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जरा-सोचिए !
जैनाचार और विद्वान् :
बोझ को अपने कन्धों पर उठा लेते थे। यही कारण था
कि उनमें परस्पर गाढ सौहार्य था। कोई ममय था जब जैन-कारो की अपनी अलग
धार्मिक क्षेत्र मे सभी का सहयोग र ता था । विशेष छाप होती थी, उसमें पले-पुमे और बडे हए व्यक्ति के
धार्मिक अवसरों पर समाज के सभी पुरुष आवाल वृद्ध आचार-विचार से लोग सहज ही जान लेते थे कि अमुक
उत्मव, पूजन, विधान आदि मे सम-रूपसे सम्मिलित होकर व्यक्ति जैन है । जैन में सादगी, मन्नोष, दयालुता, सत्य
धर्म लाभ लेते थे और मुनिगज, वनी, त्यागी तथा विद्वानो वादिता प्रादि गुण स्वाभाविक स्थान बनाए रखते थे ।
__ को पूर्ण-सेवा भक्ति करते थे-उनकी वैधवृत्ति करते धार्मिक आचार-विचार मे उने नित्य देव-दर्शन करने व .
थे-आहागदि देने में सावधान रहते थे। उनका उपदेश छना पानी पीने का नियम होता था। उसे रात्रि भोजन,
सुनते थे-उनसे वन-नियम आदि स्वीकार करके अपना अभक्ष्य-कन्दमूलादि भक्षण व मद्य-पांम-मधु और सप्त व्य
जन्म सफल करते थे। इस भाति सभी प्रकार की वैयक्तिक सनों का पूर्ण त्याग विरासत में मिला होता था। जैन
धार्मिक व सामाजिक व्यवस्थाएं सुव्यवस्थित चलती थीअपनी प्रामाणिकता के लिए प्रसिद्ध था। इसलिए उसे
धर्म की बढ़वारी होती थी। लोग यथाशक्ति धर्म ग्रन्थों राज दरवार और राजकीय विभागों में पूर्ण सम्मान मिलता
का स्वाध्याय करते थे, उनमे कई तो धर्म-विषय के निष्णात था। बड़े-बडे प्रतिष्ठित पदों पर सहज ही उसकी नियुक्ति विद्वान तक बन जाते थे। ऐसे विद्वानो से धर्म प्रभावना होती थी। न्यायालय मे जैन की गवाही को सच माना होती थी और लोगों के धार्मिक संस्कार भी दृढ करने में जाता था। कोई भी जैन किसी अपराधी-सूची में दिखाई सहायता मिलती थी। गुरू गोपालदास बरैया और उनके नही देना या । उक्त सब गुणों के होने में मल कारण जैनों, शिष्य गण इसी श्रेणी मे थे । के सस्कार थे। जैन बालक को जन्म से ही स्वस्थ-सात्विक कालान्तर में जब इधर ज्ञानी मुनिजनों और विद्वानों वातावरण मिलता था और उसकी शिक्षा में स्वस्थ होती का अभाव सा होने लगा तब लोगो मे धर्म के प्रति शिथिथी।
लता परिलक्षित होने लगी और इस बीसवी सदी के सामाजिक व्यवस्था में मुखिया या पच के चुनाव के प्रारम्भ में पूज्य पं० गणेश प्रसाद जी वर्णी आदि ने स्थान लिए सर्वसाधारण के हाथ नही उठवाये जाते थे। अपितु स्थान पर पाठशालाए और विद्यालयो के खुलवाने का पक्षपात रहित विश्वास छ प्रामाजिक पुरुष ही किमी यत्न किया और दर्जनो की नीव रखवाई। छोटी स्थानीय प्रामाणिक योग्य पुरुष को बड़े पद पर विठाने का अधिकार चटशालायें कई स्थानों पर पहिले भी चलनी थी उनमें रखते थे। पूरा ध्यान रखा जा। था कि चुनाव बहु· ऊंची पढ़ाई न कराकर बच्चो को सुसंस्कृत बनाया जाता सम्मत न होकर सर्व-सम्मत हो । सभी अवस्याओ मे सर. था। बड़े विद्यालयों के खुलने से ऊँची धार्मिक पढ़ाई की पच या मुखिया का निर्णय मान्य होता था। लोगो मे व्यवस्था बन गई लोग विद्वान बनने लगे। विनम्रता, और आंखो मे लिहाज था। सामाजिक व्यवस्था शिक्षा संस्थाओ की स्थापनायें करते समय सस्थापको का पूरा ध्यान रखा जाता था कि कोई व्यक्ति अभाव- को यह तनिक ख्याल भी न आया हगा कि वर्तमान का पीड़ित न होने पाए या कोई न्याय नीतिमार्ग से च्युत न विद्यार्थी भविष्य मे धार्मिक विद्वान बनकर दर-दर के हो जाय । अवसर प्राने पर सभी लोग मिल-जुल कर याचकों जैसा जीवन व्यतीत करने को मजबूर होगा। वे अभाव-मस्त की सहायता करते थे और मौन-रूप से उसके तो अनुभव करते थे कि ज्ञान का प्रचार-प्रसार स्व-पर