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________________ गतांक से आगे : कन्नड़ के जैन साहित्यकार D श्री राजमल जैन ११५० ई० के शिलालेख मे उत्कीर्ण है । उनके इन भक्तिपूर्ण पद्यों की प्रशंसा परवर्ती दो कन्नड़ कवियो - आचरण और पाप ने अपनी रचनाओ में की है। यह रचना एक सुन्दर कन्नड़ काव्य मानी जाती है। इनकी दूसरी रचना 'निर्वाण लक्ष्मीपति नक्षत्रमालिका' है जिसमे उन्होंने शंकर, विष्णु और बुद्ध को भी स्मरण कर अपनी सहिष्णता का परिचय दिया है । चन्द्रमपुराण के रचयिता अव जैन थे और इनका अग्गव रचना काल ११६० ई० के लगभग माना जाता है। इसमे उन्होंने आठवे तीर्थंकर चंद्रप्रभु का जीवन चरित्र जैन मान्यता के अनुसार किया है। कन्नड़ में चंद्रप्रभु सम्बन्धी यह पहला पुराण है । अनेक भवों का वर्णन कवि ने नही किया है किन्तु कुछ संस्कृत निष्ठ है। इस कारण कायात्मक होते हुए भी कुछ विलष्ट है। इस पुराण की रचना 'साहित्यविद्याविनोद' आदि उपाधिधारी अग्गव ने अपने गुरु श्रुतकीति की प्रेरणा से की थी। परवर्ती के लिए जैसे आपण पार्श्व आदि ने इनकी प्रशंसा की है । कवि श्रावण्ण भारद्वाज गोत्रीय थे किन्तु जैन थे । उन्होंने १. "वर्धमानपुराण और २. श्रीपदाशीति नामक दो रचनायें कन्नड़ में प्रस्तुत की है। वर्धमानपुराण मे आचरण ने चौबीसवे तीर्थंकर महावीर का जीवन-चरित्र कन्नड़ में निबद्ध किया है। इस भाषा में महावीर स्वामी का यह पहला जीवन-परि चय है। आचरण के पिता और उनके मित्र ने यह पुराण प्रारम्भ किया था किन्तु इसको पूर्ण किया आचरण ने । इस कृति मे कवि द्वारा शब्दालकारो की पूर्व छटा है । स्पष्ट ही इसमें शांत रस का प्राधान्य है । इसमे कवि ने तत्कालीन कन्नड़ छंदों यथा रगले, त्रिपदी आदि का भी प्रयोग किया है । पुराण में महावीर के पूर्व भवो का भी नेमिचन्द्र : मार्गशैली (चंपू शैली) में रचना करने वालों में इस युग के प्रथम कवि है "नेमिचन्द्र" इनका समय ११७० ई० या १२०० ई० के लगभग माना जाता है। इनकी दो कृतियां हैं -- १. नेमिनाथ पुराण और २. लीलावति । नेमिनाथ पुराण में कवि ने तीर्थंकर नेमिनाथ की जीवनगाथा लिखी है | प्रसंगवश उसमें श्रीकृष्ण, वसुदेव और कंसवध को भी स्थान मिला है । (स्मरण रहे, श्रीकृष्ण तीर्थंकर नेमिनाथ के चचेरे भाई थे। यह पुराण चंपू शैली में है और कंस वध के बाद ही समाप्त हो गया है. पूरा नहीं हो सका इसलिए इसे 'अर्ध नेमि पुराण' भी कहा जाता है । शायद पूरा पुराण अभी उपलब्ध नही हुआ हो। इसमें अनेक भयो का वर्णन नहीं है किन्तु कृष्ण और कंस वध के प्रकरणों से इसमे रस-विवि धता और काव्यत्व अधिक प्रकट हो सका है। इसी कारण यह एक उच्चकोटि का काव्य माना जाता है। इस पुराण की रचना कवि ने राजा बल्लाल के मंत्री पद्मनाभ की प्रेरणा से की थी। लीलावति एक शृंगार रस प्रधान काव्य है । उसका आदर्श संस्कृत कवि वधु को 'वासवदत्ता' नामक कृति जान पड़ती है। इसके नायक और नायिका स्वप्न में एक-दूसरे को देखते हैं और खोज करते-करते उनका मिलन होता है। नेमकी अनेक उपाधियां प्राप्त थीं जिनमे कविराज कुजर साहित्य विद्याधर और चतुचपत (संस्कृत, प्राकृत, अप' और कन्नड) जैसी उपाधिया सम्मिलित थी । इनका स्मरण अनेक परवर्ती कवियों ने आदर के साथ किया है । बोप्पण पंडित द्वारा रचित धरणबेलगोल के "गोमटेश्वर" की २७ कन्नड़ पद्यों में "स्तुति" वहां के
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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