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________________ सम्यक्त्व प्राप्ति यत्न साध्य है या सहज साध्य है ? 0 श्री बाबू लाल जैन अर्ध पुद्गल परावर्तन काल शेष रहने पर सम्यक अर्थ उपसम सम्यक्त्व के प्राप्त होने के प्रथम समय दर्शन होता है अथवा सम्यक दर्शन होने पर अर्ध पुद्गल मे अनन्त संसार को छिन्न कर अर्ध पुद्गल परिवर्तन परावर्तनकाल शेष रह जाता है। प्राय: करके हमारे समाज मात्र किया। में, विद्वानों में एव त्यागियों में यही मान्यता प्रचलित है कि इसी प्रकार का कथन सूत्र ११ एवं १५ में भी है। जिसका अर्ध पुदगल परावर्तन काल मोक्ष प्राप्ति मे शेष श्री जयधवला-कषायपाहुड गाथा २ शंका २६० पन्ना रहता है उसी के सम्यक प्राप्त करने की योग्यता होती २५३ । है। अगर संसार ज्यादा है तब सम्यक्दर्शन प्राप्त नही । होगा । कितना ही पुरुषार्थ करे परन्तु काल अधिक है तब समाधान-जो अनादि मिथ्यादृष्टि जीव तीनों सम्यक दर्शन नहीं होगा। इससे मालूम देता है कि सम्यक् य. कारणो को करके उपशम सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ और कारणा दर्शन पुरुषार्थ प्रधान नही है परन्तु काल लब्धि के आधीन इस प्रकार जिसने अनन्त संमार को छेदकर संसार के हैं। वह काल लब्धि कब आवेगी यह मालम नही। उसके रहने के काल को अर्ध पुद्गल परिवर्तन प्रमाण किया। पहले पुरषार्थ करने से कोई फायदा नही है। इस विषय यह कथन युक्तियुक्त मालूम होता है। मिथ्यादृष्टि पर विचार करना जरूरी है। कोई भी कर्म ७० कोडा का संसार अनन्त है अर्थात जिसका अन्त नहीं है क्योकि कोडी सागर से ज्यादा स्थिति वाला नहीं होता है इससे कर्म का उदय आयेगा नया बंध होता जायेगा और फिर भी यह बात नही समझी जा सकती है कि इस जीव की उसका उदय आ जायेगा इस प्रकार चलता ही रहेगा। काल लब्धि अभी आयी है या नहीं। इसके अलावा फिर अन्त नहीं होगा। परन्तु जब यह सम्यक्त्व प्राप्त करता है और कोई उपाय रहा ही नही कि जिससे यह समझा जा तब सम्यक्त्व प्राप्त करने के प्रथम समय में इसका अन्त सके कि मोक्ष प्राप्ति में अभी अर्ध पुद्गल परावर्तन से पाने-जिसका अन्त नहीं था वह ससार अर्ध पुद्गल परिकाल ज्यादा है या समय के भीतर है। भगवान सर्वज्ञ वर्तन मात्र रह जाता है। इसलिए हरेक सजी पंचेन्द्रिय मोर आचार्य सभी जीवों को सम्यक प्राप्ति का उपदेश जीव को सम्यक्त्व प्राप्त करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। देते हैं। वहाँ यह नहीं कहते कि अमुक जीव को अभी सम्यक्त्व प्राप्त करना पुरुषार्थ आधीन है। पुरुषार्थ नहीं करना चाहिए क्योंकि अभी अर्ध पुद्गल भी परावर्तन काल से मोक्ष प्राप्ति में काल ज्यादा है। कुछ रोज पहले पू० प्राचार्य विद्या सागर जी से भी इस विषय में श्री धवला जी और जय धवला जी में चर्चा हुई थी उन्होंने भी इसी बात को पुष्ट किया है। निम्न विषय मिलता है विद्वानों और त्यागियों से निवेदन है बे इस बात का विचार करें। षट् खण्डागम प्रथम खण्ड पु. ५सूत्र उपसम सम्मत्तं परिवण पढम समए प्रणतो संसारो २/१० अन्सारी रोड, दरियागंज, छिम्णो प्रड पोग्गल परिवट्टमत्तो को। नई दिल्ली-२
SR No.538040
Book TitleAnekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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