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जैन गीतों में रामकथा
प्रो० श्रीचन्द्र जैन
विश्वेश्वर सर्वज्ञ तुम रामचन्द्र भगवान । में करेंगे:पूजों चरण त्रियोग से हृदय विराजो मान ।
जो प्राकृत कवि परम सयाने। -विद्यावारिधि प० मक्खन लाल शास्त्री
भाषां जिन्ह हरि चरित बखाने । नाम लेत सब दुख मिटें, हे रघुनन्दन राम;
भए जे ग्रहहिं जे होइहहि मागे। विघ्न हरन, मंगल करन, पद बन्दू अभिराम ।।
प्रनवउँ सहि कपट सब त्यागे॥ स्व० धन्यकुमार जैन 'सुदेश'
(रामचरित मानस, बाल कांड) -- X----
भारत की तीन प्रमुख परम्पराओं (१ वैदिक २ जैन यं शंवाः समुपासते शिव इति ब्रह्म ति वेवान्तिनः । एवं बौद्ध) में श्री रामकथा वर्णित है। पुराणों, काव्यों, बौद्धा बद्ध इति प्रमाण पटव: कति नैयायिकाः । नाटकों आदि में भी भ० श्री रामचन्द्र जी का विराट
ग्रह न्नित्यथ जैन शासन रतः कति मीमांसकाः । व्यक्तित्व चित्रित किया गया है। स्वर्गीय राष्ट्रीय कवि सोऽयं वो विदधातु वांछित फलं प्रैलोक्य नाथ: प्रभु ॥
मैथिलीशरण गुप्त के कथनानुसार जब भगवान राम का (हनुमन्नाटक-मंगलाचरण)
वृत्त स्वय ही काव्य है तब रामकथा-गायको का कवि बन श्री रामचन्द्र की जीवन-गाथा लोक-जीवन में उसी
जाना पूर्ण सम्भव है :
राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है। प्रकार व्याप्त है जिस प्रकार दूध में नवनीत, जल में
कोई कवि बन जाय स्वयं संभाव्य है। शीतलता एवं धूप में उष्णता समाहित है।
हिन्दी तथा प्रदेशीय लोक-भाषाओं से रामचरित्र चिरकाल से श्री राम का चरित्र युगीन रहा है,
बड़ी आस्था-श्रद्धा से गाया गया है। तेलुगू मे लगभग जिसमें युग-बोध के साथ परिस्थितियाँ विविध रूपों में
३०० रामकाव्य उपलब्ध हैं । बाल्मीकि रामायण, अध्यात्म उभर कर आई है। फलत: वे युग-पुरुप कहलाए तथा
रामायण, आनंद रामायण, रामायण मजरी, उत्तर रामयुग-प्रवर्तक रूप में पूजित हुए। युग-परिवर्तन के साथ
चरित, हनुमन्नाटक आदि सस्कृत रचनाओ के साथ रामआराधको के मन्तव्यों में बदलाव आया और उनका उदात्त
चन्द्रिका, रामशलाका, रामचरितमानस, माकेत, वैदेही चरित्र कभी मानव के रूप में तो कभी परमेश्वर के रूप
वनवास, रामशक्ति पूजा आदि हिन्दी काव्य विशेषतः में वन्दनीय अनुकरणीय रहा है और आज भी है। उल्लेख्य हैं। निम्नस्थ पंक्तियां इसी कथन को परिपुष्ट करती हैं :
जैन साहित्य में निम्नस्थ रामायणे प्रमुख है :राम, तुम मानव हो ? ईश्वर नहीं हो क्या?
प्राकृत-(१) पउम चरिउ--विमलसूरि । विश्व में रमे हुए नही, सभी कहीं हो क्या ?
(२) पउमरिउ-चउमुह ।
(३) पउम चरिउ-स्वयम्भू । तब मैं निरीश्वर हूँ, ईश्वर क्षमा करे;
संस्कृत-(१) पद्म चरितम-रविषेण । तुम न रमो तो मन तुम में रमा करे।
(२) जैन राम यण-हेमचन्द्र । (साकेत- स्व. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त)
(३) रामचरित--देवविजयगणि । "हरि अनंत हरि कथा अनंता।" के अनुसार श्रीराम
(४) रामपुराण- सोमसेन । की कथा विविध रूपों में अनेक भाषाओं के माध्यम से
(५) पद्मपुराण-- भट्टाक चन्द्रकीति । वणित है। गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं ऐसे कई कवियों
(६) पमपुराण-धर्म कीति ।
(७) त्रिषष्ठिशलाका चरित-हेमचन्द्र । को प्रणाम किया है, जिन्होंने प्राकृत आदि भाषाओं में
(८) पुण्य चन्द्रोदय-कृष्णकवि । हरि चरित्रों का वर्णन किया है, कर चुके हैं एवं भविष्य
(९) सीता चरित-नेमिदत्त ।