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________________ पताक से आगे : पं० शिरोमणिदास जैन कृत "धर्मसार सतसई" - श्री कुन्दनलाल जैन प्रिन्सिपल मष तृतीय संधि प्रारंम्पते ए पंचहु फल है दुखदाई, चौपाई-कर जोड़े नूप शीस नवाय, ___ इनमें जीवराशि अधिकाई ॥७॥ पुनि पूछ गणधर सों राय । उदम्बर के अतिचार-बेर, मकोरा, जाम, अचार, धर्म मूल सम्यक्त्व बतायो, करौंदा बेल, अतूत, मुरार । शाखा कौन कहो मम भायो ॥१॥ कुम्हड़ा, गडेल, विवा, भटा, राजा सुनहु धर्म की शाखा, कलीदे फतकुली, चर्चड़ा बड़ा ॥६॥ श्रावक यति ब्रत दोष हो भाखा। सूरन, मुरा, आदी (अद्रक) गज्जरी, महारुकद मूल जे हरी । दोय धर्म है जग में सार, ए पुनि अवर कहे जिनराय, जातें भवधि पावहिं पार ॥२॥ इनमें जीव अनेक बसाय ॥ वेपन क्रिया धरै गुणधारी, अथ तीन मकार मह (मधु) वर्णनसो श्रावक उत्तम सोचारी। सकल निन्द्य रस माछी हरे, उत्तम श्रावक व्रत लव लावे, ___ करके वमन इकट्ठी धरै ॥ षोडस स्वर्ग इन्द्र पद पावै ॥३॥ अनेक अंडावर ऊपजै जहां, अथ वेपन क्रिया भेद-अष्ट मूल गुण व्रत सु बारह। बहुत जीव रस बूढ वहां ॥१०॥ द्वादश तप सामायिक सारह । अनेक जीव मरिक मधु होय, एकादश प्रतिमा सुनि हेत, जो किमि भक्षइ धर्महि गोम। चार दान में कही सुचेत ॥४॥ यज्ञ, पिण्ड ले मधु सो देइ, जल गालन इक अंथऊ (शाम भोजन) लीन, मधु को भक्षि पाप सिर लेह ॥११॥ तीन रतन तहं कहे प्रवीन । मह (मधु) के अतिचार-नैन (मक्खन) काचो दूध पिय, ऐ ओपन क्रिया परमान, सीऊरे जे कहे । वर्णन करूं सुनो दे कान ॥५॥ अप्रासुक जे नीर था, नैसवा ने जे लहे । १२॥ अथ अष्ट मूल गुण-पंच उदम्बर तीन मकार, मद्य दूषन-स्वाद चलित जो वस्तु जु होइ, इनके तजे मूल गुण सार। ता सौं मद्य कहे सब लोय । इनके दूषण जो नर तर्ज, अनेक वस्तु ले सारै जहां, अष्ट मूल गुण सो नर भजे ॥६॥ ___ अनेक जीव मरि उपज तहां ॥१३॥ अब पंच उदम्बर , पीपर, ऊमर तुम जानि, जो यह मद्य पियेजऊ रुढ़, पिलुकरि पाकरि कहे बबानि । माता स्त्री नहीं जानै मूढ़।
SR No.538038
Book TitleAnekant 1985 Book 38 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1985
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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