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________________ विगत हिन्दी-सेवी दी है, जबकि सही तिथि १६६६ ई० है । उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का भी अपर्याप्त व आशिक ही परिचय है, उनका फोटो चित्र भी बहुत पुराना लगा १९२०-२५ का है, जबकि उनके अनेको चित्र १६५०-६० के बीच के वीर सेवा मंदिर में ही उपलब्ध होगे पं० नाथूराम जी प्रेमी के परिचय के साथ जो चित्र दिया है, वह उनका प्रतीत नही होता हमने कई बार उनके दर्शन किए है, उनके अभिनन्दन ग्रन्थ में तथा तदुपरान्त भी उनके फोटो चित्र प्रकाशित हुए हैं। कवि फूलबन्द जैन 'पुष्पेन्दु' को प्रविष्टि में दो तन्नाम भिन्न-भिन्न व्यक्तियो को — एक लखनऊ निवासी और दूसरे खुरई निवासी को व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही अपेक्षाओं से अभिन्न बना दिया - खुरई निवासी 'पुष्पेन्दु' का तो अभी दो-तीन वर्ष पूर्व निधन हुआ है। डा० गुलाबचन्द चौधरी के शोध प्रबन्ध का शीर्षक वा विषय गलत दिया है-वह शोध प्रबन्ध अंग्रेजी में लिखा गया एवं प्रकाशित हुआ है-पालिटिकल हिस्टरी आफ नर्दन इंडिया फाम जैना सोर्सेज प० गणेशप्रसाद जो वर्णी, या क्षुल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णी जो बड़े वर्णी जी नाम से भी प्रसिद्ध रहे, न्यायाचार्य थे तथा अनेक पुस्तको के लेकख भी थे, उनका परिचय 'आचार्य गणेश रीति महाराज' के रूप में दिया है जो ठीक नहीं है उन्होंने न कभी मुनि दीक्षा ती और न मचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए कुछ अति भक्तों ने उनके अन्त समय मे इनका समाधिकरण कराते हुए उन्हे मुनि संज्ञा दे दी थी और शायद 'गणेशकीर्ति' नाम भी । इस प्रकार कई परिचय सदोष हैं। कोई परिचय कुछ अधिक संक्षिप्त या अपर्याप्त सा रहे तो उतनी हानि नहीं जितना कि यथार्थ या भ्रान्त परिचय से है। अच्छा तो यह होता कि एक स्वतन्त्र खंड में ही समस्त दिवंगत जंन हिन्दी सेवियो का परिचय दे दिया जाता। अवश्य ही इस परिचय-कोष के विद्वान सकलन- सम्पादक जैन नहीं है, किसी जैन संस्था, संस्थान या जैन दातार का इसके निर्माण या प्रकाशन में आर्थिक या अन्य योगदान भी नहीं है-इसके उत्साही प्रकाशक सयोग से जैन अवस्य हैं, किन्तु जैन के नाते इस ग्रन्थ का प्रकाशन उन्होंने नहीं किया, वरन् एक व्यवसायी के नाते किया है। अतएव ऐसे प्रकाशन से वे अपेक्षाएं तो नही की जानी चाहिए जो एक जैन साहिय प्रेमी को हो सकती है। तथापि जैसी गोराता या उपेक्षा हिन्दी साहित्य, या समग्र भारतीय साहित्य के आधुनिक इतिहास ग्रन्थों में जैन साहित्य एवं साहित्यकारों के साथ प्राय: बरती जाती रही है, इस सन्दर्भ में कोष से उसकी अपेक्षा कुछ अधिक न्याय होने की आशो थी। हमें विश्वास है कि इस कोष के आगामी खंडों में उसके यशस्वी सम्पादक एवं प्रकाशक उक्त कभी की पूर्ति करने का प्रयास करने की कृपा करेंगे । चार बाग, लखनऊ सम्पादकीय - प्रन्थ के संपादक श्री क्षमचन्द्र 'सुमन' से हमने बात की तो उन्होंने कहा - "यद्यपि हिन्दी साहित्यसेवी मे अंकित जैनों के परिवादि में जैनियों का सहयोग रहा है ? जैसी सूचनाएं मिली, संकलित की गई हैं । तथापि यदि तथ्यों में कुछ खामियां रह गई हों तो सपादक के नाते हमें खेद है हमे संशोधन क जैसे-जैसे सुझाव मिलते जाएँगे उनको विधिवत् अगले संस्करण या परिशिष्ट मे देने का ध्यान रखेंगे । जैन विद्वानों और जानकारों से निवेदन है कि वे हमारा अधिक-से-अधिक सही रूप में सहयोग करे। हमें खुशी है कि डा ज्योतिप्रसाद जी का इधर ध्यान गया । धन्यवाद ।" जानकारो से आशा की जाती है कि जिन जन दिवंगत हिन्दी सेवियों का परिचय इन दो खण्डों में नहीं गया है, उनका प्रामाणिक परिचय सुमन जी को यथा शीघ्र भेजें ताकि आगामी खण्डों में उन विद्वानों के परिचय का समावेश किया जा सके ।
SR No.538040
Book TitleAnekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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