________________
जैन समाज किधर जा रहा है ?
0 श्री भंवरलाल न्यायतीर्थ
इन दिनों हमारे पास कुछ ऐसे पत्र, पेम्फलेट पर्चे आये बुद्ध पैदा हुए उनका धर्म फैला। पर वहाँ आज कितने हैं हैं जिनमें जैन समाज की पतनोन्मुख अधोदशा का चित्रण बुद्ध के अनुयायी और क्या है उनका धर्म । चीन जापान में है। राजस्थान व मध्य प्रदेश आदि में गत दिनों घटित बुद्ध हैं-क्या शाकाहारी हैं ? मछली मांस का उपयोग वहाँ कुछ घटनाओं को पढ़कर/सुनकर हमें अत्यधिक आश्चर्य, घडल्ले के साथ होता है। कहाँ रही बुद्ध की अहिंसा? दुख और साथ ही लज्जा का अनुभव हो रहा है कि जैन उनकी दया और करुणा ने कितना चोपट कर दिया अहिंसा समाज आज किधर जा रहा है। हम नहीं चाहते कि सिद्धान्त को। दूसरी ओर हम देखते हैं ऋषभादि महावीर उन पो/पत्रों को प्रकाशित किया जावे जिनसे समाज पर्यन्त तीर्थंकरों और उनके गणधरो, आचार्यों के उपदेश की हंसी उड़ने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
और सिद्धान्त आज भी अविच्छिन्न रूप से चले आ रहे धर्म क्या है---इसे लोग समझते नही सिद्धान्तानुकूल
हैं क्यों ? इसलिए कि धर्म के प्रति आस्था विश्वास और हमारी चर्या नहीं रही। समाज का नेतृत्व पूजीपतियो और ।
उनके पालन के प्रति कट्टरता रही-वहाँ परिस्थितिवश भी
शैथिल्य नहीं आने दिया। इतरलोगो के द्वारा आघात सहेव्रतियों के हाथो मे है-विद्वानो के हाथो में नही। पैसा
पर धर्म से नही डिगे । धर्म के नाम पर ३६३ पाखंड मत व्रतियों को भी अपनी और आकर्षित कर रहा है। धनिक
भले ही बन गये हो पर जैन बड़े कट्टर थे अपने नियमों/ चाहते है कि व्रती उनका पोषण करे-उनकी यथेच्छ प्रवृत्ति
सिद्धांतों के पालन मे । यही कारण रहा कि जनत्व रहा। को समर्थन दें। धर्म भीरू जैन समाज अन्दर ही अन्दर
समय-समय पर परिस्थितियां विकट हुई-पर ऐसे महा दुखी है आज के वातावरण से । बीसो व्यक्तियो से चर्चा
मानव भी पैदा हुए जिनने धर्म को दृढ़ता पूर्वक पालने में बार्ता हई वे धर्म विरुद्ध कार्यों को देखकर कहते है कि यह
ही योगदान किया-परवर्ती आचार्यों विद्वानों ने शैथिल्य का क्या हो रहा है। कभी जैन समाज मे ऐसा नही हुआ-पर
विरोध किया १०वी ग्यारहवीं शताब्दी तक और उसके उनमें हिम्मत नहीं, साहस नही खुलकर कहने की। उप
बाद भी जैनाचार्य होते रहे हैं-जिनने धर्मत्व को समझाया। गहन और स्थितिकरण अग का ही सहारा पकड़े बैठे है।
पं० आशाधरजी आदि मनीषी, तत्पश्चात् कवि बनारसी किन्हीं अंशों में बात सही भी है क्योकि जांध उघाड़ने मे
दास, प. टोडरमलजी, जयचंद जी, सदासुख जी आदि आखिर अपनी ही तो बदनामी है। क्या चित्र होगा-इतर
अनेक विद्वान् हुए जो महावीर के मार्ग पर चलने की समाज के सामने । लेकिन बार-बार ऐसी बाते ही सामने
प्रेरणा देते रहे। ४०-५० वर्ष पहले भी होने वाले बाती जिसका आपरेशन यदि नहीं हआ तो क्या जनस्व
पं. गोपालदास जी वरेया, ५० जीवन्धरजी, पं० माणिकचंद
गोपालटामजी वोगा.. रह सकेगा। भगवान आदिनाथ से लेकर भ० महावीर जी न्यायाचार्य, वर्णी गणेशप्रसादजी, पं. देवकीनन्दजी, पर्यन्त सब तीर्थंकरों ने कभी धार्मिक शिथिलता के आगे
पं. रमानाथजी, पं० चैनसुखदासजी आदि कई विद्वान् शिर नहीं झुकाया। बुद्ध ने परिस्थितियों व बया करणा
उसी परंपरा के हुए जिनने निर्भीक होकर जैनत्व को के भाव से समय-समय पर सघस्थ प्रतियों की बात पर
समझाया, प्रचार किया। आज भी पं.बंशीधरजी वीना, ध्यान दिया। संघ मे कइयों ने चाहा कि भन्ते ! भूख-प्यास पं० कैलाशचन्दजी शास्त्री,पं० फूलचन्दजी, पं. जगन्मोहनसर्दी गर्मी सही नहीं जाती-कुछ उपाय बताइये। बुद्ध को लालजी आदि विद्वान है पर पड होचले हैं। कई तो रुग्ण वल्कल के उपयोग की आज्ञा देनी पड़ी। वहां भगवान
(शेष पृ.॥पर)