________________
दिवंगत हिन्दी-सेवी
डा० ज्योति प्रसाद जैन, लखनऊ
चार वर्ष पूर्व दश खंडों में पूरी की जाने वाली महत् एक बात अवश्य खटकती है कि ग्रन्थ के प्रथम खंड योजना के अन्तर्गत 'दिवंगत हिन्दी-सेवी' शीर्षक बृहदकाय में दिवंगत जैन हिन्दी-सेवियों की मात्र २७ प्रविष्टियां हैं, कोष के प्रथम एवं द्वितीय खंड प्रकाशित हुए थे। सन् और द्वितीय खंड में मात्र ३४-इस प्रकार दोनो खडो को १८०० ई० से लेकर वर्तमान पर्यन्त के दिवंगत हिन्दी. लगभग १८०० प्रविष्टियों में केवल ६१ जैन सम्मिलित हो सेवियों के अकारादिक्रम से निर्मित इस परिचयात्मक कोष पाए हैं। इतना ही नही, प्रथम खड के अन्त में सहायक जैसी श्रम एवं समय साध्य योजना के कार्यान्वयन का भार सामग्री की जो सूची दी है, उसमें लगभग ३०० पुस्तकों समर्पित हिन्दीसेवी श्री क्षेमचन्द्र 'सुमन' वहन कर रहे हैं। और लगभग १५० पत्र-पत्रिकाओ के अंकों आदि का उल्लेख और उनके सुष्ठ मुद्रण-प्रकाशन का श्रेय शकुन प्रकाशन है-उक्त सूची में भी मात्र तीन-चार जैन प्रकाशनों का दिल्ली के संचालक श्री सुभाष जैन को है। अद्यावधि समावेश किया गया है। हिन्दी जैन साहित्य के इतिहास, प्रकाशित प्रथम खंड की पृष्ठ संख्या ७८० है और उसमे लेखकों एव कृतियों का परिचय प्रदान करने वाले दर्जनों कुल ८८६ प्रविष्टियाँ हैं। द्वितीय खंड मे ८५० पृष्ठ और प्रकाशन उपलब्ध है, जिनके अतिरिक्त अनेकान्त, जैन ८९३ प्रविष्टियां हैं। अधिकांश परिचय सचित्र है। सिद्धान्त भास्कर, शोधाक, शोधादर्श, वीरवाणी जैसी उल्लिखित हिन्दी-सेवियो मे अनेक ऐसे भी हैं जो हिन्दी प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाओं की फाइलो में प्रभत सामग्री जगत के लिए प्रायः अज्ञात या अपरिचित थे, और जिन्हें बिखरी पड़ी है। अनेक अभिनन्दन ग्रन्थ, स्मृति ग्रन्थ, संकलक सम्पादक श्री सुमन जी ने हिन्दी भाषी क्षेत्रों का स्मारिकाओं, विशेषाको आदि में भी अच्छी सामग्री मिल प्रामानुग्राम भ्रमण करके खोज निकाला है। जिसका जो जाती हैं। आज सामग्री का प्रभाव नहीं है, अतएव ऐसे न्यूनाधिक परिचय प्राप्त हुआ, संक्षेप मे दे दिया है। प्रत्येक कोशो के सम्पादक यदि अनभिज्ञता, अपरिचय या साधना. खंड प्र-ह तक स्वय में पूर्ण है-जैसे-जैसे सामग्री एकत्रित होती भाव को इस कमी का कारण बतायें तो वह गले उतरने गई या होती जा रही है, प्रकाशन की सुविधानुसार आगामी वाली बात नही है। प्रथम खण्ड के अन्त में आगामी खडो खंड निकालते रहने की योजना है। शायद यह विवशता में प्रकाशनार्थ प्रस्तावित साधिक अढाई हजार परिचयो में रही, किन्तु इससे कालक्रमिक, सुव्यवस्थित अथवा वर्गीकृत भी जैनो की सख्या मात्र ७५ ही है, जिनमे से भी ३४ तो चित्र उभर कर नहीं आता। बहुधा अति प्रसिद्ध, अथवा द्वितीर खंड में आ गए है, अवशिष्ट आठ खण्डो के लिए १६वीं शती के पूर्वार्ध के, और नितान्त अपरिचित अथवा लगभग ४० बचते है। जबकि १८०० से वर्तमान पर्यन्त के २०वीं शती के उत्तरार्ध के साहित्यसेवी, साथ-साथ मिल ही दिवंगत जैन हिन्दी-मेवियो की संख्या लगभग ५०० गए है । व्यक्तिशः परिचय भी कहीं-कही अपर्याप्त, असन्तोष- अनुमानित है इसके अतिरिक्त, अद्यावधि प्रकाशित दोनो जनक, सदोष या भ्रान्त प्रतीत होते हैं। आकार-प्रकार, खंडो मे समाविष्ट दिवगत जैन हिन्दी-सेवियो के कई कागज, मुद्रश, साज-सज्जा, जैकेट आदि से समन्धित प्रत्येक परिचय सदोष अथवा भ्रान्त है--वीर सेवा मन्दिर एव खंड का मूल्य ३०० रु० है । ग्रन्थ के निर्माता एवं प्रकाशक 'अनेकान्त' शोध पत्रिका के सस्थापक, साहित्यकार, बधाई एवं धन्यवाद के पात्र हैं। प्रकाशन पठनीय, प्रेरक समीक्षक, कवि, सम्पादक, पत्रकार स्व० आचार्य जुगलएव संग्रहणीय है।
किशोर मुख्तार 'युगवीर' की स्वर्गवास तिथि १९५४ ई.