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पं० नाथूराम प्रेमी का साहित्यिक अवदान
बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न पं० माथुराम " प्रेमी" का हिन्दी साहित्य तथा प्राचीन वाङ्मय के सम्वर्धन मे महत्त्व - पूर्ण योगदान है । उनका जन्म अगहन सुदी ६ वि० सम्वत् १९३९ में सागर जिलान्तर्गत देवरी नगर मे हुआ था । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा देवरी में हुई थी। बाद मे अध्ययन हेतु नागपुर भी रहे ।
उनके कर्मक्षेत्र की शुरुआत देवरी के स्कूल में अध्यापक के रूप में हुई । देवरी के प्रसिद्ध साहित्यकार सैयद अमीर अली "मीर" से प्रभावित होकर उन्होने शृंगार रस से परिपूर्ण कविताएं लिखना प्रारम्भ किया । और 'प्रेमी' उपनाम से प्रसिद्ध हो गए ।
इसी बीच बम्बई - प्रातिक-दिगम्बर जैन सभा, बम्बई में लिपिक के रूप में सेवारत हुए। वही से (प्रेमी) जी के व्यक्तित्व का चहुंमुखी विकास प्रारम्भ हुआ । उन्होंने बम्बई मे ही संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजो, गुजराती, मराठी, बंगला, और हिन्दी आदि अनेक भाषाओ का उच्चकोटिक ज्ञान प्राप्त करके अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थो तथा लेखों के सम्पादन और अनुवाद किये, तथा अनेक स्वतन्त्र लेख लिखे । वे अपने युग के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और समीक्षा प्रधान पत्रों "जैनमित्र" एवं "जैन- हितेषी" का सम्पादन भी करते रहे । "प्रेमी" जी ने "जैन ग्रन्थ रत्नाकर-कार्यालय नाम से हीराबाग, गिरगांव, बम्बई मे एक प्रकाशन सस्था की स्थापना की तथा उनके माध्यम से अनेक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन किया । उन्होने इस संस्थान से अनेक उच्चकोटि की पुस्तकों का प्रकाशन कर हिन्दी साहित्य के प्रसार-प्रचार और सम्वर्धन मे उल्लेखनीय योगदान दिया । "माणिकचन्द्र जैन ग्रन्थमाला” बम्बई के माध्यम से भी संस्कृत और हिन्दी के प्राचीन लुप्तप्राय वाङ्मय को प्रकाशित कराने में भी "प्रेमी" जी का विशेष योगदान रहा।
श्री मुन्नालाल जैन, दमोह
"प्रेमी" जी ने समाज-सुधार जैसे आन्दोलनों मे भी बड़े चाव से भाग लिया और इनमे महत्त्वपूर्ण सफलता भी प्राप्त की । विधवा-विवाह आन्दोलन मे "प्रेमी" जी ने समय-समय पर हिस्सा लेकर प्रोर अपने भाई का एक विधवा के साथ विवाह करके अपने हृदयगत विवारों को जीवन्त उदाहरण के रूप मे समाज के सामने प्रस्तुत किया ।
"प्रेमी" जी महात्मा गांधी, सैयद अमीर अली "मीर", गोपालदास जी बरैया माणिकचन्द्र जी जैन, पं० पन्नालाल जी वाकलीवाल, काशीनाथ रघुनाथ "मित्र" आदि व्यक्तित्वों से प्रभावित रहे और उनके साथ उनका सम्पर्क रहा।
"प्रेमी" जी के समकालीन साहित्यकारों ने सर्व श्री डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचन्द्र, जयशंकर प्रसाद, प० बनारसीदास चतुर्वेदी, मैथिलीशरण गुप्त, उदयशकर भट्ट, जैनेन्द्र कुमार जैन, चतुरसेन शास्त्री, सुदर्शन जी, डा० बलदेव उपाध्याय, प्रो० मूलराज जैन, पदुमलाल पुन्नालाल बडणी, आदि थे ।
"प्रेमी" जी ने पुरान महान् साहित्यकारो को प्रकाश मे लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य तो किया ही है साथ ही नवीन उदित हो रहे तत्कालीन साहित्यकारों की प्रारम्भिक रचनाओ को संशोधित करके शुद्ध रूप में प्रकाशित कर उनकी साहित्यिक प्रतिभा को उजागर किया। आपने प्रकाशन का क्रम डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी की 'स्वाधीनता' नामक रचना से श्रीगणेश किया था। "प्रेमी" जी के "हिन्दी ग्रन्थ- रत्नाकर कार्यालय से हिन्दी के अधिकांश लेखको की प्रारम्भिक रचनाएं निकलीं। प्रेमचन्द्र जी की सबसे प्रारम्भिक रचनाएं "नवनिधि' और सप्तसरोज" करीब-करीब एक साथ ही निकली थी । "प्रेमी" जी ने सर्व श्री जैनेन्द्र कुमार जैन, चतुरसेन शास्त्री, सुदर्शन जी,