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२० वर्ष ३००
नक रूढ़ियां निम्नांकित हैं
(१) संसार की कठिनाइयों से संतप्त नामक को केवली या गुरु की प्राप्ति - शान्तिनाथ पुराण के प्रत्येक धर्म में
(२) आचार्य या गुरु से निर्वेद का कारण पूछना - शा० पु० ८८०, १२।१३ ।
(३) पूर्व भवावली का कथन हा० ० ७११, पूछना, ११।१२३ ।
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११२७, ११२२ ।
अनेकान्त
(४) निदान का कथन - ८११२१, ११।१५४ । (५) कथाक्रम में धर्म का स्वरूप और ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा था० पु० १२।१३, १२।१४।
(६) जाति स्मरण - पूर्वभव का स्मरण होने पर पात्र की जीवन धारा ही बदल जाती है। द्वादश सर्ग में कबूगर बाज का जाति स्मरण इसी सन्दर्भ में है। शा०पु० १२।४६
(७) जन्म जन्मान्तरों की शृंखला तथा एक जन्म के शत्रु का दूसरे जन्म मे भी शत्रु के रूप में रहना — जैसे धनरथ के दरवार में मुर्गो की कथा ।
१. डा० नेमीचन्द्र शास्त्री हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन पृ० २६१ । २. यही ० २६६
३. असग शान्तिनाथ पुराण ७।७१-७२
४. डा० नेमीचन्द्र शास्त्री हरिभद्र के प्रा० क० सा० आलोचनात्मक परिशीलन १० २६८ ।
५. शा० पु० ७ १३ ।
६. हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन पु० २६० ।
१० २७२ ।
१. शा० ५० १३१५२-१५५ ।
१०. वही १५६, १५ ।
७. शा० पु० १०।१२४, १२६-१३१ ।
हरिभद्र के प्रा० कसा आलोचनात्मक परिशीलन
(८) सम्यक्त्व प्राप्ति का कारण जानना अष्टम सर्ग में अमित तेज द्वारा विजय केवली से सम्यक्त्व प्राप्ति का कारण पूछना तथा उत्तर में भवावली का कथन शा० पु० ८१-११२ ।
(e) असंभव बात का कारण जानना - एकादश सर्ग में रानी प्रियमित्रा द्वारा मेघरथ विद्याधर के पूर्वभव
(१०) वैराग्य प्राप्ति के निमित्तों की योजना - द्वादश सर्ग में सरीर की निःसारता का उपदेश सुनकर प्रियमित्रा की विरक्ति १२।१२७ ।
सम्ब-सूची
(११) कैवल्य ज्ञान की उत्पत्ति के समय विचित्र आश्चर्यो के दर्शन - भगवान शान्तिनाथ के कैवल्य ज्ञान उत्पत्ति के समय पद्यमान का प्रकट होना, रत्न बुष्टि होना आदि आश्चर्य, १६२१८-११ ।
(१२) तपस्या के समय उपसर्ग तथा उनका जीतना - इसका व्यवहार शान्तिनाथ पुराण में सर्वत्र हुआ है। 00
११. यही १९३६-४१ ।
१२. यही १६।२१०-२२० ।
१३. शा० पु० ६।९६-९७ ।
१४. वही १००।
१५. हरिभद्र के प्रा० क० सा० आलोचनात्मक परिशी
लन पृष्ठ २७६ ।
१६. शा० पु० ११०४९-५१ ।
१७. शा० पु० २।४६,५६६६।१२। १८. वही ६८६ ।
१६. वही १०।४३ ।
२०. शा० पु० ११।२३ ।
२१. शा० पु० ४१५४ ।
२२. शा० पु० १२४ ॥