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________________ कम्मड़ के जैन साहित्यकार वर्णन है। श्रीपदाशीति में आवण्ण ने णमोकार मंत्र या पंचनमस्कार मंत्र की महिमा का भक्तिपूर्ण गान किया है। कवि आचरण को 'वाणीवल्लभ' उपाधि प्राप्त थी । बंधुव - एक ऐसे कवि बारहवी सदी के आसपास हो गए है जिन्होने पुराण और सिद्धांत-कथन दोनो पर लेखनी चलाई है। इनके दो ग्रंथ है- १. हरिवंशाभ्युदय और २. जीवसबोधने पहले ग्रंथ मे बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ का जीवन चरित्र लिखने के साथ ही साथ श्री कृष्ण की कथा भी सीपंकर के पारिवारिक सम्बन्ध के कारण आ जाती है । कवि की शैली लालित्यपूर्ण तथा कल्पनाये आकर्षक हैं । जीवसंबोधने में कवि ने बारह भावनाओं (अनुप्रेक्षाओं) का नीतिबोधक विवेचन बारह परिच्छेदों मे किया है । प्रत्येक परिच्छेद के प्रारम्भ मे कवि एक सिद्धांत का निरूपण करता है और बाद में उसका समर्थन एक कथा से । इस प्रकार यह एक रोचक रचना है। श्री भुजबली के शब्दों में, "अध्यात्म-प्रेमी जैनेतर विद्वान् भी इस ग्रंथ की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हैं।" उनके बाद के कवियो ने भी बधुवमं की प्रशंसा की है किन्तु उन्होंने अपने से पूर्व के कवियों का स्मरण नहीं किया बल्कि अपनी प्रसा स्वयं की है । उनकी सुन्दर उक्तियां तथा कहावतें भी इसे आकर्षक बनाती है । पार्श्वपंडित ने कन्नड़ भाषा मे 'पार्श्वनाथ पुराण' की रचना की जो कि इस भाषा में पार्श्वनाथ सम्बन्धी पहला पुराण है। इसका रचनाकाल १२२२ ई० माना जाता है। पुराण में कवि ने पार्श्वनाथ और तीर्थंकर पर्याय का जैन परम्परानुसार वर्णन किया है। इस यंत्र काव्य में कवि ने ऋतुओ का मनोहारी वर्णन करने के अतिरिक्त सुन्दर चरित्र-चित्रण किया है। इसमे कमठ का चरित्र विशेषरूप से आकर्षक बन पड़ा है। ये संगीत एवं नृत्य के भी विशेषज्ञ थे यह इनकी रचना से स्पष्ट प्रतिभासित होता है। इन्हें भी कविकुल तिलक, विविधजन मनःपनि पद्ममित्र जैसी उपाधियां प्राप्त थी। अपने ग्रन्थ के प्रारंभ में इन्होने संस्कृत, प्राकृत एवं कन्नड़ के प्रसिद्ध कवियों का स्मरण किया है। 1 1 जन्म - कवि का काल तेरहवी सदी का पूर्वाधं माना जाता है। ये जैन थे और कन्नड साहित्य के इतिहास में इनका स्थान इसी भाषा के आदि कवि पम्प के समान महत्वपूर्ण माना जाता है। इनका सवध अपने युग की प्रसिद्ध साहित्यिक एवं आध्यात्मिक) हस्तियों से था । ये होयसल नरेश वीरवल्लान ननिह के दरबार के प्रमुख व्यक्तित्व थे स्वयं अपने संबंध मे कवि ने लिखा है कि, 'मैं खडा होने पर दण्डाधीश (सेनापति बैठने पर मंत्री और लिखने लगू तो कवि हूं।" उपर्युक्त नरेश से इन्हें कविश्वर्ती की उपाधि प्राप्त हुई थी श्री दक्षिणा मूर्ति के शब्दों में, "कन्नड़ साहित्य-साम्राज्य के तीन ही कवि पवर्ती है- पोन्न, रन्न एवं जन्न | कवि सम्रा अथवा कवि चक्रवर्ती की उपाधि जन्त के लिए सर्वा उपयुक्त है ।" काव्य के अतिरिक्त ये व्याकरण, नाटक तथा अध्यात्म के भी पारंगत विद्वान् थे । इन्हें 'राजविद्वत्कलाहंग' जैसी अनेक उपाधियां प्राप्त थीं इन्होंने कुछ जैन मंदिरों का भी निर्माण कराया था। आर्थिक स्थिति अच्छी होने के कारण इन्होंने अपने को "सौभाग्य संपन्न " कहा है। कवि जन्म की दो रचनायें प्रसिद्ध है१. शेरचरिते (रचनाकाल १२० ई०) उपा २. अनन्तनाथ पुराण (१२३० ई० ) । राजा यशोधर और उसकी रानी अमृतमति की कथा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा तमिल आदि भाषाओं में अनेक लेखकों ने निवद्ध की है उसका मुख्य स्वर वह है कि संगीत कामवासना जगाता है । उसीके कारण मधुर संगीत के गायक किन्तु कुबड़े महावत अष्टावक्र से रानी अमृतगति उससे प्रेम करने लगी थी और जब राजा यशोधर ने यह देख लिया तो उसे वैराग्य हो गया। राजा यशोधर और उसकी माता, भाई बहिन के रूप में जन्म लेते हैं । राजा मारिदत्त उनकी बलि चटिका को देना चाहता है किन्तु इन भाई-बहिन से उनकी पूर्वभव । की कथा सुनकर राजा हिंसापूर्ण बलि का विचार त्याग देता है। इस प्रकार इस कथा में कामवासना और हिमा पूर्ण पशु बलि से विरुचि उत्पन्न की गई है । कथानक परम्परागत होते हुए भी जन्न ने उसमें
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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