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शान्तिनाप पुराण में गतिविपित पाय दिया
अग्निकुमारपतवा वैमानिक देव निर्वाणोत्सव सम्पन्न करना एक प्रसिद्ध कथानक रूहि है। शान्तिनाथ पुराण
में अपराजित तथा अनन्तवीर्य का नर्तकी रूप बनाना, (ब) तन्त्र, मन्त्रबादमत्कार तथा औष- महाबल विधा के द्वारा राजा अपराजित का सैकड़ों रूपों धियों से सम्बढ़ियां-तन्त्र, मन्त्र के प्रति लोक में आकाश में चले जाना और अनि घोष का करोड़ों मानस की पूरी बास्था है। योगी, सिख, तान्त्रिक, मांत्रिक रूप बनाना।" इसी प्रकार की रूढिका परिचायक है। तथा चमत्कारी व्यक्तियों के प्रति मनुष्य सदा नतमस्तक
(ज) लोकिक कथानक रुढ़िया-प्रेम व्यापार को रहता।शान्तिमाय पुराण में निम्न चमत्कार स्वरूप
सम्पन्न करने के लिए लौकिक कथानक रूढ़ि का प्रयोग रूढ़ियों का प्रयोग हुवा है
किया जाता है। यषा-किसी निर्जन स्थान में अचानक (अ) औषधियों का चमत्कार-लोक मानस का रूपवती रमणी का साक्षात्कार और प्रेमाधिक्य के कारण विश्वास है कि औषधियों के प्रयोग से मृत प्राय व्यक्ति वियोग की स्थिति में आत्महत्या की विफल चेष्टा । जीवित हो जाता है और स्वस्थ व्यक्ति तत्काल मृत्यु को शान्तिनाथ पुराण के षष्ठ सर्ग में सुमति की बहन उसके प्राप्त कर सकता है । शान्तिनाथ पुराण मे इस कथानक पूर्वभव कहनी है 'एक बार अशोक वाटिका में कीड़ा सदि का प्रयोग कथा की दिशा मोड़ने में बड़ी कुशलता से करती हुई हम दीनो को देखकर त्रिपुरा के स्वामी वांग किया गया है । षष्ठ सर्ग में पूर्व जन्म की बहिन के मुख विद्याधर ने हरण कर लिया। से अपना पूर्वभव सुनकर सुमति मूच्छित हो जाती है और
दशम सर्ग मे 'विध्यसेन का पुत्र नलिन केतु सदा चन्दन, पखा बादि से उसकी मूच्छी दूर की जाती है।
कामातुर रहता था, उसके पुत्र दत्त का विवाह प्रियंकरा शान्ति पुराण के अष्टम सर्ग मे विषलिप्त पुष्प को नाम की स्त्री से हुआ। एक बार सखियों के साथ उसे सूष कर बीषण, सत्यभामा तथा राजा की दोनो पत्नियो उद्यान में विहार करते देखकर नलिनकेतुकामावस्या मर जाने का उल्लेख है।"
ने आश्रय दिया।" (ब) मन्त्र शक्तियों का चमत्कार-लोक मानस (झ) परिस्थितियों को द्योतकड़िया-समस्त अनादि काल से आश्चर्ययुक्त शक्तियों पर विश्वास करता कथानक रूढ़ियां सामाजिक और सांस्कृति परिस्थितियों चला आ रहा है । मन्त्र प्रधानतः चार प्रकार के होते हैं से उत्पन्न होती हैं । शान्तिनाथ पुराण में इस प्रकार की वेदमत्र, गुरुमंत्र, प्रार्थनामंत्र चमत्कारमत्र । चमत्कार मन्त्रो कथानक रूढ़ियां उपलब्ध हैंके मरण, मोहन और उच्चाटन ये तीन मुख्य भेद हैं।" (अ) शरणागत की रक्षा-शान्तिनाथ पुराण के शान्तिनाथ पुराण के एकादश सर्ग में राजा अभय घोष की अष्टम सर्ग में राजा श्रीषेण के दरबार में सात्यकि की रानी कनकलता ने अपने प्रति राजा की विरक्ति तथा पुत्री सत्यभामा 'रक्षा करों' कहती हुई पहुंची तथा राजा नव विवाहिता रानी के प्रति आसक्ति देखकर, नव विवा- ने उसे अपने अपने अन्त:पुर में शरण दी। हिता को राजा से अलग करने के लिए मन्त्र-तन्त्र कराया वादश सर्ग में मेघरब के दरबार में बाज से कतर और अपनी सखियों द्वारा राजा के लिए मन्त्र और धूप की रक्षा के लिए राजा द्वारा कबूतर को गोद में शरण से संस्कार की गई कृत्रिम माला आमन्त्रित की, जिससे देने का उल्लेख है।" राजा के लिए उसी क्षण से अपनी नव विवाहिता के प्रति (अ) प्राध्यात्मिक और मनोवंज्ञानिक दियाविरक्ति का भाव उत्पन्न हो गया है।"
भारतीय संस्कृति का मूलाधार बात्मा का अस्तित्व है तथा (E)प परिवर्तन-रूप परिवर्तन द्वारा लोगों जन्मान्तर और कर्मफम की अनिवार्यता में विश्वास करना को चमकत करना और अपने अभीष्ट कार्य की सिद्धि भी आवश्यक है । शान्तिनाथ पुराण में इस वर्ग की का.