो गई है साथमे तो चलती रहती है
जरा विचार तो करो कि १००८ श्री जिनेंद्र देव के प्रतिविम्ब की शोभा, जो वीतरागता को प्रगटता समवगरण समान मन्दिर जी मे होती है क्या अन्य किसी जगह हो सकती है कदापि नही। मन्दिरजी मे . वेदी पर, सिंहासन पर जो गोभा श्री जिनेन्द्र देव की प्रतिमा की होती है उममे विनय होता है, वीन राग छबी दर्शनीथ होती है । जीवो को मोक्षमार्ग में कारण होती है। क्या यही शोभा, विनय, बीत रागता साथ में रखने से, अलमारी में बद रखने से काष्ठ चौकी आदि पर जब चाहे विराजित कर दिया चाहे उठा लिया मा होने से होगी? नही, कदापि नही होगी अविनय तो होता ही है माथ में जिनेन्द्रदेव के अवर्णवाद स, मिथ्यात्व से अनत समार का अध भी हाता है। अर भाई मूति अरहंत भगवान का साक्षात प्रतिविम्ब है। गधोदक को प्रादर से मात्र अपने मस्तक पर लगाने के बजाय छोटा जाता है, शरीर पर मला जाता है परों में आकर गधोदक गिरता है क्या इसी का नाम विनय है। विचार तो करिए स्त्रियों को मुनिराज के साशं करने का स्पष्ट तया निषेध है तो प्रतिमा म्पर्श की बान एवं अभिषेक करना स्वत: निषिद्ध हो जाता है साथ ही पर पुरुष स्पर्श का प्रमग आता है इमसे शील में दोष लगता है। (क्रमश )
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