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________________ ऋषभ, भरत और बाहुबलि का चारित्रिक विश्लेषण सन्दर्भ-सूची १. आदिपुराण : अनु० पं० पन्नालाल, ज्ञानपीठ १६६३, १६ श्वेताम्बर परम्परा १०० पुत्र व पुत्रियां-१०२ सन्ताने पर्व-४-१५ मानती हैं २. महापुराण (आदिपुराण) : सम्पा० पी० एल० वद्य, १७. उत्तराध्ययन सूत्र : ककत्ता १९६७, २०३१ मा० दि. जैन ग्रन्थमाला बम्बई १९३७. सन्धि २१-२७ १८. महापुराण : पुष्पदन्त नवम सन्धि ३. वहत्स्वयंभू स्रोत्र : पाटनी ग्रन्थमाला मराठे २४७६.२ १६ वही: उत्तरपुराण द्वितीय खण्ड, बम्बई १९४०, ४. श्रीमद्भागवत : गीता प्रेस गोरखपुर, पचम स्कन्ध परिशिष्ट १ ५. ऋग्वेदः सम्पा० विश्वबन्धु, होशियारपुर १।१६०१ २०. वही : परिशिष्ट २ ६. वही ३।४।२ एवं अन्य-८१४५।३८, १०।१८७।१,६॥ २१. वही : परिशिष्ट २ २६४ आदि २२. वही परिशिष्ट ३ ७. यजुर्वेद : संस्कृति सस्थान बरेली, ३१।१८ २३. भारतीय इतिहास एक दृष्टि : ज्ञानपीठ १९६६, ८. अथर्ववेद : सस्कृति संस्थान बरेली १९४२१४ पृष्ठ २४ ६. श्रीमद्भागवत : पचम स्कन्ध । २४. महापुराण पुष्पदन्त, बारहवी सन्धि १०. धम्मपद : धर्मरक्षित, मा० खेलाडीलाल वाराणसी २५. वही : पन्द्रहवी सन्धि ५६, गाथा ४२३ २६. वही : सत्तरहवी सन्धि ११. विश्वधर्म की रूपरेखा : मुनि विद्यानन्द, पृष्ठ १६ २७. 'मत्ता के आर-पार': ज्ञानपीठ १९८१, पृ० ७ १२. महापुराण : पुष्पदन्त, तृतीय सन्धि २८. श्वेताम्बर परम्परा दष्टि, वाक्, बाहु मुष्ठि और दण्ड १३. वही तृतीय सन्धि ये पांच युद्ध मानती है - १४. वही चतुर्थ सन्धि २६. महापुराण पुष्पदन्त, सोलहवी व सत्तरहवीं सन्धि । १५. वही पचम सन्धि जम (सु० १८ का शेषाश) मुनि अमरसेन इस प्रकार सम्यग्दर्शन की उत्पनि के अल्पज्ञता का भी उल्लेख किया है। ग्रन्थ समाप्ति तिथि कारणो मे प्रथम कारण जिनेन्द्र की पूजा का महत्व प्रनि- सवत १५७६ चंत्र शुक्ला पञ्चमी शनिवार बताई गई है। पादित कर अपने भाई मुनि वइरसेन के साथ सन्यासपूर्वक कवि ने प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रति कामना प्रकट करते हुए प्रस्थ देह त्याग कर पांचवें स्वर्ग में देव हुए । राजा देवदत्त और को समाप्त किया है कि-"तैल, जल और शिथिल रानी देवश्री ने जिनेन्द्र की पूजा की। बन्धन से ग्रन्थ को बचाइए। इसे मूर्ख के हाथ में न अन्त में कवि ने आचार्य परम्परा का उल्लेख करते दीजिए।" हुए उनसे आनन्द प्राप्ति की कामना की है। ग्रन्थ रचना प्रभारी एवं शोध सहायक के प्रेरक चौधरी देवराज के पूर्वज करमचन्द चौधरी का जैन शिक्षा सस्थान परिचय देने के उपरान्त गुरु के प्रति कृतज्ञता पोर अपनी जिला सवाई माधोपुर (राज.)
SR No.538040
Book TitleAnekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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