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________________ महेबा का जैन मन्दिर D नरेश कुमार पाठक मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला की बोगांव तहसील में पाषाण पर निर्मित प्रतिमा का आकार २४x७४५ छतरपुर नौगांव मार्ग पर १६वें कि०मी० पर मऊ सहा- सेंमी. है। नियो गाँव है। यहा से ५ कि. मी. पर महेबा गाँव है। सुपार्श्वनाथ मंदिर के प्रदक्षिणा पथ में रखी सातवें इस गांव को बुन्देलखण्ड केशरी महाराजा छत्रशाल ने सुपार्श्वनाथ पांच सर्प फण नाग मोलि धारण किये हैं। १७वी, १८वी शताब्दी में बसाया था। गांव के अन्दर इस प्रतिमा पर संवत् ११४१ (ईस्वी सन् १०८४) अकित इसी कालखण्ड का जैन मदिर स्थित है। है। प्रतिमा का आकार २६४७४७ सेंमी. है। मदिर बुन्देला स्थापत्य कला का बना हुआ है। चन्द्रप्रभ-मदिर के गर्भगृह मे रखो आठवे तीर्थकर मदिर के गर्भगह के अन्दर संगमरमर की निमिन दो चन्द्रप्रभ पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठे हुए हैं। पादचावरधारी प्रतिमा एक १८x१६४६ सें०मी० प्राकार पीठ पर उनका ध्वज लाछन चंद्र का अंकन है एवं संवत् की पीतल की अभिलिखित प्रतिमा रखी है। इसमे अभि- १८८३ (ईस्वी सन् १८२६) अभिलेखित है। प्रतिमा का लेखित पाषाण की पार्श्वनाथ एव चन्द्रप्रभ की प्रतिमा आकार ५०x४०४१८ सेमी है। रखी हुई है। प्रदक्षिणापथ में तीर्थकर वादिनाथ, अजित पाश्वनाथ-इस मदिर से तेइसवें तीर्थंकर की दो नाथ, सुपार्श्वनाथ, पार्श्वनाथ एवं लाछन विहीन तीर्थकर . प्रतिमा रखी है। प्रथम मंदिर के प्रदक्षिणा पथ में रखी की प्रतिमा रखी है। यहाँ को कुछ प्रतिमाओ पर प्राम पार्श्वनाथ की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा मे अकित है । सिर महेवा, रियासत चरखारी का उल्लेख भी मिलता है । के ऊपर सप्तफणों से युक्त नाग मौलि का अकन है। परियहां पर दो मेरू शिखर मीनारनमा निर्मित किए गए हैं। कर मे भक्त परिचारक, दो कायोत्सर्ग एवं दो पद्मासन में जिसके प्रथम स्तर में चारों तरफ हाथी के मुख बनाकर जिन प्रतिमा अकित है। मूर्ति का आकार १६४७४३ होदा को बनाया गया है। हाथी की गर्दन के पास जैन से०मी० है। तीर्थंकर पद्मासन में बैठे हुए हैं । इसके ऊपर स्तम्भ के दूसरी मदिर गर्भगृह से पाश्र्वनाथ की प्रतिमा के सिर चार भाग किए है । प्रत्येक दिशा में एक-एक तीर्थकर है। के ऊपर सप्तफण नाग मौलि है। प्रतिमा पर सवत् इस प्रकार कुल १६+४२० तीर्थ करों का अंकन है। १८४२ (ईस्वी सन् १७८५) उत्कीर्ण है। संगमरमर शिखर पर उल्टा कमल, कलश, पुष्प आदि का निर्माण पत्थर पर निमित प्रतिमा का आकार ५०-३०-१६ किया गया है। मदिर से प्राप्त जन प्रतिमाओं का विव- से०मी० है । रण इस प्रकार है : ___लांछन विहीन तीर्गकर-मदिर के प्रदक्षिणा पथ से प्रादिनाथ-मंदिर के प्रदक्षिणा पथ मे प्रथम तीर्थकर दो प्रतिमा प्राप्त हुई है। प्रथम कायोत्सर्ग मुद्रा मे अकित जिन्हें ऋषभनाथ भी कहते है। कायोत्सर्ग मुद्रा में शिला लांछन विहीन तीर्थंकर के दोनों ओर चावरधारी, विताब पष्ट्रिका पर खड़े है, तीर्थकर के परिवार में दो कायोत्सर्ग मे दुन्दभिक, अभिषेक करते हुए गजराज का अकन है। एवं ६ पद्मासन में जिन प्रतिमा अकित है। मूर्ति का परिकर में दोनो पोर दो-दो कायोत्सर्ग मुद्रा में जिन आकार १६४११४५ सें.मी. है। प्रतिमा अंकित है। प्रतिमा का आकार २२४१२४६ अजितनाथ-मंदिर के प्रदक्षिणापथ में द्वितीय सेमी. है। तीर्थकर अजितनाथ की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित दूसरी कष्ण पाषाण पर निमिन लांछन विहीन है। दोनों पार्श्व में त्रिभग मुद्रा में एक-एक चावरधारी तीर्थकर पपासन को ध्यानस्थ मुद्रा मे निर्मित है। इस एवं नीचे एक-एक भक्त बैठा हा है। पादपीठ पर प्रतिमा पर संभवतः सवत् १०२५(ईस्वी सन् ६६८) तिथि प्रजितनाय का ध्वज लांछन गज (हाथी) अकित है। कृष्ण अकित है। प्रतिमा का आकार १८x१०४५ से.मी. है।
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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