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________________ - इतिहास मनीषी, विद्यावारिधि स्व० डा० ज्योति प्रसाद जैन को श्रद्धांजलि ― इतिहास-मनीषी, विद्यावारिधि स्व० डा० ज्योति प्रसाद जैन से सभी परिचित हैं। सामाजिक, धार्मिक और ऐतिहासिक जैसे सभी क्षेत्रो में उनकी अप्रतिम प्रतिभा और सहयोग रहे। वे सदा प्रामाणिक लिखते और कहते रहे । वीर सेवा मन्दिर से उनके पुराने सम्बन्ध थे । सन् १९७४ मे वे शोध-निमित्त सरसावा भी रहे । वे सरल स्वभावी, हँसमुख और पठन-पाठन के शौकीन थे । उन्होने समाज को जो भी दिया वह चिर-काम आएगा और आदर्श रहेंगा | वे वर्षों से अनेकान्त के सम्पादक मंडल में थे । गत ७-८ वर्षो से तो ऐसा अनेकान्त का शायद ही कोई अंक हो जिसमें उनका लेख न हो । "अनेकान्त' के माध्यम से प्रसारित उनके अन्तिम लेख की कड़ियां पाठको को अब भी विचारणीय हैं ।" कुन्दकुन्द द्विसहस्रान्दी की तिथि को लक्ष्य कर वे लिखते हैं " जब किसी महापुरुष या उनके जीवन की घटना विशेष को स्मृति में कोई आयोजन किया जाय तो उसमे कुछ तुक होना उचित है । भगवत् कुंदकुंदाचार्य का जन्म ई० पू० ४१ मे हुआ था, ११ वर्ष की आयु में ई० पू० ३० में उन्होंने मुनि दीक्षा ली थी, २२ वर्ष मुनि जीवन व्यतीत कर ३३ वर्ष की आयु में ई० पू० में वह आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए और ५२ वर्ष पर्यन्त उस पद को सुशोभित करके ८५ वर्ष की आयु में सन् ४४ ई० में उन्होंने स्वर्गगमन किया था इनमे से किसी भी विधि की संगति इस या आगामी वर्ष के साथ नही बैठती । हमे ज्ञात नही है कि किस महानुभाव की प्रेरणा से इस समय इस आयोजन का विचार प्रस्फुटित श्रुति के अनुसार तो आचार्य प्रवर के जन्म की द्विसहस्राब्दि सन् १९५६ ई० स्त्राब्दि सन १६७० में होती, उनके आचार्य पद ग्रहण की द्वि-सहस्राब्दि सन् को द्विसहस्राब्दि सन् २०४४ ई० में होनी चाहिए ।" हुआ है । बहुमान्य परम्पराएँ अनु मे होती, उनकी दीक्षा की द्वि-सह१९६२ ई० मे और उनके स्वर्गगमन आगम-रक्षा के सम्बन्ध मे डा० सा० का सन्देश है - "किसी भी प्राचीन ग्रन्थ के मूल पाठ को बदलना या उसमे हस्तक्षेप करना किसी के लिए उचित नहीं है । जहाँ संशय हो या पाठ त्रुटित हो उसी स्थिति में ग्रन्थ की विभिन्न प्रतिलिपियों मे प्राप्त पाठान्तरों का पाद-टिप्पण में सकेत किया जा सकता है और अपना संशोधन या सुझाव भी सूचित किया जा सकता है।" डा० सा० के निधन से हुई क्षति पूर्ति सर्वथा असम्भव है । वीर सेवा मन्दिर की कार्यकारिणी ने अपनी बैठक में स्व० आत्मा मे श्रद्धा व्यक्त करते हुए उनकी आत्म-शांति और सद्गति की प्रार्थना की और परिवार के प्रति सम्वेदना प्रकट की। समाज डा० सा० के उपकारों का सदा ऋणी रहेगा । - सुभाष जैन महासचिव -
SR No.538041
Book TitleAnekant 1988 Book 41 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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