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क्या मूलाधार यापनीय ग्रन्थ है ?
दिया है, भगवान वृषभ तथा बीर ने छेदोपस्थापना का। है। इसमें भी साधुओं के मूलगुण, उत्तरगुण रत्नत्रय तथा
इनके धर्म में दूसरा अन्तर यह है कि वृषभ व वीर के भिक्षा आदि की शुद्धि का ही वर्णन है। कहा गया है धर्म प्रतिक्रमण सहित है, जबकि मध्यम तीर्थंकरों के काल वैराग्य पर साधु थोड़े से शास्त्रज्ञान से ही सिर हो जाता में अपराध होने पर ही प्रतिक्रमण किया जाता था। है। उसके लिए उपदेश हैसपडकम्मो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। भिक्खं चर, वस रणे, थोव जेमेहि मा बहू जंप । अवराहे पडिकमण मज्झिमयाण जिणवराण ।। ६।१२९ दुख सह, जिण णिछा मेति भावेहि सुट्ट वेरग्यं ॥ १०४
___ यह अन्तर आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थो मे या उनको ज्ञान, ध्यान, केशलोच, व्युत्सृष्टशरीरता, प्रतिलेखन, परम्परा में कही नहीं कहा गया ।
दशस्थितिकल्प, मूलगुणों का पालन करना चाहिए। यात्राये दोनो गाथाएं भद्रबाहुकृत आवश्यकनियुक्ति मे हैं।
साधनमात्र आहारग्रहण करना चाहिए । गिरिकदरा आदि
में निवास करना चाहिए। आयिकाओं के उपाश्रय में अशचित्व के स्थान पर अशभत्व अनुप्रेक्षा का कथन : अनावश्यक नहीं जाना चाहिए। सगतित्याग करना
यद्यपि संग्रह-गाथा मे अशुचित्व का नामोल्लेख है चाहिए। इस प्रकार इस अधिकार मे पुनरुक्तियां हैं। (१२) पर वर्णन करते समय सर्वत्र अशुभ की चर्चा है। आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार से इसका विषय संभवता संग्रह गाथा में भी असुहत्तं ही होगा, क्योकि इसकी भिन्न है। संस्कृत छाया मे अशुभत्वम् ही है। टीका मे भी मूल शब्द प्रवर्तक और स्थविर पदों के उल्लेख: अशुभत्व ही मानकर उसका अर्थ अशुचित्व किया गया है। मूलाचार मे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर तथा अन्यत्र जहां अशुभ अनुप्रेक्षा के वर्णन में पांच गाथाओं में गणधर ये पांच पद बताए गये है। दिगम्बर परम्परा में अशुभ शब्द का ही प्रयोग है।
आचार्य व उपाध्याय इन दो पदो का ही उल्लेख एवं दश अनगार भावना :
विवरण मिलता है। तीर्थङ्करों के बचनों की गुम्फित करने अनगारभावनाधिकार नामक नवमे अधिकार मे वाले उनके साक्षात शिष्य TTET कटे गये है। साधओं की दश भावनामों का वर्णन है। ये दस भावनाएं तत्थ ण कप्पा वासो जत्थ इमे स्थि पच आधारा। हैं लिंग, व्रत, वसति, विहार, भिक्षा, ज्ञान उज्झन, वाक्य, आइरियउवमायापवत्तधेरा गणघरा य ॥ ४॥३१ तप और ध्यान की शुद्धि । उज्झनशुद्धि का अर्थ है शरीर यापनीय सकलित आगम को मानते है तथा स्त्रीमुक्ति से ममत्व का त्याग । इन अनगारभावनाओ अथवा अनगार- के समर्थक है। उपर्युक्त उल्लेखो से उनके श्वेताम्बर आगमों सूत्रों का उल्लेख उत्तराध्ययनसूत्र में भी मिलता है। वहां का समर्थन प्रमाणित होता है साथ ही स्त्रीमुक्ति का स्पष्ट इस ३५वें अध्ययन का नाम अनगारमार्गगति है। उल्लेख है। अत: मूलाचार यापनीय ग्रन्थ ही प्रतीत समयसाराविकार:
होता है। लोग शोध करें कि वास्तविकता क्या है? मूलाचार के एक अध्याय का नाम समयसार अधिकार
___ आजाद चौक सदर नागपुर
सन्दर्भ-सूची १. अनेकांत वर्ष १२ किरण ११ मे प्रकाशित निबन्ध मौलिक ग्रन्थ है।' 'मूलाचार की मौलिकता और उसके रचयिता, प. ४.जैन साहित्य और इतिहास द्वितीय संस्करण ५, वीर हीरालाल सिद्धान्त शात्री।
निर्वाण स्मारिका, जयपुर १९७५ २. अनेकात वर्ष २किरण ५ मे प्रकाशित 'मूलाचार ५. मूलाचार गाथा १०९ संग्रह प्रथ है' निबन्ध ।
६. प्रमेयकमलमार्तण्ड पृ० १३१ ३. अनेकांत वर्ष १२ किरण ११मे प्रकाशित निबन्ध- ७. भगवती आराधना भाग १ जन संस्कृति संरक्षक संघ 'मूलाचार संग्रह ग्रंथ न होकर आचारांग के रूप ५ शोलापुर १९७८ प्रस्तावना पृ० ३५