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संस्कृत जैन काव्यशास्त्री और उनके ग्रन्थ
निश्चय, अलंकार निर्णय एवं दोष-गुण निर्णय । इसका होती हैं । काव्यमंडन के अन्त में दी गई प्रशस्ति के अनअपरनाम 'अलंकार संग्रह' भी है।
सार यह श्रीमाल वंश के झाझरण सघवी के द्वितीय पुत्र विनयचन्द्रसूरिः
बाहण के छोटे पुत्र थे तथा माण्डवगढ़ के राजा होशगशाह इनका 'काव्यशिक्षा' ग्रन्थ उपलब्ध है। इसके अति- के मंत्री थे। राजा भी साहित्य प्रेमी था। उनका समय रिक्त पावनायचरित, मल्लिनाथचरित, मुनिसुव्रतस्वामी काणे महोदय ने १५वीं शती स्वीकार किया है। उक्त चरित. कल्पनिरुक्त. कलिकाचार्यकथा तथा दीपावलीकल्प ग्रन्थों में काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों का सुन्दर विवेचना रचनाएं उपलब्ध होती हैं। रचनाओं के आधार पर पासून्दर : इनका साहित्यिककाल १२२६-८८ ई. स्वीकार किया पद्मसुन्दर 'अकबरसाहिबश्रृंगार दर्पण' की रचना गया है। काव्यशिक्षा मे कविशिक्षाओं का वर्णन है। मुगल सम्राट अकबर को सम्बोधित करते हुए की है। नरेन्द्रप्रभसूरि :
इसमें चार उल्लास है और रुद्रकृत शृगारतिलक का अनुनरेन्द्रप्रभसूरि वस्तुपाल के समय के विद्वान् थे । गुरु सरण किया गया है । अकबर के साथ ही इनका समय का नाम नरचन्द्र सूरि था, जिनकी आज्ञा से इन्होने १५५६-१६०५ के मध्य मानना चाहिए। पदमसुन्दर की अलंकार महोदधि की टीका और वृत्ति की रचना १२२५ अन्य रचनाएं है, भविष्यदत्त चरित्र, रायमल्लास्यवय. ई० मे की थी। इनकी अन्य रचनायें 'काकुत्स्थ कलिनाटक' पावनायकाव्य, प्रमाण सुन्दर, सुन्दरप्रकाश, शब्दार्णव, तथा 'वस्तुपाल प्रशस्ति' हैं । वस्तुपाल के साथ ये शत्रुञ्जय शृगारदर्पण, जम्बूचरित, हायनसुन्दर आदि । यात्रा पर गये थे और ३७० पद्यो की प्रशस्ति यात्रा के राजमल्ल : प्रारम्भ तथा अवसान पर लिखी थी।
राजमल्ल कृत 'पिङ्गनशास्त्र' छन्दसम्बन्धी रचना माणिक्यचन्द्र:
है। राजमल्ल की अन्य कृतियां लाटीसंहिता, जम्बूस्वामीमाणिक्यचन्द्र मम्मट के काव्यप्रकाश के टोकाकार चरित, अध्यात्मकमलमार्तण्ड, पंचाध्यायी हैं। इनका इनकी 'पार्श्वनाथचरित' और 'शान्तिनाथचरित' ये दो रचनाकाल १६०० ई. के आसपास है. अतः जम्बूस्वामी कृतियां और प्राप्त है। ये राजगच्छोय थे। इस गच्छ मे चरित में उल्लेख हैं कि इस ग्रन्थ की रचना आगरा में भरतेश्वर सूरि-वीरस्वामी-निचन्द्रसूरि-सागरचद्र श्री टोडर के आग्रह पर हुई ये टोडर सभवतः अकबर के
-माणिक्यचद्र सूरि हए ।ये महामात्य वस्तुपाल के राजस्वमत्री ५ । लाटोसहिता की समाप्ति १५८४ ई. में समकालीन थे। इनका समय १२१० ई० के आसपास हुई थीहै। मुनि जिनविजय ने यही समय माना है।
'श्रीनपतिविक्रमादित्य राज्ये परिणतेसीत । सकेत टीका कदाचित काव्यप्रकाश की प्रथम व्याख्या सहैकचत्वारिंशदरब्दानां शतषोडश।। है । प्रकाशन अनेक स्थानों से हुआ है, पर श्री रसिकलाल
-लाहीसंहिता २ ढो० परीख ने राजस्थान प्राच्यविद्या मन्दिर से प्रकाशित पिंगल शास्त्र की रचना भूपाल भारमल्ल के निमित्त काव्यप्रकाश के द्वितीय भाग में सम्भवतः प्रथम बार से नागौर मे हुई । डा. शास्त्री का अनुमान है कि राजआलोचनात्मक और तुलनात्मक विवेचन किया है। मल्ल आगरा से नागौर चले गए थे, मत-भूपाल भारमल्ल महाकविमण्डन :
वही के रहने वाले थे। इसमे छन्दों के लक्षण और उदा'अलंकारमण्डन' और 'कविकल्पद्रम' मण्डन की इन हरण प्रस्तुत किए गए है। दो रचनाओ के अतिरिक्त कादम्बरीमंडन, चम्पूमडन, इनके अतिरिक्त अन्य कवि हैंचद्रविजयप्रबन्ध, काव्यमंडन, शृंगारमंडन, संगीतमडन, समयसुन्दरमणि (१५८६-६० ई०) अष्टलक्षार्थी या उपसर्गमडन. सारस्वत मंडन ये रचनायें और उपलब्ध अर्थमावली।