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________________ १६, वर्ष ३९, कि० २ अनेकान्त सम्पादकों की भूमिकायें महत्वपूर्ण हैं और उपाधिक्षमता गम, षट् खण्डागम, कषाय पाहर एवं शान्ति सरि रखती हैं। इनका अनुवाद और समीक्षण अनेक दृष्टियों का जीव विचार प्रकरणं आदि ऐसे ही अध्ययन चाहते से महत्वपूर्ण होगा। इनमें अनेक विषय-ज्ञानोपाय, शब्द, हैं। इस दिशा में वर्तमान आगमिक विद्वानों का मार्गदर्शन चक्ष-धोत्र की क्रियाविधि, पदार्थवाद, परमाणुवाद, आकाश आवश्यक है। अब यह सभी जैन विचारक स्वीकार करते वाद प्रामाण्यवाद या विश्वसनीयता ख्यातिवाद आदि है कि आगम साहित्य के गहन अनुशीलन से ही जैन धर्म ऐसे हैं जिनका आधुनिक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन कर और दर्शन की अनेक मान्यताओं के आधार पुष्ट होंगे ज्ञान-प्रवाह के विकास को भापा जा सकता है । इनका जिससे श्रमण संस्कृति अधिकाधिक प्रकाशित होगी। इस अध्ययन वैचारिक प्रगति के सोपानों को भी निर्धारित कार्य में विश्वविद्यालयीय शोध सम्भवतः अपेक्षित सक्रिकरेगा । इन विषयों पर कुछ तुलनात्मक लेख लेखक ने यता न प्रदर्शित कर सके पर जैन शोध संस्थाएं इस दिशा लिखे हैं जिनका शोध दृष्टि मे विस्तार आवश्यक है। मे योजनाबद्ध काम कर सकती है। सारणी 1 से स्पष्ट है (द) मागम कि पिछले दस वर्षों में आगम शोध की प्रतिशतता में कोई सामान्यतः परम्परा से चले आ रहे श्रुत एवं उपदिष्ट वद्धि नही हुई है। ज्ञान के सकलन को आगम कहा जाता है। इनके देश मे (य) नीति, आचार और धर्म इन पर शोध काफी देर से प्रारम्भ हुई, पर विदेशो में यह सारणी ३ से स्पष्ट है कि पिछले दस वर्षों में नीति, बहुत पहले चालू हो चुकी थी। आजकल आगम साहित्य आचार और धार्मिक मान्यताओ से सम्बन्धित शोषों की दो रूपो मे पाया जाता है। (१) मूल आगम और (२) संख्या काफी बढ़ी है। इसमे कुछ तुलनात्मक अध्ययन भी उनके विविध अगों पर आधारित मूल और व्याख्या प्रथ। समाहित है । जैन नीतिशास्त्र के विविध पक्षों पर अनेक ग्यारद्ध उपलब्ध आगमों में आचाराग (४) और उसी के शोधकर्ताओं का ध्यान गया है । यह निश्चियरूप से मथित अनरूप मुलानार तथा भगवती मूत्र पर कुछ अध्ययन हुए होकर आधुनिक युग मे समर्थित ही हुआ है। अहिंसा ने हैं। सूत्र कृताग, उपामक दशांग, ज्ञाता धर्म कथांग भी अनेक लोगो को आकृष्ट किया है । बर्तमान में जैन शास्त्रों पंजीकरण में आ गए है। अन्य आगम अभी उपाधि शोध में वर्णित योग, सर्वोदय, स्याद्वाद आदि पर सामान्य और के क्षेत्र में नहीं आ पाए है। हां, स्थानांग और समवा- तुलनात्मक शोध भी होने लगी है। आचार के क्षेत्र में याँग सानवाद जैन विश्वभारती से प्रकाशित हुये हैं। सागर धर्मामृत, मूलाचार, समन्तभद्र और आचारांग पर इनके टिप्पण शोध, नहीं, पर शोध को निरूपित करते है। अनेक प्रकार के अध्ययन किए गये है। प्राज के विसंवादी अंगवाह्य मे उत्तराध्ययन, अनुयोग द्वार सूत्र, निशीथचूणि अनागारी आचार स्वतन्त्र शोध चाहता है। जैनबाट एव विशेषावश्यक भाष्य शोध क्षेत्र मे आ गए है, पर आचारों के तुलनात्मक अध्ययन के समान अन्य आचार दशवकालिक जैन विश्व भारती ने ही संजोया है। संहिताओं का भी एकीकृत एवं तुलनात्मक अध्ययन अपेतत्त्वार्थसत्र, सर्वार्थसिद्धि, भाष्य एवं कुन्द कुन्द साहित्य क्षित है। आचार शोध भी सामयिक विचारधाराओं के पर काम हआ है । हा० अमरा जैन का तत्त्वार्थ सूत्र की विकास की प्रतीक है । सभी प्रकार के आचारों का वैशाअनेकों टीकाओं का तुलनात्मक अध्ययन निश्चितरूप से निक पद्धति से अध्ययन आज की आवश्यकता है क्योंकि सम्पादित कर प्रकाशनीय है। फिर भी, सम्पूर्ण आगम नई पीढ़ी प्रत्येक परम्परागत आचार के प्रति उपेक्षणीय साहित्य को ध्यान में रखते हुये यह शोध अल्प ही है। वृत्ति प्रदर्शित करती है। इस साहित्य के गहनतर, तुलनात्मक और वैज्ञानिक अध्य- (र) व्यक्तित्व प्रोर कृतित्व यन की आवश्यकता है । भौतिक जगत से सम्बन्ध रखने इस क्षेत्र में भी शोध की संख्या और प्रतिशतता छ बाले अंगवाह्य एवं अंगप्रविष्ट आगमो का समीक्षात्मक और बढ़ी है । कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, सिद्धसेन, अकलंक, विद्या. तलनात्मक अध्ययन वर्तमान युग की मांग है । जीवाभि- नन्द, पुष्पदन्त, स्वयम्भू, रइधू, पोन्न, राजचन्द्र आचार्य
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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