SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रोम् महम् परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमपनं नमाम्यनेकान्तम। वर्ष ४० वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ जनवरी-सार्च किरण १ वीर-निर्वाण संवत् २५१३, वि० सं० २०४३ १९८७ अनेकान्त-महिमा अनन्त धर्मणस्तत्वपश्यन्ती प्रत्यगात्मनः । अनेकान्तमयीमूर्तिनित्यमेव प्रकाशताम् ॥ जेण विणा लोगस्स वि पवहारो सम्वहा ण णिस्वाह। तस्स भुवनेक्कगुरुणो णमो अणेगंतवायस्स ॥' परमागमस्य बीजं निषिद्ध जात्यन्ध-सिन्धुरभिधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥' भइंमिच्छादसण समूह महियस्स अमयसारस्स। जिणवयणस्स भगवओ संविग्गसुहाहिगमस्स ॥' परमागम का बीज जो, जैनागम का प्राण । 'अनेकान्त' सत्सूर्य सो, करो जगत कल्याण ॥ 'अनेकान्त' रवि किरण से, तम अज्ञान विनाश। मिट मिथ्यात्व-कुरीति सब, हो सद्धर्भ-प्रकाश ॥ अनन्त-धर्मा-तत्त्वों अथवा चैतन्य-परम-आत्मा को पृथक्-भिन्न-रूप दर्शाने वाली, अनेकान्तमयो मति-जिनवाणी, नित्य-त्रिकाल ही प्रकाश करती रहे-हमारी अन्तज्योति को जागत करती रहे। जिसके बिना लोक का व्यवहार सर्वधा ही नहीं बन सकता, उस भुवन के गुरु- असाधारणगुरु, अनेकान्तवाद को नमस्कार हो। जन्मान्ध पुरुषों के हस्तिविधान रूप एकांत को दूर करने वाले, समस्त नयों से प्रकाशित, वस्तु-स्वभावों के विरोधों का मन्थन करने वाले उत्कृष्ट जैन सिद्धांत के जीवनभूत, एक पक्ष रहित अनेकान्त-स्याद्वाद को नमस्कार करता हूँ। मिथ्यादर्शन समूह का विनाश करने वाले, अमृतसार रूप, रसर्वक समझ में आने वाले; भगवान जिन के (अनेकान्त गभित बचन के भद्र (कल्याण) हों।
SR No.538040
Book TitleAnekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy