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संस्कृत जैन काव्यशास्त्री और उनके ग्रन्थ
रत्नावली ( इसकी प्रति उपाध्याय मंगलविजय के पास विजयलक्ष्मी ज्ञानमन्दिर, आगरा में है) (स० का० केवि० में जै०क० का पो०- शास्त्री २५३) (७) अलंकार प्रबोध और (८) सूक्ति रत्नावली ।
काव्य कल्पलता का अपरनाम कविशिक्षा या कविता रहस्य भी है। ग्रन्थ चार प्रतानों में विभक्त है और प्रत्येक प्रतान में अनेक अध्याय हैं। प्रथम प्रतान में छन्दसिद्धि की विवेचना, द्वितीय में शब्दसिद्धि तृतीय में श्लेषसिद्धि और चतुर्थ में अर्थसिद्धि का विवेचन है। डा० डे इसे कविशिक्षाविषयक ग्रंथ मानते हैं।"
देवेश्वर :
देवेश्वर या देवेन्द्रकृत 'कविकल्पलता' काव्यकल्पलता को ही आधार बनाकर लिखी गई है। देवेश्वर के पिता का नाम वाग्भट था, जो मालव नरेश के महामात्य थे ।' देवेन्द्र स्वयं स्वीकार करते है कि उन्होंने 'काव्यकल्पलता' को आधार बनाया अतः उनका समय १४वीं शती असमीचीन यही होगा । डा० एस० के० डे० ने ठीक ही लिखा है – 'कविकल्पलता सोधे काव्यकल्पलता के आधार पर लिखी गई है, जिसमे वडे-बड़े उद्धरणो की चोरी की गई है।" अतः इसके पृथक् विवेचन की आवश्यकता नहीं इस पर देवेश्वर, बेचाराम सार्वभौम, रामगोपाल कविरत्न, सूर्यकवि और एक विवेक नामक टीकायें उपध है "
रामचन्द्र - गुणचन्द्र :
उक्त लेखकद्वय विरचित नाट्यदर्पण भारतीय नाट्प परम्परा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इनके जन्म स्थानादि के सम्बन्ध में विशेष जानकारी प्राप्त नही होती पर डा० गुलाबचन्द्र चौधरी ने डा० लालचंद्र गांधी के मतानुसार उनका जन्म १०८८ ई०, ११०४ मे सूरिपद ११७१ में हेमचंद्र का पट्ट और ११७३ ई० में उनकी मृत्यु बताई है।" डा० रामजी उपाध्याय भी इनका यही समय मानते है।" अति काव्यतंत्र, विशीर्ण काव्यनिर्माणतस्य और प्रबन्धशतकर्म उनकी उपाधिया थी । रामचन्द्र नाटककारों में भी अग्रगण्य है उनके – सत्य हरिश्चन्द्र नलविलास, रघुविलास, निर्भय भीमव्यायोग, मल्लिकामकरन्द, कौमुदी मित्रानन्द नाटक प्राप्त हैं, तथा रोहिणीमृगा, रामय
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अभ्युदय यादवाभ्युदय, वनमाला आदि के नामोल्लेख मिलते हैं।"
नाट्यदर्पण मे रामचन्द्र ने गुणचन्द्र को सहभागी बनाया । गुणचन्द्र रामचन्द्र के महाध्यायी और गुरुभाई थे। इसके अतिरिक्त उनका परिचय या कृतियां प्राप्त नहीं होती। प्रबन्धकोष में रामचन्द्र गुणचंद्र को साथी बताया गया है यही यह भी बताया गया है कि हेमचंद्र ने जब बालचंद्र को अपना पट्ट न देकर रामचंद्र को दिया तो बालचंद्र अजयपाल से मिना अजयपाल ने विष देकर कुमारपाल को मार डाला और राजा बन गया तब उसने रामचंद्र आदि को तप्त लोसन पर बिठाकर मार डाला, विहारी को गिरा दिया । "
नाट्यदर्पण नामानुरूप नाट्यतत्वों का निदर्शक है । लेखक ने स्वयं विवरण नाम की टीका इस पर लिखी है आरम्भ मे जिनको नमस्कार किया गया है । ग्रन्थ चार भागों में विभक्त है, जिन्हें विवेक नाम दिया गया है। प्रथम विवेक में रूपको की सख्या १२ बताई गई है और उनमे से नाटक का विवेचन किया गया है। नाटक के १२ भेद धार्मिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। द्वादशांग वाली के आधार पर ही १२ भेद माने गए है ।" उसका विवेक का नाम 'नाटक निर्णय विवेक' है ।
द्वितीय विवेक प्रकरणाचे कामरूपनिर्णय' में नामानुरूप ११ रूपकों का वर्णन है। नाट्यदर्पण में नाटिका एव प्रकरणी की रचना रूपक माना गया है। तृतीय विवेक का नाम 'वृत्तिभावाभिनय विचार देते हुए इसमें वृत्तियों का नाम 'सर्वरूपकसाधारणलक्षणनिर्णय' देते हुए सभी हरकों के लिए उपयोगी नाट्य सत्य का विवेचन है ।
अजितसेन :
आचार्य अजितसेन की 'अलंकार चिन्तामणि' और 'शृगारमजरी' ये दो कृतियां प्राप्त होती है। अलकार चिन्तामणि में अदास कृत मुनिसुव्रत काव्य के १/३४, २/३१, २/३२, २३३ श्लोक उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किए गए है, अतः यह स्पष्ट है कि वे अहंदास के पश्चादवर्ती हैं। अद्दास ने आशाधर के नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया है। यह विवादास्पद है कि अर्हदास