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कन्नड़ के जैन साहित्यकार
यूग उपर्युक्त सदियों के बाद कन्नड़ के इतिहास में प्रारंभ उद्धरण लेकर अशुद्धियों को दर्शाना, मार्ग काव्य के प्रयोगो हुआ।
को शुद्ध बनाना तथा कुछ नवीन प्रयोगों को भी मान्यता प्रांडग्य-का समय लगभग १२३५ ई० है । इन्होंने देना उनका लक्ष्य था। अपभ्रश को भी उसमे स्थान एक ध्वनिकाय लिखा है जिसका नाम 'कम्चिगर काव' मिला है। अपने पिता द्वारा संकलित काव्यांशों से भी (कवियों का रक्षक) या मदन विजय है । यह काव्य न तो उन्हें सहायता मिली होगी। उनका व्याकरण शुष्क नहीं, तीर्थकर जीवनी है और न ही कोई लौकिक कथा । इसमे सरस है। केशिराज का दावा है कि उनका व्याकरण कवि ने वैदिक प्रथो मे उपलब्ध शिव और कामदेव की "लक्ष्मीदेवी का सू.दर सरस दर्पण और सरस्वती की कथा को जन जामा पहनाया है। काव्य मे वणित है कि द्वितीय दर्पण' है। शिव ने कामदेव के परिवार के सदस्य चन्द्रमा को चुराया श्री सिद्धगोपाल के अनुसार, "हस्तिमल" ने "पूर्व इस पर काम ने बाण चलाकर शिव को अर्धनारीश्वर पुराण" लिखा है जो इस युग का एकमात्र शुद्ध ग्रंथ है। बना दिया । किन्तु कुछ दिनो कामदव अज्ञात रहा । जब इसके सम्बन्ध में विस्तृत जानाारी उपलब्ध नहीं है। उसका सामना क जैन मुनि (धमण) से हुआ तो वह
कुमुवंदु रामायण के रचयिता कुमुदेन्दु हैं। इनका थरथर कांपने लगा और उनके चरणो मे नतमस्तक हो
समय १२७५ ई. के लगभग माना जाता है। यह षट्पदी गया। इस प्रकार काव्य में यह व्यजित किया है कि काम
छद मे (लखी गई है और जैन परम्परा के अनुसार निवद्ध को विरक्ति या तपम्पापूर्ण जीवन द्वारा विजित किया
है। विद्वानों की राय है कि इस पर पंप रामायण का जा सकता है और जब एक मुनि में इतनी शक्ति हैं तो काफी प्रभाव तीर्थकर में कितनी शक्ति होगी।
रट्ट कवि (लगभग १३०० ई०) ने "रट्टमत या र कन्नड में आंडय्य का स्थान उनकी भाषा शैली के
सूत्र" की रचना की है। इन्होने अपने प्रथ का विषय लिए भी है । कन्नड भाषियों के अनुरोध पर उन्होने इस
प्राकृतिक घटनाओं-यथा वर्षा, बिजली, भूकप, आकाशीय काव्य की रचना यह दिखाने के लिए की थी कि संस्कृत
ग्रह और शकुन आदि को बनाया है। इसका अनुवाद के तत्सम शब्दों का प्रयोग किए बिना शुद्ध या 'ठठ १४वी सदी मे तेलगू मे कवि भास्कर ने किया था। कन्नड में भी काव्य की रचना की जा सकती है।
नागराज ने संस्कृत ग्रय पुण्याथव (कथाकोश) का मल्लिकार्जुन (मल्ल और मल्लप्प नाम से भी
कन्नड में रूपातर किया जो कि 'पुण्याश्रव कथा' के नाम विख्यात) ने एक अनूठा संकलन तैयार किया जो कि
से प्रसिद्ध है। इसकी रचना उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा "मूक्ति सुध र्णव' नाम से प्रसिद्ध है। अपने को 'सरस
से सगर के निवासियों के कल राणार्थ की थी। इसमे देव, कवि' और 'महाकवि' कहने वाले मल्ल ने इस रचना मे २८ कवियो से २२०० पद्य संकलित किए है जिनमे उनके
गुरू स्वाध्याय, सयम, तप आदि गुणो का विवेचन करते अपने पद्य भी सम्मिलित है। ये पद्य समुद्र, ऋतुओ, युद्ध,
हुए ५२ पुण्य पुरुषो को कथाए सग्रहीत हैं। इनका शैली
देसी है और वर्णन मे स्वाभाविकता एव लालित्य है। यह प्रेम, और चादनी आदि अनेक विषयो के अन्तर्गत सकलित किया है । इस प्रकार यह ग्रथ कन्नड साहित्य के
केवल अनुवाद ही नहीं है। इन्हें भी "भारतीभालनेत्र" इतिहास की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इनका
और 'सरस्वतीमुखतिलक' जैसी उपाधिया प्राप्त थी जो समय लगभग १२४५ ई. माना जाता है।
कि उनकी काव्यशक्ति के कारण ही दी गई होंगी। केशिराज (१५६० ई. के लगभग) उपर्युक्त कवि
इनका समय १३३१ ई० के आसपास हैं।
इनका स मल्ल के पुत्र थे। इन्होंने 'शब्दमणिदर्पण' नामक एक 'खगेन्द्रमणिवपंरण' नामक वैद्यक ग्रंथ के रचयिता कन्नड व्याकरण की रचना की है । इसके सूत्र पद्य में 'मंगरस या मंगराज' हैं । ये १३६० ई. के आसपास हुए है और वत्रि गद्य में। अपने से पहले के कवियों से हैं। इनका दावा है कि जनता के निवेदन पर उन्होंने इस