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________________ गतांक से आगे: जैन विद्यानों में शोध : एक सर्वेक्षण O डा० नन्दलाल जैन विषय-संबद्ध शोधों का विश्लेषण तथा अन्योन्य-भाषा-सम्बन्ध आदि से किया जाता है। (अ) ललित साहित्य उदाहरणार्थ डा. अग्रवाल पाणिनि व्याकरण के आधार इस विषय के अन्तर्गन हिन्दी, प्राकृत, अपभ्रश, पर एक ऐतिहासिक ग्रथ ही लिख दिया है। यह विषय अब भाषा-विज्ञान के नाम से प्रतिष्ठित हो गया है । यह संस्कृत तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लिखित काव्य, महा. प्रसन्नता की वात है कि इस दिशा में शोध में पर्याप्त काव्य, चंपू, पुराण, स्तोत्र, कथा, पूजा, शतक एवं बारह वृद्धि हुई है। विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं का मल भाषाओं मासा आदि रूप समाहित है । सर्वाधिक शोधकार्य राम के साथ तुलनात्मक अध्ययन भी हुआ है। कुछ अध्ययन कथा (१५) के विविध पक्षो पर हुआ है। पउमचरिउ, पाश्चात्य विद्या के अनुमार भी हए है। इनसे विश्व के प्रद्युम्न चरित, कुमारप न चरित, हिवश पुगण, (१५) विभिन्न खण्डों के मनुष्यो की भाषायी दृष्टि से एक पूर्वऔर पुष्पदन्त ने अनेक शोधकर्ताओं को आकृष्ट किया है। जता की धारणा बनी है । इससे सास्कृतिक एकता के अब तक लगभग तीन दर्जन सम्कृत-प्राकृत ग्रन्यो पर परिपोषण मे सहायता मिली है। इन क्षेत्रों में प्राकृत अध्ययन हो चुका है। इनमे क्षत्र चडामणि छूट गया और अपभ्र श के व्याकरण और कोपो मे जैनो के योगदान लगता है, चउपन्न महापुरिम चरिउ भी अछुना है। इस तथा हेमचन्द्र, शाकटायन आदि के विषय में तुलनात्मक वीच अनेक स्रोतों से प्राकृा अपभ्र ग जैन माहि-य की अध्ययन हुए है। यह शोध क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत एवं सूचियां प्रकाशित हुई है। अकेले आभ्र श के ही पाव सो व्यापक है । यह निश्चित रूप से प्रगति करेगा क्योकि ग्रन्थों की सूची शास्त्री ने बनाई है। इममे अनुमान लगता मीमित धार्मिक एवं दार्शनिक मान्यताओ के ज्ञान और है कि इस क्षेत्र मे अभी जो शोध हुई है, वह "आरे में लोडन की आवश्यकता नही होती। नमक" के बराबर है। अब यह शोध समन्वित नीति के अनुसार होगी, ऐसी आशा है । इसके लिये यह आवश्यक (स) जन न्याय एवं दर्शन है कि शोध नामिकाए एव सर्वेक्षण ममय-समय पर तैयार सारणी में स्पष्ट है कि १९७३-८३ के वीच इस क्षेत्र कर विश्वविद्यालयों एव शोधकर्ताओ व निर्देशो के पाम में शोध में पर्याप्त कमी हुई है। दार्शनिक मान्यताओं में गोसा निःशुल्क या सशुल्क पहुचते रहें। आत्मतत्व पर सर्वाधिक शोध की गई है। मोक्ष, पुद्गल, (ब) भाषागत विषय परमाण, सर्वज्ञता एव कर्मवाद ने भी शोध में स्थान पाया प्राचीन जैन साहित्य की मुख्य भाषा मागधी, शोर. है। नयवाद, स्यावाद, प्रमाण विद्या, ज्ञान एव ज्ञानोपाय साल और संस्कृत है। मध्यवर्गीय काल में अपभ्रश तथा तर्कशास्त्र पर भी काम हुआ है। अनेक न्यायग्रंथों के भी रही हैं। भाषा और उसका माहित्य दो पृथक विषय हिन्दी या अंग्रेजी के अनुवादों के बावजूद भी परीक्षामख. तथापि नामिका 'ब' में उन्हे सम्मिलित रूप में ही प्रमेयरत्नमाला, अष्ट महस्री, आप्तपरीक्षा, न्यायावतार लिया गया है। भाषाओ का अध्ययन उसके व्याकरण, पर काम नहीं हुआ है । प्रमेयकमन मार्तण्ड तथा न्याय. सद रचना, शब्दोत्पत्ति का इतिहास, शब्द विकास, कुमुदचन्द्र भी अछूते पड़े है । इनमे से अनेक ग्रन्थों के
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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