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१२, वर्ष १८, कि २
अनेकान्त
(गंदा स्थान)-धूरे पर निलज्ज मुख वाय,
कूकर मृत तामें आय ॥१४॥ मद्य मूत्र नही जाने भेद,
बार बार मागे करि खेद । विक्ल देखि नर नारी हंस,
जनम यूकि के मुष में गौ ॥१५॥ याही जनम ऐनो फल लहै,
और जनम को कहि सके। मद्य के दूषण छाडहु वीरा,
___ अब मैं कहूं मुनो तुम धीरा ॥१६॥ मद्य अतिचार-देव धर्म गुरु अन्य जु होय,
अन्य जति तुम जानो लोय । अन्य जाति को भाजन (वर्तन) लेय,
अपनो भाजन ताको देय ॥१७॥ दिना दोय अधिकारी मठा,
दुदल वस्तु सो कीन्हो गठा। फूल साधि जो मुख में देइ,
अजान के हाथ को नीर जो लेई ॥१८॥ ए सब मद्य दोष दुख दाई,
अवर दोष को कहै बढ़ाई। इनमे जीवराशि बहु रहै,
इनके त्याग सर सुख लहै ॥१६॥ मांस दोष-जीव धान बिनु मास न होइ,
महा पाप यह जानो लोइ । जीव अनेक पुनि तामे पर,
निन्द्य अपावन दृष्टि न धरं ॥२०॥ जो लगि जीव देह में बस,
तो लगि देह यह निर्मल दिस । जीव गये देह मुर्दा होय,
नर नारी पुनि छि, न कोय ॥२१॥ धिक धिक मांस मास जो खाइ,
दुर्गति दु.ख मिलै तिहि बाइ। पर जीव मारि उदर मे भरे,
घोर नरक कं उनने पर ॥२२॥ मांस अतिचार-हीग मलिल घी तेल,
चर्म की सगति जे रहे।
उपजे जीव अनेक, मांस दूषण यह जिन कहै ॥२३ जाको नाम न जान्या जाय,
अब सद्यो फल कहो बताइ । हाट चून अनगाल्यौ नीर,
शाक पात फल हरित जु धीर ॥२४॥ जामे तार चल बहु भांति,
लग फफूडा छाडी जाति । कोमल फूल है पत्रज फूल,
त्वचा गवारि बहुवीजहु कूल ॥२५॥ ए सब दोष कहे तुम जानि,
अबर दोष को कहै बखानि । जो नर मास त्याग व्रत घरे,
सकल दोष निश्चय परि हरै ॥२६॥ इन आठों मे पाप अपार,
दोष सहित त्याग व्रत धार । जब त्याग तब श्रावक होय, ___ अष्ट मूल गुण पालहिं सोय ॥२७॥
॥ इति अष्ट मूलगुण ॥ अथ बारह व्रतदोहा -- पच अणुवन पालिए, तीन गुण प्रत जानि ।
चऊ शिक्षा व्रत जिन कहे, ए बारह व्रत जानि ॥२८ अथ पंचाणुव्रत-प्राणभूत जीव सत्त जु चारि,
की दया सकल हितकारि । जो जीवनि को रक्षा कर,
भव सागर सो लीज तरे ॥२६॥ दया धर्म कहिए संसार,
जातें तुरत उतरिए पार । दयाहीन जो नर तुम जानि,
सो पापी यह कही बखानि ॥३०॥ व्रत तप संयम दान दै कोइ,
दया बिना निष्फल हो सोइ । तीरथ यज्ञ बहु होम विधान,
____दया बिना कोई होय न काम ॥३१॥ अथ अमानक छंद -जो पंछी मरवेउ तिर पाखान जल ।
जो उलटै भुव लोक होइ सीतल अनिल । जो सुमेरु गमगं सिंध कहं लगे मल ।
मता