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४, वर्ष ४३, कि० ४
धनेकान्स
प्राण डाल दिए हैं श्रृंगार, रौद्र और शांत रसों का सुन्दर चित्रण करने के साथ ही उन्होंने चरित्र-विषण में अद्भुत सफलता प्राप्त की है। श्री दक्षिणामूर्ति के अनुसार, "स्मरण रखना चाहिए कि जन्न यह कृति उनकी कल्पना की उच्चता, सौदर्यप्रियता, औचित्य निर्व हरण आदि के कारण धर्म या सम्प्रदाय की परिधि लांधकर श्रेष्ठतम काव्य की श्रेणी में आ गई है ।"
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अनतनाथ पुराण १४वें तीर्थंकर अनन्तनाथ की पुण्य जीवन-गाथा चंपू-शनी में वर्णित है । परपरा के अनुसार विषण करने पर भी कवि ने इस पचयाको
मार्मिक एवं आकर्षक
तथा जैन सिद्धांतो का कवित्वपूर्ण वर्णन कर इसे भी एक प्रौढ़ काव्य बना दिया है। इसकी रचना बिट के शातीश्वराल में हुई थी। गुणवमं द्विसीय का काल १२३५ ई० के लगभग माना जाता है। इसके आश्रयदाता कार्तवीर्य नरेश के सामंत शांतिवर्म थे । ये जैनधर्मानुयायी थे। इसके अनिरिक्त अन्य तथ्य ध्यान नहीं है। इनकी दो रचनाये-१. "पुष्पदंतपुराण" और २. चंद्र है।
पुष्पसपुराण मे तीर्थकर पुष्पदंत की जीवन-गाथा निबद्ध है । इसमें भगवलियां सम्मिलित नहीं की गई है। इसलिए कथानक संक्षिप्स है जो मे प्रति इम काव्य में कवि ने कन्नड़ में प्रचलित कहावतो, अलकारो आदि से सदारा है। इसी प्रकार संस्कृत के 'काकतालीय आदि ग्यायो का भी उन्होंने यथागरम किया है। इस प्रकार उन्होने तीर्थंकर की सक्षिप्त-सी उपलब्ध जीवनी को एक आकर्षक और प्रौढ़ काव्य का रूप दिया है।
चन्द्रनाथाष्टक की रचनागुणवर्म ने कोल्हापुर स्थित त्रिभुवनतिलक जिनालय के चंद्रप्रभु की स्तुति के रूप में की है जिसका प्रत्येक पद्य चन्द्रनाथ से प्रारम्भ होता है । इस स्तुति मे ८ पद्य है ।
कमलभव नामक कवि अपनी रचना "शांतीश्वर पुराण" के लिए विख्यात है। इनका आविर्भाव काल १२३५ ६० अनुमानित है।
शांतीश्वरपुराण में कवि ने १६वें तीर्थंकर का शाति नाथ का शांतिदायक जीवन काव्य में गूंथा है जिसमें
उन्होंने अपने से पूर्व के कवियों एवं आचायों का स्मरण किया है। इस पुराण मे पुराण काव्य के सभी लक्षण घटित होते है तथा कवि की कल्पना वर्णन चातुर्य आदि गुण प्रतिभासि होते हैं।
नेमिनाथपुराण के रचनाकार है कवि महाबल । इनका गोत्र भारद्वाज था । इस पुराण की रचना के बारे मे कवि ने लिखा है कि उन्होने यह पुराण 'श्रुताचार्य आदि की उपस्थिति मे सुनाकर अपने शिष्य लक्ष्म से लिखवाया है। इन्हें 'सहजकविमनोगेहमा णक्यदीप' आदि उपाधियां प्राप्त थी ।
उपर्युक्त पुराण भी शैली मे रचित है और १६ चतू आश्वासो मे विभक्त है । इस पुराण मे तीर्थंकर नेमिनाथ की जीवन-गाथा निबद्ध है। परंपरानुसार कथन होने पर भी इसमे कवि का पाण्डित्य झलकता है । स्वय कवि ने भी अपने चातुर्य की प्रशसा की है।
धर्मनाथपुराण तीर्थकर धर्मनाथ के जीवन को लेकर दो कवियो ने अलग-अलग समय में धर्मनाथपुराण लिखे। ये कवि है बाहु ( लगभग १३५२ ई०) और मधुर (१३८५ ई० ) ।
बाहुबलिको उपभाषाकवि चक्रवर्ती की उपाधि प्राप्त थी । उनके पुराण को एक प्रोढ़ रचना माना जाता है ।
मधुर द्वारा रचित धर्मनाथ पुराण के केवल चार आश्वास हो प्राप्त हुए जिनमें कवि की वर्णन-स्वाभावि कता झलकती है। इन्होंने गोम्मटस्तुत्याष्टक की भी रचना की थो ।
पुराण-लेखन परम्परा का अंत ऐसा लगता है कि चौदहवी शताब्दी के अन्त मे अर्थात् कवि मधुर के बाद कन्नड़ मे लेखकों का प्रिय विषय सीकर-पुराण की रचना ही बन्द हो गई। जैन लेखकों ने चंपू-शैली मानों त्याग दी । और अपने रचना-विषय भी बदल दिए। इस प्रकार शास्त्र और पुराण काव्य की एक परम्परा इस युग के साथ लगभग लुप्त हो गई। विषय के साथ ही छदो के प्रयोग और शैली ( मार्ग या चंपू शैली का प्रयोग कम हो जाना) तथा संस्कृत या कन्नड-संस्कृत के स्थान पर अधिकांश रचनाओ मे कन्नड या देसी शैली का प्रचलन का