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(वर्ष ४२ कि० १ से आगे )
महाराष्ट्र में जैनधर्म
महाकवि स्वयंभू ने अपने ग्रन्थों की रचना उसी के आश्रय में रहकर की । पुन्नागवंशी जिनसेन ने भी ७८३ मे रचे अपने हरिवंश पुराण के अन्त मे ध्रुव का उल्लेख किया है । वीरसेनाचार्य के ग्रन्थ भी इसी शासनकाल की देन है व के पुत्र जयसुंग के शासनकाल में उनकी साहित्यिक गतिविधियां चलती रही है । बाद मे जगत्तुंग ने मान्यखेट ( मलखेड, मैसूर) को अपनी राजधानी बनाया जो अकलंक स्वामी विद्यानन्द, अनन्तकी, जिनसेन, गुणभद्र, महावीराचार्य, अनन्तवीर्य आदि अनेक जैनाचार्यो का कार्यक्षेत्र रहा है। राष्ट्रकूटों की राजधानी यद्यपि मान्यलेट रही है पर उनके अधिकार क्षेत्र मे महाराष्ट्र का भाग भी आता है । मलखेड़ बलात्कारगरण का मुख्य केन्द्र था। इसी की दो शाखायें महाराष्ट्र में स्थापित हुईकारंजा और लातूर ।
बलात्कारगण के प्रधान आचार्यों में कुन्दकुन्द, उमास्वामी जटासिंहनंदि, माघनंदि, जिनचन्द, प्रभाचन्द, अकलंक, माणिक्यनन्दि आदि आचार्यों का उल्लेख आता है। कारंजा शाखाका प्रथम उल्लेखनीय आचार्य मर कीति है। उनकी शिष्य परम्परा में विशालकीर्ति विद्या नन्द, देवेन्द्रकीति, धर्मचन्द्र धर्मभूषण आदि आचार्य हुए हैं। ये सभी १४-१५वी शती के आचार्य है। लातूर शाखा का प्रारम्भ अजितकीति से हुआ जिनके गुरु कारजा शाखा के भ० कुमुदचन्द्र थे । इन्होने शक स० १५७३ में एक जिनमूर्ति की स्थापना की थी।
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औरंगाबाद के समीप देवगिरि की स्थापना जंनाचार्य हेमाद्रि के अनुसार यादव नरेश निलम्मा प्रथम १८८७ ई० में की और उसे अपनी राजधानी बनाया। मुहम्मद तुगलग ने उसे दौलताबाद नाम दिया। यहीं पास ही उस्मानाबाद के नजदीक नदी के किनारे पारस नाम
[C] डॉ० भागचन्द्र भास्कर, नागपुर
की सात गुफाये हैं जिनमे चार गुफाये जैनो को है । इनका समय कला की दृष्टि से लगभग सप्त । शताब्दी निर्धारित किया गया है। सिंहन यादव काल मे जंनाचार्य पार्श्वदेव ने समयसार नामक संगीत ग्रन्थ लिखा । यहाँ के कूषिराज ने मी जिनालय का निर्माण कराया बंदन में देवगिरि सुरगिरि के नाम से दलिखित है। परभणी भी यादवकालीन केन्द्र रहा है।
नासिक और उसके आसपास का भाग भी जन सास्कृतिक केन्द्र के रूप में विख्यात है। धातवशी भट्टाक्षहरातवशी राज नेहपान कुषाणों सूबेदार था जो बाद मे उज्जैन और सौराष्ट्र का अधिपति बना तथा गौतमीपुत्र सातकर्णी पेटन का सातवाहन नरेश था । ६५ ई० के आसपास गौतमीपुत्र सातकर्णी ने नहवान को युद्ध में पराजित किया। नहपान के राज्य में नानगोल ( ठाणा जिला नारगोन) गोवर्धन (नासिक का समीपवर्ती पर्वत) जिम (नासिक) जुन्नार आदि भाग सम्मिलित रहे है । नहपान के दामाद ऋषमदत (द्वितीय शतक का प्रथम भाग ) द्वारा लिखित एक अभिलेख नासिक में प्राप्त हुआ है जिसमें उन का भट्टारक कहकर ससम्मान उल्लेख किया गया है। इस लेख मे जैन वैदिक आदि सभी धार्मिक तीर्थों को दान दिये जाने की बात अंकित है। नहपान के लिए भट्टारक जैसे शब्दों का प्रयोग उसके जैन होने का संकेत करते हैं। विवृष धीघर के बुतावतार के अनुसार नहपान ने जैम दीक्षा ली और भूतबलि के नाम से विख्यात हुए राज श्रेष्ठ सुबुद्धि भी उसी के साथ दीक्षित हुए जो पुष्पदत के नाम से विद्युत हुए। ये दोनों आचार्य धरसेनाचार्य के शिष्य बने और उन्होंने पट्खण्डागम की रचना की।
ई० पू० प्रथम शती मे आन्ध्र सातवाहन वंश का उदय हुआ । प्रतिष्ठानपुर (पेठन) उनकी राजधानी बनी ।