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________________ जैन गीतों में रामकथा कन्नड़-(१) पम्प रामायण-नागचन्द्र । वत् एकात्मक हो गए हैं । फलतः लोक में श्री राम हैं और (२) कुमुदेन्दु रामायण-कुमुदेन्दु। भगवान रामचन्द्र में यह सारा संसार समलंकृत है।। (३) रामकथावतार-देवचन्द्र । आदि-२। हिन्दी-(१) पद्मपुराण-खुशहालचन्द्र। जैन साहित्य के लोक-प्रिय महान् कवि श्री बनारसी(२) पद्मपुराण वचनिका-दौलतराम । दास जी की यह आध्यात्मिक रामकथा विषयक अभिव्यक्ति (३) सीता चरित्र-रायमल्ल । जिनमत सम्मत दार्शनिक चिरंतन का रूपकात्मक स्वरूप (४) सीता चरित्र-रामसिंह । (५) रामचरित-भट्टारक सोमसेन विरचित विराजे रामायण घटमांहिं । रामपुराण का हिन्दी अनुवाद । मरमी होय मरम सो जाने, मूरख माने नाहिं। अनुवादक पं० लालबहादुर शास्त्री। विराजै रामायण घटमाहि। आदि । आतम राम ज्ञान गुन लछमन सीता सुमति समेत । जैन राम साहित्य मे अनेक कथान्तर द्रष्टव्य है। शुभोपयोग वानर दल मंडित वर विवेक रण-खेत । जैन पुराणो मे महापुरुषों की सख्या तिरसठ बताई गई है। ध्यान धनुष टंकार शोर सनि गई विषयादिति भाग। इनमे २४ तो तीर्थकर है, १२ चक्रवर्ती, ६ बलदेव, ६ भई भस्म मिथ्यामति लंका उठी धारणा प्राग ।। वासुदेव और प्रत वासुदेव । श्री राम आठवे वासुदेव, जरे अज्ञान भाव राक्षस कुल लरे निकांक्षित सूर । लक्ष्मण आठवे वासुदेव और रावण आठवें प्रतिवासुदेव जझे राग-द्वेष सेनापति संशयगढ़ चकचूर ॥ है। यहा जैनधर्म प्रभावित अनेक पात्र जिनदीक्षा लेकर बिलखत कंभकरण भवविमुख पुलकित मन दरयाव । मोक्ष प्राप्त करते है । द्रष्टव्यः, कविवर भया भगवतीस चकित उदार वीर महिरावण, सेतुबंध समभाव ॥ रचित निर्वाणकांड भाषा एवं यति ननसुखदास कृत सती मूछित मन्दोदरी दुराशा, सजग चरन हनुमान । सीता का बारहमासा। घटी चतुर्गति परणति सेना, छटे अपक गुणवान ॥ __ गेय प्रधानगीत-लोक मानस के सहज उद्गार है, निरखि सकति गुनचक्र सुदर्शन, उवय विभीषण बीन । जिनमे जीवन की अकृत्रिम झाकियां स्वाभाविक रगों में फिर कबंध महीरावण की प्राणभाव सिर हीन । चित्रित हुई है। यथार्थवादी धरातल पर उद्भत ये लोक इह विधि सकल साधु घट अंतर होय सहज संग्राम । स्वर बड़े सुहावने, मधुर एव आशावादी है। जिस प्रकार यह विवहार दृष्टि रामायण केवल निश्चय राम ॥ जैन रामकथा के विविध प्रसगो में सांस्कृतिक अभिनय भगिमा अभिव्यंजित हुई है उसी प्रकार जैनगीतो में राम- इस प्रकार दो प्रमुख रूपा (रविषेणाचार्य कृत पा. चरित धार्मिक आयामों से आच्छादित हआ है। श्री राम पुराण एव श्रीगुणभद्राचार्य प्रणीत उत्तर पुराण के कथानकों का यह चिंतन कितना उदात्त-पावन है : में) वणित तथा जैन गीतो मे निरन्तर गुजरित जैस रामकब मैं बनहीं शिवमगचारी। कथा, श्रमण-सस्कृति के मुख्य विशेषताएँ समन्वित होकर भव-वैमव से प्रीत न मेरो । 'वसुधैव कुटम्बकम्' के सिद्धान्त को प्रतिष्ठित करती है पर सुख देन नीत है मेरी। तथा भनवान् श्रीराम के लोक मंगलार्थ समर्पित स्वरूप छन भंगुर जगती को माया । की अर्थवता को उद्घटित करती है। छन भगुर यह जीवन काया | ---xकब बनहीं परमार्थ विचारी। इस विदेह जीवन-दर्शन में, कर्मयोग सन्यास मिलेगा। कब मैं बन हों शिवमगचारी॥ रघपति के जीवन वर्शनमें, शिव-पथ का विश्वास मिलेगा। वस्तुतः इन लोक गीतों मे भगवान् राम दुग्ध-सलिल. -शशि श्रीचन्द्र जी का यह अन्तिम लेख रीवा में आयोजित संगोष्ठी के लिए लिखा गया था। दुःख है वे इसे अपने जीवन मे पढ़ नहीं पाये।
SR No.538040
Book TitleAnekant 1987 Book 40 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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