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कन्नड़ के जैन साहित्यकार
शैवमत में त्रिपुरदहन की कथा प्रसिद्ध है किंतु प्रस्तुत है। इन्होने अपने पिता को 'रण कभिनवविजय' कहा है कवि ने इसको जैन मतानुसार ए नया रूप दिया है। श्री जिनसे वे योद्धा मलम पड़ते हैं। भुजबलि के अनुसार "कवि ने जिनेश्वरदेव को जन्म- इनके छ. ग्रन्थ हैं-.. "जयन काव्य" जिसमें जरा-मरणरूपी त्रिपुरो का संहारा बतलाया है। तदनु- इन्होने भरत चक्रवर्ती के सेनापति जण कुमार की कथा कूल कवि ने मोहासुर को त्रिपुर का राजा, माया को निवद्ध की है। यह मुख्य रूप से शृगार रस प्रधान रचना उमकी रानी; मनुष्य, देव, त्रियं च और नरक गतियों को है जिसमे कल्पना और प्रवाह का सयोजन है । २ सम्यक्त्व चार पुत्र; क्रोध लोभादि को उसका मत्री तथा नानाविध कौमुदी-इसकी कथायें गौतम गणधर द्वारा राजा श्रेणिक कर्मों को उसका परिवार निरूपित किया है । "जिनेश्वर- को सुनाई गई थी। इन्हीं कथाओ से राजा उदिनोदित देव के ललाट पर केवल ज्ञानरूपी तीसरा नेत्र प्रकट होता को सम्यक्त्व एव स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। नीतिमूलक है जिसके द्वारा त्रिपुर (मोहासुर) सपरिवार पराजित कर उपदेशो के साथ इसमे अनेक उपकथाये पिरोई गई है जो दिया जाता है । परम जिनेश्वर देव ने मोहासुर को मारा सुन्दर बन पडी है। ३. "श्रीशलचरिते" नामक इनके नहीं, बल्कि हाथ-पैर बांधकर उसे अपने चरणों मे झुकाया ग्रय मे श्रीपाल की प्रसिद्ध कथा आकर्षक ढंग से ग्रन्थित
और स्वतन्त्र छोड़ दिया। इस प्रकार कवि ने इस काव्य है। ४. "प्रभजनचरिते" नामक अपूर्ण काव्य-ग्रन्थ मे में जिनेश्वरदेव को शिव से अधिक दयाल सिद्ध किया है।" सरस ढग से प्रभजन की गाथा निबद्ध की गई है। ५. __'अन्जनाचरिते' मे कवि ने सती अजना की प्रसिद्ध "नेमिजिनेश सगति" मे तीर्थकर नेमिनाथ का चरित्र कथा विस्तार से एव स्वाभाविक शैली में प्रस्तुत की है। वणित है। उसमे युद्ध का मनोहारी वर्णन है। ६. "सूप
बोम्मरस ने (१) सनत्कुम रचरिते और (२) जीवघर शास्त्र" मे कवि ने विभिन्न प्रकार के पाक बनाने की सांगत्य नामक दो रचनाये कन्नड़ में प्रस्तुत की है। इनका विधियां बनाई है । यह स्त्रियोपयोगी है। काल लगभा १४८५ ई० माना जाता है। सनत्कुमार- अभिनववादि विद्यानन्द भी सोलहवी सदी के पूर्वार्ध कथा को नवीन एव स्वाभाविक ढग से प्रवाहपूर्ण शैली में के कवि हैं। इन्हीने अपनी रचना 'कान्यसार' मे ११४० कवि ने निबद्ध किया है। इस कथा मे उन्होने भक्ष्य. पद्यो का सार-सकलन किया गया है। श्री भजबली भोज्य" पदार्थों का वर्णन इतना किया है कि कुछ विद्वान शास्त्री ने लिखा है, "विद्यानंद का 'दशमल्यादि महाशास्त्र' उन्हें भोजनप्रिय अनुमानित करते है।
नामक एक ग्रथ मुझे उपलब्ध हुआ है । यह ग्रथ प्राकृत, जीवधर सांगत्य में बोम्मरस ने प्रसिद्ध जीबधर कथा संस्कृत और कन्नड़ भाषा मे लिखित है। इतिहास की को सुन्दर, सरल शैली मे निरूपित किया है।
दृष्टि से यह ग्रन्थ महत्वपूर्ण है।" कोरीश्वर-एक और कवि है जिन्होने "जीवधर रत्नाकर वरिण-सोलहवी शताब्दी के मध्यभाग में चरिते" लिखा है जिसका रचनाकाल १५०० ई० के हुए है । वे इस युग के कन्नड़ साहित्य के जाज्वल्यमान लगभग माना जाता है। यह भामिनि षट्पदि मे है और नक्षत्र हैं। वे क्षत्रिय थे और मूडविडी में जन्मे थे। अपूर्ण है।
उन्होने वहा के भट्टारक चारुकीति से 'दीक्षा' ली थी। सन् १५५६ ई० मे "नेमन्ना ने "ज्ञानभास्करचरिते" उन्होंने योग में भी कुशलता प्राप्त की थी। उनके रोमास की रचना की। कवि ने उसमे यह प्रतिपादित किया है और मन-परिवर्तन के सम्बन्ध में अनेक दन्तकथायें प्रचकि बाहरी विधि-विधान की अपेक्षा शास्त्रों का अध्ययन- लित हैं। सभव है, वे रंगीले व्यक्तित्व और स्वतत्र विचारों मनन अधिक श्रेयस्कर है।
के व्यक्ति रहे हों। वे "रत्नाकरसिद्ध" और "रत्नाकर ___ मंगरस द्वितीय ने "मंगराजनिघंटु" नामक प्रथ की तथा अण्ण" नामों से भी प्रसिद्ध थे। जो भी हो, वे रचना की है।
प्रतिभाशाली कवि थे। इसीकारण उन्हें इस युग का मंगरस तृतीय का समय १६वीं शताब्दी का पूर्वार्ध 'कन्नड़ कोकिल' कहा गया है । उनका प्रिय रस शृगार