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________________ पं० शिरोमणिरास कृत 'धर्मसार सतसई' इतनी वेरा (ला) उलंघे जबी, पर दोष नही भास रंच, सन्मूर्छन जीव उपज तबही ॥१७५ जो पुनि देखे कर न खंच । दोहा-वेरा(ला) अधिक न रखिए, गाल दोष न होय। उपगृहन यह अंग कहावै, डार तें हिंसा बढ़े सु बेरा (ला) राखो सोय ॥१७६ पंचम गुण दर्शन को पावै ॥१८४ चौपाई-अनगाले जल स्नान जु कीजै, तप व्रत किया चलत जो देख, होय पाप पुनि धर्महि छीज। महिमा का व्रत को पोखे । उत्तम क्रिया तेही की सार, धीरज देकरि कर सहाय, जो जल गाले विधि सौ ढार ॥१७७ स्थितीकरण यह अंगजु आय ॥१८५ सोरठा-जो नर उत्तम होय जो, जल गाल युक्ति सौं। धर्मवंत व्रत तप जप लीन, सांची दया जु सोय, जिनवर कही सु उक्ति सौ ॥१७८ ___ कम जोग ते भयो जु छीन । ॥ इति जल गालन क्रिया वर्णन ।। ताको सहाय करै गुणवंत, यह वात्सल्य अंग शुभ संत ॥१८६ अथ अंथऊ (सध्या भोजन) क्रिया वर्णन जिनवर धर्म जातै शुभ चल, दोहा-जो नर अंथऊ पाल ही, क्रिया जानि पुनि सोय । महिमा करि मिथ्यात्वहिं गले । सो विधि प्रतिमा मे कही फिर वर्णन नही होय ।।१७६ बहुत हर्ष सौं करहि करावे, ॥ इति अंथऊ क्रिया वर्णन ।। यह प्रभावना अंग कहावै ॥१८७ अथ रत्नत्रय क्रिया वर्णन ये आठहु गुण दर्शन जानो, सत्य जिनेश्वर वाणी माने, पुनि आठ ज्ञान के मानौ। हेयाहेय सुलक्षण जाने । तेरह अंग चारित्र गुण वास, मिथ्या मारग छोड़े सग, यह रत्नत्रय भव दुख नाश ।।१८८ नि शकित यह जानहु अंग ॥१८० ॥ इति रत्नत्रय क्रिया वर्णन ।। व्रत नप जाप पुण्य बहु कियो, ये वेपन क्रिया अनुराग, तीरथ यज्ञ सु दान जु दियो। जो पाले उत्तम बड़भाग । ताको फल बांछ नही धीर, षोडश स्वर्ग इन्द्रपद धरै, सो निःकाछित जानहु वीर ॥१८१ पुनि सो मुक्ति रमणी को वरं ॥१८ विद्या ज्ञान उदो सब जानि, दोहा-सकल सभा मन हर्षियो, सनि गणधर के वैन । साधु शरीर न मानौ ग्लानि । श्रेणिक सुख मन अति भयो, सुधरो धर्म दृढ़ जैन ॥१६० तृतीय अंग कहिए सुख धाम, भव भव जिन शासन मिल, सकल कीर्ति मुनिदेय । निविचिकित्सा याको नाम ॥१८१ पंडित शिरोमणि दास कौं, दीजो जिनकी सेव ॥१९॥ देव शास्त्र गुरु लक्षण जोइ, गुण दोष न पहिचान सोइ । इति श्री धर्मसार ग्रथे भट्टारक श्री सकलकीर्ति उपतीन मूढ़ त्याग सुख लहै, देशात पंडित शिरोमणि विरचिते पन क्रिया वर्णनो नाम अग अमूढ़ दृष्टि यह कहै ॥१८३ तृतीय संधिः समाप्तः ।
SR No.538039
Book TitleAnekant 1986 Book 39 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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